बुधवार, 19 सितंबर 2012

भद्दा मजाक करनेवाला गंदा गृहमंत्री


भद्दा मजाक करनेवाला गंदा गृहमंत्री

(संजय तिवारी)

सीआईडी के सब इंस्पेक्टर से देश के गृहमंत्री बने सुशील कुमार शिंदे ने पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान पहले तो देश की जनता की याददाश्त का मजाक उड़ाया फिर सफाई में यह कहकर और अधिक मजाक उड़ा दिया कि यह तो उन्होंने मजाक में कहा था. देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के लिए देश की जनता का इतना ही महत्व है कि अपने सम्मान समारोह में वे सरेआम खड़े होकर सार्वजनिक रूप से उसका मजाक उड़ाये और ठहाके लगायें. बाद में जब सवाल उठाया जाए तो बड़ी बेशर्मी से कह दें कि वह तो मजाक कर रहे थे?
शिंदे साहब ने अपने चार दशक के राजनीतिक कैरियर में क्या यही सीखा है कि जिसके लिए आप राजनीति करें, उसका भरी महफिल में खड़े होकर मजाक उड़ायें और ठहाके लगाये? पुणे की जिस सभा में उन्होंने देश की आम जनता का मजाक उड़ाया वह उनके ही मित्रों और शुभचिंतकों द्वारा आयोजित कार्यक्रम था इसलिए सुशील कुमार शिंदे ने बहुत बेफिक्र होकर भाषणबाजी की. इसी बेफिक्री में उनके मुंह से वह सच्चाई निकल गई जो निहायत भद्दी और पीड़ादायक है.
पुणे की सभा में सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि जैसे देश की जनता बोफोर्स घोटाले को भूल गई है वैसे ही कोल घोटाले को भी भूल जाएगी. मराठी में बोलते हुए उन्होंने फारच व परत शब्दों का प्रयोग किया जिसका मतबलब होता है बहुत जल्द. यानी देश की जनता जल्द ही कोल घोटाले को भूल जाएगी. इसके बाद बहुत गंदे तरीके से उन्होंने और उनके समर्थकों ने इस बात पर ठहाका भी लगाया. उनके इस बयान पर जब बवाल मचा तो उन्होंने परत दूसरी गलती भी कर दी. पुणे में ही उन्होंने मीडिया से कह दिया कि उन्होंने ऐसा मजाक में कहा था.
सुशील कुमार शिंदे की छवि समझदार नेताओं में होती रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस के लिए वे ऐसा दलित चेहरा हैं जो साफ सुथरी ब्राह्मणवादी जिंदगी जीता है और मौका मिलने पर उसका दलित चेहरे के रूप में इस्तेमाल भी कर लिया जाता है. अपने सौम्य स्वभाव के ही कारण सुशील कुमार शिंदे सोनिया गांधी की खास पसंद हैं. इसीलिए जब प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद मंत्रालयों में अदला बदली हुई तो उन्हें देश के गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंप दी गई. कभी यह पद महाराष्ट्र से ही आनेवाले एक और वरिष्ठ नेता शिवराज पाटिल के पास होती थी. पाटिल से गृहमंत्री का पद सिर्फ इसलिए चला गया क्योंकि दिल्ली में हुए बमविस्फोट में वे थोड़ी देर से पहुंचे और इसका कारण बताया कि वे कपड़े बदल रहे थे. उनका कपड़ा बदलना उन्हें बहुत भारी पड़ा और वे केन्द्रीय राजनीति से हटाकर राज्यपालों वाली जमात में खड़े कर दिये गये.
अगर पुणे में दिये गये शिंदे के बयान को देखें तो उन्होंने शिवराज पाटिल से भी बड़ी गलती की है. उन्होंने समग्रता में भारतीय जनता और उसके मानस का मजाक उड़ाया है. उस पर ठहाका लगाया है. लेकिन ऐसा लगता है कि शिंदे भाग्य के बहुत धनी व्यक्ति हैं इसलिए उनके सौभाग्य से अवसर के छीका टूटता रहता है. जिस दिन देश में बिजली का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया था उसी दिन उन्हें बिजली मंत्रालय से हटाया तो गया लेकिन गृहमंत्री बना दिया गया. नार्दर्न ग्रिड के फेल होने पर उनसे एक बार भी सवाल जवाब नहीं किया गया. लेकिन बतौर गृहमंत्री उन्होंने जुम्मा जुम्मा अभी कार्यभार संभाला ही था कि पुणे में बम विस्फोट हो गया. वे उसी दिन पुणे जाने वाले उसी सम्मान समारोह के लिए जिसमें वे अब गये और यह भद्दा मजाक किया है.
अगर अपने चालीस साल के राजनीतिक जीवन में सुशील कुमार शिंदे की यह व्यावहारिक समझ है कि नेता जो चाहें घपले, घोटाले करते रहें, जनता बहुत दिनों तक याद नहीं रख पाती है तो उनकी इस समझ पर किसी को भी तरस खाना चाहिए. शिंदे साहब को शायद मालूम नहीं है कि इस देश के जनता की याददाश्त बहुत अच्छी है और जब उसके धैर्य का बांध टूटता तो अंग्रेजों को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ता है. इस देश का समग्र मानस अपने लिए महात्मा गांधी जैसा कोई अपना नेता भी पैदा कर लेता है. सुशील कुमार शिंदे जैसे नेताओं को यह समझना चाहिए नेतृत्व के अभाव में भी जब जनता का गुस्सा उबलता है तो सरकारें हिलने लगती हैं. हाल फिलहाल में अन्ना हजारे का आंदोलन इस बात का एक संकेत मात्र था.
लेकिन संभवतरू आज के नेता प्रबंधन को ही राजनीति मानते हैं और ऊंचे ओहदे पर पहुंचने के लिए जनता को एक ऐसी सीढ़ी समझते हैं जिसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर लिया जाता है. इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य कहें, या फिर इस देश का जहां ऐसे नेता शीर्ष पदों पर बैठे हैं जो अपने कुकर्मों को जनता की कमजोर याददाश्त से छिपाने को अपनी महारत समझते हैं. शिंदे के इस सच के सामने आने से एक बात तो साफ हो जाती है कि जो नेता देश की जनता का इस तरह का मजाक उड़ाता है वह जनता का नेता तो कभी हो नहीं सकता. वह कांग्रेस का नेता हो सकता है, उसका अपना कोई पोलिटिकल कैरियर भी हो सकता है लेकिन जनता का मजाक उड़ानेवाला आदमी कहीं से जनता का नेता नहीं हो सकता है.
क्या जिस जनता की सेवा के नाम पर सुशील कुमार शिंदे पद और कद का मेवा खा रहे हैं, उसका मजाक उड़ाने के बाद एक क्षण भी अपने पद पर बने रहने के अधिकारी बचते हैं? पाटिल तो सिर्फ कपड़ा बदलने की बात कहकर गृहमंत्रालय से बेदखल कर दिये जाते हैं, माननीय गृहमंत्री के इस भद्दे मजाक के बाद भी अगर वे गृहमत्री की कुर्सी पर बैठे रहते हैं तो कांग्रेस द्वारा इस देश की जनता के साथ इससे अधिक भद्दा मजाक दूसरा कोई नहीं होगा.
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

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