शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

पत्रकारों की नेतागिरी की आड़ में दलाली का घिनौना षडयंत्र


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 17

पत्रकारों की नेतागिरी की आड़ में दलाली का घिनौना षडयंत्र

(डेविड विनय)

भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश की पत्रकारिता आज बाजारवाद की गंदगी से सराबोर है। तीसरे दर्जे की राजनीति के षडयंत्रों से घिरी इस पत्रकारिता को दलालों के गिरोह ने फुटबॉल बनाकर रख दिया है। जो ईमानदार पत्रकार अपनी लेखनी की पूजा करते हैं और सामाजिक विद्रूपताओं को उजागर करते हैं वे दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। इसकी तुलना में वसूली का कारोबार करने वाले विज्ञापन के एजेंटों की पौ बारह है। यही कारण है कि अधिकतर पत्रकार या तो पीआरओ बनते जा रहे हैं या फिर विज्ञापन एजेंट। इसी तरह विज्ञापन एजेंटों ने पत्रकारों की कुर्सियां हथिया लीं हैं और अब तो वे भ्रष्ट अफसरों की कृपा से पत्रकारों के नेता तक बन गए हैं। पत्रकारों के नेताओं के इन हिजड़ा परस्त फार्मूलौं के कारण सरकार जनता के खजाने से पत्रकारों के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध करा रही है लेकिन पत्रकारों का शोषण करने वाले ये सत्ता के दलाल इन संसाधनों को पत्रकारों तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं।
पत्रकारों की ये रसद बीच में ही गड़प कर जाने वाले इन सत्ता के दलालों को मध्यप्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग के कुछ अफसरों ने अपना एजेंट बना रखा है। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारों की नीतियों को भ्रष्टाचार की गटर गंगा में बहाने वाले इन दलालों को पत्रकारों के एक स्वयंभू नेता ने अपनी सत्ता चमकाने के लिए पनाह दी थी। आज उस गद्दार नेता का सबसे पुराना एजेंट राधावल्लभ शारदा जनसंपर्क विभाग के भ्रष्ट अफसरों का सबसे बड़ा एजेंट बन गया है।पिछले कुछ सालों में इस दलाल ने पत्रकारों को सरकार से मिलने वाली योजनाओं के सहारे ही अपना कारोबार फैलाया है। जनसंपर्क विभाग के अफसरों ने पत्रकारों के बीच पिछले पंद्रह सालों से ज्यादा समय से चल रहे विवादों की आड़ में इस दलाल को भरपूर विकास दिया। जनसंपर्क विभाग के भुगतानों की आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो से जांच कराई जाए तो राधा वल्लभ शारदा की नपुंसक राजनीति की पोल आसानी से खोली जा सकती है। इसका कारण ये है कि विभाग के भ्रष्ट अफसरों ने इसे जनता के खजाने से टैक्सी की सुविधा उपलब्ध कराकर पूरे प्रदेश के दौरे करने का मौका दिया। इससे इस दलाल ने प्रदेश के पत्रकारों को अपने संगठन का सदस्य बना डाला। कई स्थानों पर तो पत्रकारों के नेताओं ने एकमुश्त रकम देकर सभी पत्रकारों को इसके संगठन का सदस्य बनाया। जो पत्रकार शारदा को खुलेआम गालियां देते हैं वे भी इसके संगठन के सदस्य कैसे बन गए ये उनकी समझ में खुद नहीं आता। पत्रकारों को गुमराह करने के लिए इस दलाल ने इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की मध्यप्रदेश इकाई के नाम से मिलते जुलते नाम वाले संगठन के माध्यम से ये घोटाले किए। जनसंपर्क विभाग के एक रिटायर हो चुके एक अफसर ने सबसे पहले इसके संगठन की नींव डलवाई थी। जब पूर्व की कांग्रेसी सरकार ने आईएफडब्ल्यूजे के नाम का अनुवाद करके बनाए गए मप्र श्रमजीवी पत्रकार संगठन का सूर्य अस्त करने की पहल की तो इसी विवाद का लाभ लेकर शारदा ने अपना संगठन बना लिया। जनसंपर्क विभाग के उसी पूर्व अफसर ने इस संगठन को मान्यता भी दिला दी। उस अफसर ने अपनी टैक्सी सेवा के माध्यम से इस दलाल को पूरे प्रदेश के दौरे कराए और दौरों की तीन गुनी संख्या में फर्जी बिल तैयार करके कोषालय से रकम आहरित कर ली। ये बिल विभिन्न ट्रांसपोर्टरों के नाम से तैयार कराए गए थे। उस समय ई पेमेंट की कोई प्रथा ही नहीं थी इसलिए ये बिल पास हुए और आडिट पार्टी ने भी अपनी दस्तूरी लेकर उन्हें अपनी हरी झंडी दे दी।
(विस्फोट डॉट काम से साभार)

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