शनिवार, 18 मई 2013

साथ छोड़ती पुण्य सलिला


साथ छोड़ती पुण्य सलिला

(लिमटी खरे)

जिला मुख्यालय सिवनी से दक्षिण दिशा में गोपालगंज के समीप मुंडारा के एक कुण्ड से निकलकर पतली सी धारा के रूप में प्रवाहित होने वाली पुण्य सलिला बैनगंगा अपने हजारों किलोमीटर के सफर में ना जाने कितने कंठों और जमीन की प्यास बुझाती है। बैनगंगा के इस प्रवाह में अनेक छोटे बड़े बांध भी बने हुए हैं। सिवनी जिले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता सुश्री विमला वर्मा के सद्प्रयासों से बने एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध संजय सरोवर परियोजना जिसे भीमगढ़ बांध के नाम से जाना जाता है में इस छोटी सी धारा का प्रताप अलग ही प्रतीत होता है।
आज अगर भीमगढ़ बांध को जाकर देखा जाए तो इसका जलस्तर बहुत नीचे पहुंच चुका है। स्थिति अगर यही रही और मानसून थोड़ा सा भी विलंब से आया तो सिवनी जिले विशेषकर जिला मुख्यालय में पानी की त्राही त्राही मच जाएगी, उस वक्त प्रशासन को स्थिति संभालना बहुत ही दुष्कर हो सकता है।
सालों पहले जब भीमगढ़ बांध के निर्माण का काम चल रहा था, उस समय सिवनी से पश्चिम दिशा में छिंदवाड़ा रोड़ पर अवस्थित लखनवाड़ा के स्टाप डेम में इस पुण्य सलिला को बड़ा सा स्टाप डेम बनाकर रोका गया था। यह स्टाप डेम सिवनी के नागरिकों की काफी हद तक प्यास बुझाने में सक्षम था। आज लखनवाड़ा में बैनगंगा की स्थिति दयनीय है। किसी को भी इसकी दुर्दशा से कोई सरोकार नहीं है।
बारिश के दिनों में जब बैनगंगा नदी उफनाती थी तब इसके रोद्र रूप से लोग सिहर उठते थे। लखनवाड़ा, मुगवानी रोड़ आदि पर इसका आवेग देखने भीड़ लगी होती थी। लोग अपना काम धंधा छोड़कर पुल के उपर से बहते पानी को देखने जाते लगता मानो मेला लगा हो। कई रेहड़ी वाले ठेले वाले तो बाकायदा अपनी दुकाने वहां लगा लेते हैं बारिश के दिनों में।
बैनगंगा नदी के उद्गम स्थल की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। जब तक संत आबू वाले बाबा का डेरा बैनगंगा के उद्गम मंुडारा में रहा तब तक यहां रौनक हुआ करती थी। अब मुंडारा का नाम लोगों की जुबान से विस्मृत होता दिख रहा है। घर के जोगी जोगड़ा, आन गांव के सिद्ध‘‘ की तर्ज पर सिवनी में मुंडारा का महत्व काफी घटता जा रहा है वहीं अन्य जिलों में जहां से होकर पुण्य सलिला गुजरती है, वहां मुंडारा को बहुत ही सम्मान की नजर से देखा जाता है।
अगर मुंडारा को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई जाए तो निश्चित रूप से यहां इसकी अनेकानेक संभावनाएं हैं। वैसे भी सिवनी जिले के पर्यटन स्थल बुरी तरह दुर्दशा के शिकार हो चुके हैं। फोरलेन मार्ग से महज चार पांच किलोमीटर की दूरी होने पर यह लोगो के आकर्षण का केंद्र बन सकता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
बैनगंगा नदी सिवनी जिले में लगभग साठ किलोमीटर का सफर तय करती है। एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध भीमगढ़ से जिला मुख्यालय सिवनी सहित अनेक गांवों को जलापूर्ति के साथ ही साथ दाई और बाईं तट नहर योजना के द्वारा किसानों को भी खेती के लिए विपुल मात्रा में पानी प्रदाय किया जाता है।
कितने आश्चर्य की बात है कि सिवनी जिले में भीमगढ़ बांध को अगर छोड़ दिया जाए तो इन साठ किलोमीटर के मार्ग में पुण्य सलिला को रोकने स्टाप डेम जैसी व्यवस्था तक नहीं की गई है। अगर जगह जगह इसका पानी रोक दिया जाता तो रूके पानी से आसपास के जल स्त्रोत रिचार्ज हो सकते थे। वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं है।
इसका सीधा कारण सिवनी जिले के सांसद विधायकों और उनके लग्गू भग्गुओं की अदूरदर्शी सोच है। किसी ने भी किसानों के बारे में सोचने की जहमत नहीं उठाई है। यही कारण है कि जिले के किसानों की रीढ़ टूटी हुई है। केवलारी पलारी क्षेत्र में सुश्री विमला वर्मा ने दूर की सोच को रखते हुए नहरों का जाल बिछाने का काम आरंभ किया था, क्योंकि वे केवलारी से विधायक थीं। उन्ही की दूरदर्शी सोच का परिणाम है कि आज केवलारी और पलारी के कुछ हिस्सों को उपज के मामले में पंजाब माना जाता है।
जिला प्रशासन के मुलाजिम भी जिला कलेक्टर के उस आदेश को जिसमें पानी का उपयोग घरेलू के अलावा अन्य किसी भी तरह का नहीं किया जाए, का खुला माखोल उड़ाते दिख रहे हैं। जिले भर में ना जाने कितने स्थानों पर पानी का व्यवसायिक उपयोग हो रहा है। ना जाने कितनी मोटर, लगाकर सार्वजनिक जल स्त्रोतों से पानी खींचा जा रहा है, पर सरकारी अमला शांत ही दिख रहा है।
आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि सिवनी शहर में ही बबरिया, दलसागर, बुधवारी, मठ के साथ ही साथ रेल्वे स्टेशन के पास दो तालाब होने के बाद भी रियाया पानी को सदा ही तरसती रहती है। बैनगंगा नदी से सभी को बहुत ज्यादा उम्मीदें होना स्वाभाविक ही है। इस नदी का इस तरह समय के पहले ही साथ छोड़ देना शुभ संकेत तो कतई  नहीं माना जा सकता है।
भीमगढ़ बांध में जो हिस्सा अभी सूखा हुआ है उस हिस्से में मशीनों के माध्यम से खुदाई करवाई जा सकती है। इससे निकलने वाली मिट्टी भी बहुत उपजाउ होगी और किसानों के लिए वह वरदान से कम नहीं होगी। इससे भीमगढ़ बांध में जल भराव क्षेत्र में बढोत्तरी हो सकती है।
सांसद विधायकों से उम्मीद करना तो बेमानी ही होगा। जिला प्रशासन से ही अपेक्षा की जा सकती है कि समय रहते बैनगंगा नदी के गहरीकरण का काम प्राथमिकता पर करवाया जाए, साथ ही जिले में बैनगंगा के मार्ग में छोटे छोटे स्टापडेम अवश्य बनवाए जाएं। लखनवाड़ा के स्टाप डेम को दूरूस्त करवाया जाए, ताकि भविष्य में गर्मियों के मौसम में पुण्य सलिला भरी पूरी रहे।

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