शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

निजी कंपनी पर मेहरबान कैलाश


निजी कंपनी पर मेहरबान कैलाश

(विजय सिंह राजपूत)

इंदौर (साई)। सरकार से अगर किसी ने कर्ज लिया है तो उसकी भरपाई करनी ही होती है। कुछ उदहारणों को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी मामलों में कर्ज वसूली के लिए सरकार काफी हद तक सख्ती बरतती है। मध्य प्रदेश के रखूसदर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ना जाने क्यों एक निजी कंपनी पर खासे मेहरबान दिख रहे हैं।
निजी क्षेत्र की कंपनी एस.कुमार्स समूह की बिजली कंपनी एंटेग्रा पर मप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम (एमपीएसआईडीसी) का 90.22 करोड़ रूपए बकाया है। उद्योग विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि मंत्री की सिफारिश है कि कंपनी से महज 38 करोड़ रू. लेकर हिसाब-किताब बराबर कर दिया जाए। गनीमत है कि एमपीएसआईडीसी ने साफ लिख दिया है कि यह प्रस्ताव स्वीकार योग्य नहीं है। फिलहाल अंतिम फैसला राज्य सरकार के हाथ है। एंटेग्रा महेश्वर में बिजली परियोजना स्थापित कर रही है।
देखा जाए तो प्रदेश में 11 साल से डिफाल्टर इस कंपनी पर कैलाश की करोड़ों की यह दरियादिली संदेह के घेरे में है। इस कंपनी का नाम पहले श्री महेश्वर हाइडल पॉवर कॉरपोरेशन लि. था। अब एंटेग्रा है। एमपीएसआईडीसी ने मप्र में पहली निजी बिजली परियोजना के लिए एस. कुमार्स समूह को 1995 से 2001 तक 56.25 करोड़ रूपए की राशि बतौर कर्ज दी।  ब्याज समेत कर्ज वसूली के लिए एस. कुमार्स समूह से कई समझौते किए गए, लेकिन एमपीएसआईडीसी के दस्तावेज बताते हैं कि कंपनी किसी भी समझौते पर कायम नहीं रही।
एक नए फॅार्मूले के तहत 7 मई, 2012 को एस. कुमार्स समूह की कंपनी एंटेग्रा द्वारा उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को दिए गए प्रस्ताव-ए में कहा गया कि एकमुश्त समझौते के तहत कंपनी केवल 38 करोड़ रूपए ही अदा कर सकती है। जिसकी शर्त है- पांच करोड़ प्रस्ताव मंजूर होने के बाद, शेष 33 करोड़ 5.5 करोड़ की 6 किस्तों में पहले पेमेंट के 6 माह बाद से। कंपनी पर बकाया 90.22 करोड़ के मान से इस प्रस्ताव को स्वीकार करने पर एमपीएसआईडीसी का 52 करोड़ का घाटा तय है। फिर भी कैलाश ने 18 मई, 2012 को इसी प्रस्ताव पर लिखा कि अकाउंट सेटल करने के लिए कंपनी का प्रपोजल, स्वीकार किया जा सकता है। आवश्यक कार्रवाई करें। मंत्री की सिफारिश के बाद प्रस्ताव एमपीएसआईडीसी के पास पहुंचा। इस निजी कंपनी की आदतन वादाखिलाफी का रिकॉर्ड बताते हुए एमपीएसआईडीसी के अधिकारियों ने अपर मुख्य सचिव को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी। मंत्री की सिफारिश के बावजूद अफसरों ने राज्य हित में कंपनी के ताजा प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
वैसे अनेक मामलों में विवादित उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को उस एमपीएसआईडीसी की चिंता नहीं है, जिसके तमाम उद्योगपति करीब 2800 करोड़ रूपए दबाकर बैठे हैं। जबकि एमपीएसआईडीसी अपने निवेशकों को उनका मूलधन भी लौटाने की स्थिति में नहीं है।

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