शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

दिया तले अंधेरा की कहावत चरितार्थ हो रही छपारा में

कौन समझेगा सिवनी की प्रसव वेदना. . .2

दिया तले अंधेरा की कहावत चरितार्थ हो रही छपारा में

(लिमटी खरे)

सिवनी के नाम से शहरों के नामों की कमी प्रदेश में नहीं है। होशंगाबाद जिले का सिवनी मालवा भी काफी मशहूर है। जिला सिवनी को सिवनी छपारा के नाम से पहचाना जाता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सिवनी को देश प्रदेश में पहचान दिलाने में छपारा का अपना अलग महत्व है। बावजूद इसके छपारा आज भी विकास को बुरी तरह तरस रहा है। छपारा के अविकसित रहने की पीड़ा यहां के निवासियों को अवश्य ही सालती होगी।
छपारा का नाम आते ही लोगों के जेहन में कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह ठाकुर का नाम आना स्वाभाविक ही है। हरवंश सिंह ठाकुर ने छपारा को एक पहचान दिलवाई है। इसका कारण हरवंश सिंह ठाकुर की रिहाईश छपारा के करीब बर्रा में होना है। इसके अलावा सिवनी की सांसद रहीं और वर्तमान में सिवनी की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया का आशियाना भी छपारा में है। छपारा निवासी रमेश जैन को सिवनी विधानसभा के लोगों ने विशाल जनादेश देकर विधायक बनाया।
छपारा की जनता ने वैसे तो कांग्रेस पर ही भरोसा जताया है। वर्ष 2008 में जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हैट्रिक लगाई उस समय भी छपारा अंचल के लोगों ने कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह ठाकुर को ही अपना भाग्य विधाता चुना। छपारा के लोगों का दर्द आज भी उनके चेहरे पर दिखाई पड़ता है क्योंकि भाजपा की सांसद रहीं और वर्तमान में सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कांग्रेस के हरवंश सिंह ठाकुर, कांग्रेस के विधायक रमेश जैन के रहते हुए भी छपारा आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात पर अवस्थित छपारा शहर के लोगों के दर्द को इस बात से समझा जा सकता है कि प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा के भरपूर कद के नेता देने के बाद भी छपारा को नगर पंचायत का दर्जा नहीं मिल पाया है। छपारा संभवतः प्रदेश की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है जिसमें तीस हजार से अधिक जनता निवासरत है। छपारा को ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बनाने की मांग नई नहीं है। इसके पहले भी छपारा के निवासियों ने कांग्रेस के तत्कालीन त्रिविभागीय मंत्री हरवंश सिंह ठाकुर के अलावा भाजपा की सांसद और वर्तमान सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, पूर्व विधायक रमेश चंद जैन सहित प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनेकों बार गुहार लगाई। विडम्बना ही कही जाएगी कि छपारा के लोगों के हाथों में हर बार ही लालीपॉप लगा। कमोबेश यही आलम कान्हीवाड़ा का है, जिसे उपतहसील का दर्जा दिया जाना था।
छपारा की माटी में पलकर देश प्रदेश में नाम रोशन करने वाले नेताओं के बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि नेता यहीं से पनपे हैं मगर इन नेताओं ने छपारा के विकास के बारे में कभी विचार नहीं किया है। स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधनों का अभाव किसी से छिपा नहीं है और वहीं दूसरी ओर यहां के नेताओं की दिन दूगनी रात चौगनी दर से बढ़ने वाली संपत्ति भी किसी से छिपी नहीं है।
कहने को तो छपारा शहर के दक्षिणी मुहाने से पुण्य सलिला बैनगंगा गुजरती है, बावजूद इसके छपारा के लोगों के कण्ठ प्यासे ही रह जाते हैं। कहा जाता है कि छपारा शहर में चार दशकों पुरानी नल जल योजना के भरोसे ही पानी की सप्लाई हो रही है। छपारा से कुछ ही दूरी पर बर्रा में निवास करने वाले स्व.हरवंश सिंह ठाकुर प्रदेश सरकार में दस साल तक मंत्री रहे। इतना ही नहीं हरवंश सिंह ठाकुर प्रदेश के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री रहे पर छपारा में दिया तले अंधेराकी कहावत चरितार्थ हो रही है। हरवंश सिंह ठाकुर जैसे कद्दावर नेता के रहते हुए भी छपारा में नल जल योजना का न बन पाना अपने आप में विकास की झूठी कहानी कहने के लिए पर्याप्त है।
वर्तमान में चुनावी बिसात में गर्माहट महसूस की जाने लगी है। इस चुनावी गर्माहट में अब जनता प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा से उनके द्वारा पिछले दशकों में किए गए कामों का लेखा जोखा लेकर बैठी है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही तब हरवंश सिंह विधायक और मंत्री रहे, उस वक्त विपक्ष में भाजपा थी। वर्ष 2003 के उपरांत दस सालों से प्रदेश में भाजपा की सरकार है और विपक्ष में कांग्रेस बैठी है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पिछले ढाई दशकों में छपारा की समस्याओं को लेकर किसी ने भी विधानसभा में इस संबंध में प्रश्न करना तो दूर एक ध्यानाकर्षण लगाना तक मुनासिब नहीं समझा।

छपारा क्षेत्र की जनता की खामोशी से लग रहा है मानो वह अब सोच समझकर ही कोई फैसला लेने वाली है। छपारा वर्तमान में केवलारी विधानसभा का अंग है। क्षेत्र की जनता कांग्रेस और भाजपा को सालों से आजमाए हुए है, बावजूद इसके छपारा में विकास की किरण प्रस्फुटित न हो पाना भी अपने आप में रिकार्ड ही माना जाएगा। प्रमुख सियासी दलों के प्रत्याशियों से अगर जनता ने यह प्रश्न पूछ लिया कि आखिर दशकों से उनके हितों में इन प्रत्याशियों द्वारा उपयुक्त मंच यानी विधानसभा में क्या प्रश्न किए गए और उन पर क्या कार्यवाही हुई तो प्रत्याशियों के सामने समस्या खड़ी हो सकती है। वहीं दूसरी ओर अब क्षेत्र की जनता नए चेहरे की ओर देखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं: