रविवार, 27 अक्टूबर 2013

फिरोज को फांसी, राकेश को उम्रकैद

फिरोज को फांसी, राकेश को उम्रकैद
(लिमटी खरे)
अंततः सिवनी की गुड़िया के साथ दुष्कर्म और उसकी मौत के लिए जिम्मेवार दुर्दांत आरोपी फिरोज खान और राकेश चौधरी को कानून ने अपना फैसला सुना दिया है। फिरोज को फांसी की सजा और राकेश चौधरी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। फास्ट ट्रेक अदालत में आज दोनों ही आरोपियों को नाप दिया गया है। 17 अप्रेल को घटी इस घटना में लगभग छः माह में फैसला आना सुखद ही माना जाएगा।
इस पूरे मामले में आरोपी तो नप गए, जो वाकई प्रशंसनीय ही माना जाएगा। घटनाक्रम पर अगर नज़र डाली जाए तो 17 अप्रैल को बिहार मूल के फिरोज खान नामक युवक ने 17 अप्रेल की मध्य रात्रि में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान् मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड में कथित तौर पर काम करने वाले फिरोज द्वारा बहला फुसलाकर पास के खेत में ले जाया गया। कहा जाता है कि खेत में फिरोज ने गुड़िया के साथ हैवानियत का नंगा नाच कर, मानवता को शर्मसार कर दिया था।
गुड़िया के अचानक ही गायब हो जाने से परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक ही था। अगले दिन गुड़िया बेहोशी की हालत में खेत में मिली। गुड़िया को तत्काल स्थानीय प्राथमिक उपचार के बाद जबलपुर ले जाया गया। जबलपुर से उसे नागपुर भेजा गया, जहां उसे केयर अस्पताल में भर्ती किया गया। नागपुर में गुड़िया ने दम तोड़ दिया। दिल्ली में निर्भया के साथ हुए दुराचार और उसकी मौत पर सिवनी में भी मातम मनाया गया था। चार साल की अबोध गुड़िया ने दुराचार का शिकार होने के उपरांत लगभग बारह दिन तक जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष किया। 29 अप्रैल की शाम लगभग आठ बजे गुड़िया ने अंतिम सांस ली।
सिवनी की गुड़िया के प्रति संवेदना प्रकट करना शायद समाज सेवा का दंभ भरने वाले सामाजिक और राजनीतिक संगठनों को गवारा नहीं हुआ, तभी तो सिवनी की गुड़िया के बारे में इक्का दुक्का प्रदर्शन के बाद मामला ठण्डे बस्ते के ही हवाले कर दिया गया। हो सकता है राष्ट्रीय स्तर पर उछले निर्भया मामले में मीडिया की सुर्खियां बटोरने की गरज से, सिवनी के अनेक संगठनों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई हो। पब्लिसिटी की गुंजाईश सिवनी की गुड़िया के मामले में कम ही दिखी हो इसलिए संभवतः संगठनों ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी लेना भी मुनासिब नहीं समझा हो।
उस वक्त तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक संजय झा ने इस मामले में पूरी तत्परता दिखाई। समाचार चैनल्स और अन्य मीडिय में जब फिरोज की तस्वीर सार्वजनिक हुई, तब खबर आई कि बिहार के हुसैनाबाद में फिरोज को देखा गया। वहां भीड़ ने पकड़कर इसे पुलिस के हवाले कर दिया। तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक संजय झा ने साफगोई के साथ इस गिरफ्तारी का श्रेय जनता को ही दिया। उनके अनुसार पुलिस के दल भी पतासाजी में लगे हुए थे, किन्तु जनता की जागरूकता के चलते फिरोज को पुलिस के शिकंजे में लाया जा सका।
इस पूरे मामले में मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के प्रबंधन और घंसौर पुलिस को भी शक के दायरे से बरी शायद नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि अगर कोई बाहर से आकर किसी शहर में रह रहा हो तो उसकी मुसाफिरी संबंधित थाने में दर्ज कराया जाना अत्यावश्यक है। साथ ही साथ मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के कर्मचारी द्वारा अगर इतनी बड़ी घटना को अंजाम देकर हैवानियत का परिचय दिया गया तो उसके खिलाफ भी पुलिस को संज्ञान लेना जरूरी था। इसका कारण यह है कि झाबुआ पॉवर लिमिटेड के द्वारा अपने कर्मचारियों या वहां काम करने वाले ठेकेदारों के पास काम करने वालों की न तो मुसाफिरी दर्ज करवाई गई थी और न ही चरित्र सत्यापन ही कराया गया था।
पिछले साल भाजपा के युवा नेता नरेंद्र ठाकुर ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से पुलिस प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि बाहर से आकर सिवनी में रहने वालों की न केवल मुसाफिरी दर्ज करवाई जाए वरन् उनका चरित्र सत्यापन भी उनके मूल रिहाईश वाले थाना क्षेत्रों से करवाया जाए। यह काम आज का नहीं है। मुसाफिरी दर्ज करवाने का काम न जाने कितने दशकों पुराना है, पर वर्तमान में पुलिस की अपने काम से इतर अन्य व्यस्तताओं के चलते, यह हाशिए पर चला गया है।
मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड का यह दायित्व था कि वह अपने संस्थान में काम करने वाले हर कर्मचारी और वहां कार्यरत अन्य ठेकेदारों के कारिंदों का चरित्र सत्यापन और उनकी मुसाफिरी दर्ज करवाने का काम करते, वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं। घंसौर की गुड़िया के इलाज के लिए भी झाबुआ पॉवर लिमिटेड की ओर से उनके जनसंपर्क अधिकारी के बजाए मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क अधिकारी द्वारा यह कहा गया था कि झाबुआ पॉवर लिमिटेड गुड़िया के इलाज के लिए हर संभव कोशिश करेगी।
20 अप्रैल को तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी घनश्याम सिरसाम ने मीडिया से जुड़े लोगों को एक एसएमएस कर जानकारी दी थी कि गुड़िया के इलाज का सारा खर्च मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड द्वारा उठाया जा रहा है। इसके उपरांत प्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्त जब गुड़िया का हाल चाल जानने नागपुर पहुंचे तब उन्होंने मीडिया से रूबरू होकर कहा कि गुड़िया के इलाज का खर्च प्रदेश सरकार उठा रही है।
सवाल यह उठता है कि अरबों खरबों रूपए के स्वामित्व वाले एक संस्थान द्वारा गुड़िया के इलाज का खर्च उठाया गया और दूसरी ओर प्रदेश सरकार द्वारा भी वही इलाज का खर्च उठाने का दावा किया गया। बावजूद इसके गुड़िया को नहीं बचाया जा सका। हमने उस वक्त भी लिखा था कि तेरह का आंकड़ा बहुत ही अशुभ माना जाता है सनातन पंथियों में। तेरह के अंक को लेकर न जाने कितनी किंवदंतियां हैं। टेलीफोन में तेरह नंबर लेना कोई पसंद नहीं करता। वाहनों के पंजीयन में भी 13 नंबर दिखाई नहीं देता। मानव की मृत्यु के उपरांत सनातन पंथियों में उसकी अंतिम रस्म तेरहवीं ही होती है। तेरहवें दिन ही सिवनी की गुड़िया ने अपनी अंतिम सांस ली। गुड़िया के प्राण त्यागने से न जाने कितने प्रश्न अब अनुत्तरित ही रह जाएंगे।
कितने आश्चर्य की बात है कि चार साल की गुड़िया को जबलपुर इलाज के लिए ले जाया गया। जहां उसके इलाज में लापरवाही बरतने के संगीन आरोप हैं। इसके बाद उसे एयर एंबूलेंस से नागपुर ले जाया गया। नागपुर के केयर अस्पताल का सुझाव आखिर दिया किसने? क्या केयर अस्पताल इस मासूम के इलाज के लिए सक्षम था? जिस अस्पताल में जांच की जरूरी सुविधाएं ही न हों, उस अस्पताल में मासूम को ले जाने का क्या औचित्य? प्रदेश सरकार ने जाने अनजाने में केयर अस्पताल की ब्रॉडिंग का काम कर दिया है। अब केयर अस्पताल यह दावा आसानी से कर सकता है कि कम से कम मध्य प्रदेश सरकार की नजरों में नागपुर का केयर अस्पताल सर्वेश्रेष्ठ है। मासूम को जांच के लिए दूसरे अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ा। केयर अस्पताल को हाल ही में मध्य प्रदेश शासन के कर्मचारियों के लिए पेनलबद्ध किया गया है। अस्पताल अपने आप को पेनलबद्ध क्यों कराते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। जाहिर है अपनी अस्पताल रूपी दुकान की दिन दूनी रात चौगनी वृद्धि के मद्देनजर ऐसा किया जाता है।
सवाल यह उठता है कि जब उसे एयर एंबूलेंस मंे जबलपुर से नागपुर ले जाया गया तो क्या मासूम को एयर एंबूलेंस से जबलपुर से नई दिल्ली नहीं ले जाया जा सकता था? क्या कारण था के मासूम के इलाज में कोताही बरती गई? इसके लिए दोषी कौन है? जब तक मामला नहीं उछला, तब तक मासूम को घंसौर जैसी छोटी जगह पर ही इलाज के लिए रखा गया? उसे जिला चिकित्सालय सिवनी तक नहीं ले जाया गया? क्या यही है देश के उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान् मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के द्वारा सामाजिक जिम्मेदारी, यानी सीएसआर के नियम कायदों का निर्वहन।
गुड़िया के दुनिया छोड़ने के बाद भी उसके शव को डीप फ्रीजर नसीब नहीं हुआ। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जिस आलीशान केयर अस्पताल में गुड़िया को भर्ती करवाया गया था, वहां डीप फ्रीजर ही नहीं था कि उसका शव रखा जा सके। गुड़िया को केयर अस्पताल ने पौने आठ बजे मृत घोषित कर दिया। इसकी सूचना बर्डी के पुलिस थाने को दे दी गई। इसके उपरांत गुड़िया के शव को एमपी पुलिस और परिजनों की मौजूदगी में आयुर्विज्ञान कॉलेज अस्पताल नागपुर भेजा गया, जहां कागजी खानापूर्ती में साढ़े दस बज गए। वहां शव को रखने के लिए डीप फ्रीजर मौजूद नहीं था, दो डीप फ्रीजर थे पर वे खराब थे। गुड़िया का शव गर्मी में वैसा ही पड़ा रहा। इसके बाद उसके शव को सेंट्रल एवेन्यू रोड पर स्थित मेयो अस्पताल रिफर करने की तैयारी की गई। रिफर होने में साढ़े बारह बज गए। रात लगभग एक बजे गुड़िया के शव को मेयो अस्पताल के शव गृह में रखा जा सका।
उस मां पर क्या बीती होगी जिसकी फूल सी गुड़िया दुष्कर्म के बाद शांत हो गई हो। जिला प्रशासन या सिवनी की जनता के सेवक सांसद विधायक या और दलों के नेता अगर चाहते तो सिवनी से सिंधी समाज के डीप फ्रीजर को इतनी देर में नागपुर भेजकर गुड़िया के शव को सुरक्षित रखने की माकूल व्यवस्था कर ली जाती। सिवनी से आठ बजे भी अगर इसे रवाना किया जाता तो निश्चित तौर पर ग्यारह बजे तक वह डीप फ्रीजर गुड़िया के पास पहुंच जाता। वस्तुतः अनुभवहीनता के कारण ही ऐसा हुआ माना जा सकता है। सिवनी संसदीय क्षेत्र दो टुकड़े में बंट गया है, एक का प्रतिनिधित्व कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम कर रहे हैं जिनके संसदीय क्षेत्र में यह घटना घटी है और दूसरे का भाजपा के के.डी.देशमुख।
इसके बाद गुड़िया की अंत्येष्ठी के वक्त यह कहा गया था कि मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड द्वारा गुड़िया के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी। इसके अलावा उसके परिवार को आर्थिक इमदाद भी मुहैया करवाई जाएगी। विडम्बना ही कही जाएगी कि उसके परिजनों को ऐसा कुछ नहीं मिल सका। बहरहाल, सिवनी की अदालत के फैसले से पीड़ित परिवार के रिसते जख्मों पर कुछ हद तक मरहम लगा होगा। गुड़िया की मां और नानी ने आज मीडिया कर्मियों से रूबरू होकर यही कहा कि इन दरिंदों को उनकी फूल सी बेटी के साथ की गई हैवानियत के लिए बेटी की तड़प से कहीं ज्यादा सजा दी जाए। एक मां की ममता को समझा जा सकता है।

गुड़िया पर अदालत का फैसला सिवनी के लिए एक नज़ीर से कम नहीं होगा। इतने कम समय में दिए गए फैसले का स्वागत किया जा रहा है। अब जवाबदेही जिला और पुलिस प्रशासन की है कि वह जिले में पुलिस के तंत्र विशेषकर खुफिया तंत्र को इतना मजबूत करे कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। साथ ही साथ गुड़िया के हादसे के बाद तत्कालीन आईजी संजय झा के निर्देश, कि बाहर से आए लोगों की मुसाफिरी बाकायदा दर्ज हो तथा किराए से रहने वालों की किराएदारी की जानकारी पुलिस को देना मकान मालिक का दायित्व बनाया जाए। इससे संवेदनशील सिवनी की आवाम को काफी हद तक राहत मिल सकती है। चुनाव सर पर हैं अतः चुनावी रण में उतरे प्रत्याशियों द्वारा मनी पॉवर के साथ ही साथ मसल पॉवर का उपयोग भी जमकर किया जा सकता है। बाहर से जरायम पेशा लोग भी आ सकते हैं। चुनाव के दौरान इस तरह की परिस्थितियां प्रशासन के लिए सरदर्द से कम नहीं होंगी, इसलिए अभी समय है और समय रहते चेतने में ही भलाई है।

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