गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

सहकारी समिति बरघाट में साठ लाख का महाघोटाला!


सहकारी समिति बरघाट में साठ लाख का महाघोटाला!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। मध्य प्रदेश के छोटे से जिले सिवनी के छोटे से विकास खण्ड बरघाट की एक विपणन सहकारी समिति ने जो जादू दिखाया है उसे देखकर अच्छे अच्छे घोटालेबाज भी दातों तले उंगली दबा लेंगे। भारतीय जनता पार्टी की जिला इकाई के कथित आधार स्तंभ अजय त्रिवेदी के नेतृत्व वाली इस समिति ने साठ लाख रूपए का महाघोटाला किया है।
विपणन सहकारी समिति बरघाट के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वैसे तो भारतीय जनता पार्टी द्वारा चाल चरित्र और चेहरे के साथ ही साथ भ्रष्टाचार मुक्त शासन की वकालत की जाती है पर दूसरी ओर भारती जनता पार्टी के ही पदाधिकारी भ्रष्टाचार में संलिप्त होकर इन दावों की हवा निकालने का काम कर रहे हैं। वर्ष 2007 - 2008 एवं 2009 - 2010 में इस सोसायटी में लाखों का गबन और घोटाला हुआ है।
सोसायटी के एक पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर बताया कि इस पूरे मामले में सोसायटी के अध्यक्ष अजय त्रिवेदी ही पूरी तरह दोषी हैं पर चूंकि वे भाजपा के कथित आधार स्तंभ हैं अतः उन्हें बचाकर इस मामले में लेखापाल एवं अन्य अधीनस्थों को फंसाने की कवायद जारी है। इस सोसायटी में धान, गेंहूं एवं अन्य खाद्य सामग्रियों में लगभग साठ लाख रूपए का महाघोटाला किया गया है।
सोसायटी सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि वर्ष 2007 - 2008 में सहकारी प्रक्रिया एवं विपणन समिति बरघाट में वर्ष 2008 - 2009 में गेंहू उपार्जन के दौरान 8 किसानों से खरीदे गए चार लाख 81 हजार 450 रूपए के गेंहूं का भुगतान भी वास्तविक किसानों के बजाए छद्म किसानों को कर दिया गया। बताते हैं कि घंसौर में कमलती फागू से खरीदे गए गेंहू का 72 हजार 50 रूपए की राशि का भुगतान किसी गौरी शंकर के नाम के आदमी को कर दिया गया। इतना ही नहीं समर्थन मूल्य के गेेहूं एवं धान खरीद में समिति द्वारा अप्रसंगिक व्यय भी किए गए हैं।
वहीं बताया जाता है कि वित्तीय वर्ष 2009 - 2010 में उक्त समिति के अध्यक्ष अजय त्रिवेदी ने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर मनमानी जारी रखी। बताते हैं कि अध्यक्ष अजय त्रिवेदी की हठधर्मिता के चलते 13 जून 2009 को 2602 नग फटे बारदाने अर्थात बोरे की राशि 58671 रूपए एफसीआई से लेने की बात रोकड़ में दर्ज की गई। मजे की बात तो यह है कि प्रस्ताव पंजी में इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया।
चर्चा है कि इस तरह अध्यक्ष अजय त्रिवेदी ने कूट रचना कर 58671 रूपए का सीधा सीधा गबन किया गया है। इतना ही नहीं 13 जून 2009 को ही 714 बारदानों की राशि 16094 रूपए भी नुकसान खाते की रोकड़ में दर्ज किया गया, पर प्रस्ताव पंजी इस बार भी इस मामले में खामोश ही रही। यह सारा मामला अध्यक्ष अजय त्रिवेदी और लेखापाल दर्शन अहिरवार की सहमति से ही परवान चढ़ सका है।
वहीं सूत्रों ने संकेत दिए कि खाद्य की खरीदी में समिति के अध्यक्ष और लेखापाल ने मिलकर शासन को लाखों का चूना लगाया है। सूत्रों की मानें तो दोनों ने मिलकर 6 लाख 96 हजार 837 रूपए का गबन और धान खरीदी में 32 लाख 63 हजार 829 रूपए का संस्था को हानि के माध्यम से चूना लगाया है। इसी तरह परिदान में कमी धान के मामले में 124 क्विंटल धान की कमी को लापरवाही पूर्वक खरीदने से संस्था को लगभग एक लाख 30 हजार 305 रूपए देवचंद से वसूली हेतु दोषी माना है।
इस तरह वर्ष 2007 से अब तक विपणन सहकारी समिति बरघाट द्वारा खरीदी और अन्य मदों में जमकर घालमेल किया गया है। आश्चर्य तो इस बात का है कि इस समिति के सालाना अंकेक्षण में आखिर ये अनियमितताएं दब कैसे गईं? वैसे कहा जाता है कि अध्यक्ष अजय त्रिवेदी भारतीय जनता पार्टी के कथित तौर पर आधार स्तंभ हैं अतः उनका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता है। आपेक्षा व्यक्त की जा रही है कि विपणन सहकारी समिति बरघाट की उच्च स्तरीय जांच की जाकर इस मामले में दूध का दूध पानी का पानी किया जाए।

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