सोमवार, 26 नवंबर 2012

गर्मागर्म खाने से महरूम हैं माननीय!


गर्मागर्म खाने से महरूम हैं माननीय!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के नीति निर्धारकों की उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फिर गया। दरअसल, जैसे ही देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद का शीतकालीन सत्र आरंभ हुआ वैसे ही माननीय संसद सदस्यों का गुस्सा उस वक्त सातवें आसमान पर आ गया जब उन्होंने पाया कि संसद के मुख्य भवन की केंटीन की रसाई में अब भी ताला लगा हुआ था। डायनिंग हाल में ठंडे नाश्ते और भोजन से माननीयों का कुंह कसैला होना स्वाभाविक ही था।
शीत सत्र के आरंभ होते ही संसद के सदस्यों को पूरी पूरी उम्मीद थी कि इस बार उन्हें कम से कम गरमा गरम भोजन खाने को मिल सकेगा। उनकी इच्छाओं पर कुठाराघात ही हो गया। पिछले चार माह से गोलाकार भवन वाली संसद के मुख्य भवन की रसाई बंद पड़ी हुई है। इस रसाई के बंद होने का कारण अग्निशमन विभाग द्वारा इसे आरंभ करने की अनुमति ना दिया जाना ही बताया जा रहा है।
सांसद इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि एक तो मेन बिल्डिंग का किचन बंद क्यों किया गया और दूसरा यह कि इसे बंद किया गया तो चार महीने में दूसरी व्यवस्था क्यों नहीं की गई। फिलहाल खाना लाइब्रेरी में बनता है और वहां से सुबह ही संसद में लाकर रख दिया जाता है। ठंढे खाने को तो स्टाफ किसी तरह हीटरों पर गर्म कर देता है मगर रोटी उसे ठंढी ही सर्व करनी पड़ती है। खाने के अलावा सुबह और शाम के नाश्ते का हाल तो और बुरा है। ठंड में उन्हें ठंढा खाने से बेहतर लोग बिना खाए रहना ज्यादा पसंद करते हैं।
पूरे संसद परिसर में तीन जगह लाइब्रेरी, रिसेप्शन और एनेक्सी में किचन चल रहे हैं। मगर सेशन के दौरान काम की मुख्य जगह मेन भवन होता है। इसलिए सांसदों को वहां से कहीं और जाकर खाने में बहुत टाइम लगता है। सबसे बुरा हाल सिक्युरिटी और दूसरे स्टाफ का है। उन्हें लंच के लिए कई बार आधे घंटे का वक्त भी नहीं मिलता। इतने कम समय में वे संसद से बाहर जाकर नहीं खा सकते। उनके लिए मेन बिल्डिंग के जिस बड़े हॉल में खाने का इंतजाम था उसे बंद कर दिया गया है। इन चीजों से नाराज एक सांसद ने टिप्पणी की कि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने जितना खर्च अपनी विदेश यात्राओं पर किया है उसके छोटे से हिस्से से ही एक शानदार किचन बन सकता था।

कोई टिप्पणी नहीं: