शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

भाजपा का हुआ कांग्रेसीकरण

भाजपा का हुआ कांग्रेसीकरण

पदलोलुपता ने दिलाई संघ और भाजपा के सारे सिंद्धांतो को तिलांजलि

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। पार्टी विद डिफरेंस और स्वयं को कथित रूप से रा.स्व.संघ के अनुशासन और सिद्धांतों का ध्वजवाहक प्रचारित करने वाली भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतों की पोल सरे राह 13 अगस्त को सड़को पर खुलती दिखाई दी।
अवसर था प्रदेश नेतृत्व के निर्देश पर तीसरी बार सरकार बनाने के प्रयास में कार्यकर्ताओं में उर्जा भरने के आशय से विधानसभा स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन का जिसमें प्रदेश संगठन महामंत्री अरविदं मेनन और प्रदेश सरकार के पशुपालन मंत्री तथा पड़ौसी जबलपुर जिले की पाटन जो परिसीमन के पूर्व तक इसी सिवनी संसदीय क्षेत्र का अंग था के विधायक अजय विश्नोई को पंहुचना था किंतु परिस्थितियों को भांप कर अरविंद मैनन तो अपना कार्यक्रम निरस्त कर गये किंतु पूर्व से सिवनी से परिचित और किसी समय प्रदेश मंत्री के रूप में सिवनी जिले के प्रभारी रहे विश्नोई को इस मंशा से सिवनी भेज दिये कि शायद पूर्व परिचय के आधार पर वे जिले के कार्यकर्ताओं को समझाने में सफल हो जाायेंगे।
कहा जा रहा है कि नेताद्वय का वह पूर्वानुमान सार्थक नहीं हो पाया। लगातार कार्यक्रम बनाकर उसे तीन चार बार निरस्त कर चुके अरविंद मेनन की कार्यशैली और स्थानीय नेताओं की कार्यप्रणाली से कथित रूप से त्रस्त सिद्धांतवादी भाजपा के कार्यकर्ता इतने आक्रोशित हुए कि अपने ही नेताओं के हटाओं और मुर्दाबाद के नारे सड़को पर लगाने लगे।
जब से स्थानीय कार्यकर्तााओं का इस बात की भनक लगी है कि प्रदेश के संगठन महामंत्री के नाते टिकट वितरण के सर्वाधिक शक्तिसंपन्न अरविंद मैनन ने छिंदवाड़स में सिवनी विधानसभा के तीनों संभावित सवर्ण वर्र्गीय प्रत्याशियों को इस बार शंात रहने की फटकार लगाई है और प्रदेश के नेतृत्व इस बार किसी पिछड़ा वर्ग के नेता को सिवनी से उम्मीदवार बनाने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है तब से ही समूचे जिले के पिछ़ा वर्ग के तमाम नेता अपना पूरा ध्यान सिवनी पर केंद्रित कर चुके हैं।
माना जा रहा है कि उस की ही एक झलक गत 13 अगस्त को पैराडाइज लॉन में दिखाई दी थी। यद्यपि पिछड़ा वर्ग के नेताओं के प्रयासों और महत्वाकांक्षाओं को अनुचित नही कहा जा सकता किंतु अभिव्यक्ति का तरीका किसी भी द्रष्टि से सही नहीं माना जा सकता।
राजनीति में महत्वाकांक्षा एक अच्छा लक्षण माना जाता है किंतु उसे प्राप्त करने के लिये सीमाओं का उल्लंघन किसी भी सभ्य समाज विशेषकर सिद्धांतों पर आधारित राजनीति करने का दम भरने व वाली पार्टी के कार्यकर्ताओं को शोभ नहीं देता। 13 अगस्त की घटना से यह तो कुछ हद तक सामने आ गया है कि सत्ता के तामझाम के वशीभूत होकर बड़ी संख्या में ऐसे लोग भाजपा के परिवार में शामिल होते जा रहे हैं जिन्हे पार्टी के सिद्धांतों की न तो जानकारी है और न ही वे उसे समझना चाहते है।
इसके साथ ही पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारियों को भी इस बात पर गहन चिंतन करना नितांत आवष्यक है कि परिवार के विस्तार की अंधीदौड़ में वे ऐसे लोगों को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं जो किसी भी समय स्वयं उनके लिये ही भस्मासुर बनने से नहीं चूकते हैं।
पार्टी के प्रति समर्पित और निःस्वार्थ रूप से सेवा करने वाले कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर अवसरवादी तत्वों को प्रोत्साहित करने का ऐसा खमियाजा तो नेताओं को भोगना ही पड़ता है और उसका प्रदर्शन 13 अगस्त की भंाति हो तो उसके लिये स्वयं नेताओं को ही आत्मावलोकन करना चाहिये।

कारण और परिणाम चाहे जो भी हों कितंु 13 अगस्त की घटनाये जिला विशेषकर सिवनी विधानसभा क्षेत्र कि लिये शुभ लक्षण नहीं मानी जा सकती। जिला मुख्यालय से चलने वाली बयार यदि जिले भर में फैल गई तो ऐसा न हो कि 1978 का इतिहास दोहरा जाये जब प्रदेश में तो जनता पार्टी की सरकार थी किंतु जिले की सभी पाचं सीटों पर कांग्रेस का परचम फहराया था, यदि जिले के लिये ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण समय आया तो जिले के विकास का जो अपूर्णनीय नुकसान होगा उसके के लिये जिले की जनता सत्ताधारी दल के पदाधिकारयिां ओर कथित रूप से अपना अधिकार मांगने वाले नेतओं को कभी माफ नहीं करेगी।

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