बुधवार, 2 जनवरी 2013

गंगा की डुबकी क्या धो पाएगी पाप!


गंगा की डुबकी क्या धो पाएगी पाप!

(पी डी महंत)

31 दिसम्बर की षाम डुबा सूरज क्या 1 जनवरी को फिर निकल पायेगा,
हमने-तुमने जो पाप किये हैं, गंगा में डुबकी लगााने से क्या वो धुल पायेगा,

उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे, यह सबको समझ में आता है,
मेरा जेहन इतना काला, सबसे कालायह कब हमको समझ में आयेगा ,

आज मोम बत्तियॉं जलातें हैं चौराहों परमौन जुलूस भी हम निकालते हैं,
दिया दिल मंे जलायें, जुलूस में नहीं ,अकेले का जुलूस निकालें तब समझ आयेगा,

तार तार किसी की आबरु, जार जार किसी का दिल हो रहा है रोज रोज,
कुर्बानी किसी की, षहीद कोई और ही हो मेरे लिऐ, इससे कुछ बदल नहीं पायेगा,

कहानी, कथानक,नाटक,मानस और भापण, किसी अवतार का है बस इंतजार,
जब जब जुल्म बढेगा,कोई तो आयेगा, ऐसा हुआ है न कभी और न ऐसा हो पायेगा,

न कोई तंत्र है न मंत्र,मेरी बुराई मुझसे ही निकलेगी, मैं ही उसे निकाल पाउॅंगा,
अंधे को कैसे दिखता है ? बाहर के उजाले से कुछ साफ नजर नहीं आयेगा,

बुराई कहॉं है? कितनी है?कब से मेरे घर में है? सब जानता हॅंू मैं ,
ष्ुारुआत करुॅं निकालने की ही से ,निकलते निकलते षायद निकल जायेगा ।

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