बुधवार, 12 दिसंबर 2012

अकेले लाजपत आहूजा बे-लाज नहीं हो सकते


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 24

अकेले लाजपत आहूजा बे-लाज नहीं हो सकते

(स्वराज न्यूज डॉट काम)

भोपाल (साई)। म।प्र।जनसंपर्क विभाग के उप सचिव एवं संचालनालय में अपर सचिव लाजपत आहूजा फिर एक बार लघु समाचार पत्रों के प्रकाशकों के निशाने पर है। मामला है विज्ञापन नीति का। यह वह नीति है जो केवल विभाग की कागजी खानापूर्ति के लिए तथा कभी कभार भ्रटाचार से बचाव में अधिकारियों के लिए विभागीय मंत्री एवं मुख्य मंत्री को समय-समय पर होने वाली बैठकों में जाने के लिए उनके हाथ और वाक्पटुता के काम आती है और उनकी गरिमा को महिमा मंडित करती है।
इस प्रकार की नीति से विज्ञापन जारी करने में वरिष्ठ एवं वरिष्ठतम अधिकारियों के निजीहितार्थ क्रियान्वयन में कोई फर्क  नहीं पड़ता है। होता वही है जो ये लोग चाहते है। इस नीति में आन्तरिक,निजी व्यवहारिक,कमीशन एवं लाभ लेने वाले की सामाजिक एवं प्रशासनिक हैसियत ही मापदण्ड होती है। इस नीति का नाम लेकर तब ज्यादा चर्चा रहती है जब कमीशन खोरी की अतिमहत्वाकांक्षां में आवंटन से ज्यादा बजट को ठिकाने लगा दिया जाता है।
बाद में जैसे ही आडिट दल आकर कहता है कि आप अपने आप को संभालो तो उसके लिए फामूर्ला नं। एक होता है कि प्रचार कराओ कि बजट खत्म हो गया है। यदि लंबी रूकावट का दौर चलाना है तो फामूर्ला न।दो अपनाओं अर्थात उच्च स्तरीय स्टाइलिस अपने आप को किसी वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की तरह रूतवा रखने वाले ग्वालियर अंचल का अन्न जल लेकर पैदा हुए अडियल संाड की तरह अड़े रहने वाले आदणीय लाजपत आहूजा को कमान सैाप दो। यह जनसंपर्क विभाग की पीढी दर पीढी निरन्तर चलने वाली सत्त प्रक्रिया है।
इस नीति की प्रक्रिया में लाजपत आहूजा का सीधा कोई रोल नही होता है। बल्कि यह नीति हमेशा से मुख्यमँत्री के सचिव, विभागीय मंत्री के निजसहायक,एवं आयुक्त जनसंपर्क की आन्तरिक नीति के तहत भ्रष्ट गठजरोड़ का अंग है। यह सर्व विदित है कि अपने पार्टी कार्यकर्ताओं ,चापलूसों एवं गैर-पत्रकारों ,गैर-पत्रकार संगठनों को जब-जब मुख्यमंत्री ,मंत्री अथवा पार्टी के नेताओं ने जनसंपर्क आयुक्त को आर्थिक लाभ,वाहन अथवा विज्ञापन जारी करने के लिए लिखा तो बिना किसी मापदण्ड के बिना नियम प्रक्रिया अपनायें मांगने वाले को हाथों हाथ थमा दिया।
जनसंपर्क आयुक्त को लिखने वालो ने लगे हाथ अपना उल्लू भी सीधा कर लिया। मंत्री या मुख्यमंत्री ने जो भी लिखा उसमें कूटरचित तरीके से अपनी राशि का आंकड़ा फिट करके अनुमोदन करा लिया ।  इन परिस्थितियों में संचालनालय के किसी भी अधिकारी की औकात नहीं है कि मंत्री या मुख्यमंत्री से अनुमोदित फाइल को नकार दे ,अथवा टीका टिप्पणी कर दे।
इस प्रकार पहले बे-मन से बाद में तन-मन संचालनालय के लोग भी अपनी दुकान चलाने लगते है। इस प्रकार बजट का बंटवारा अपनी हैसियत के हिसाब से निरन्तर होता रहता है। इसमें कोई बड़े बैनरों के लिए दलाली करता है,कोई मंत्रियों एवं विधायकों के पत्रों के सहारे सुविधाऐं जुटाता है ,किसी ने अपने परिवार के सदस्यों के नाम से इवेन्ट कंपनी बना रखी है ,कोई अपने परिवार के सदस्य के नाम से अखवार,पत्रिका निकालकर लाभ ले रहा है ,किसी नेे ठेके से किताबें लिखवा कर महान विद्धान बनाकर पुरूष्कार दिलवाया है।
इस विभाग का षडय़न्त्र एवं बजट का ख्ेाल सीधा एवं सुरक्षित है । क्योकि किसी राजनीतिक दल,कोई भी चौनल,कोई भी ख्यातिनाम समाचार पत्र कोई भी मंत्री विधायक यहां तक मुख्य मंत्री भी इस विभाग के विरूद्ध नहीं बोल सकते क्योकि सरकार ,दल,मीडिया की काली कमाई,माफिया और व्यवस्था सबकी जड़ें यहाँ छिपी है। अच्छा होगा लघु समाचार पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशक एवं संपादक पहले पत्रकार बनें फिर विभाग और स्वयं भी समीक्षा बैठकें कराऐं । नतीजा जरूर निकलेगा । यहॉ सरकार को पत्रकारों की नहीं मीडिया एण्ड इवेन्ट्स मैंनेजमेंन्ट सिस्टम वालों की आवश्यकता है। यहॉ अकेले लाजपत अडिय़ल बन सकते है । परन्तु बे-लाजपत विभाग में बहुत है।

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