सोमवार, 9 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------04

क्या जनसेवक हैं फोरलेन मामले में दोषी!

2008 में जब उत्तर दक्षिण गलियारे के सिवनी पेच का काम रोक दिया गया था, तब सिवनी के पांच विधानसभा सीट पर जनादेश से चुने गए नुमाईंदों और परिसीमन में अवसान हुई लोकसभा सीट के सांसद ने जनादेश का सम्मान क्यों नहीं किया गया यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है। लोकसभा चुनावों के बाद अचानक ही सिवनी की फिजां में यह बात तैर गई थी कि उत्तर दक्षिण गलियारे में फोरलेन का काम रोक दिया गया है। जनता का आक्रोश इस बात की जानकारी मिलने के साथ ही चरम पर पहुंच गया था। मजे की बात तो यह है कि जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों की कार्यवाही के चलते आचार संहिता के दौरान ही उठाए गए थे।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का काम वन विभाग के एक आदेश के साथ ही अक्टूबर 2008 में रूक गया था, जिसके तहत वन विभाग ने एनएचएआई को पेड काटने पर उसके खिलाफ वन अधिनियम के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करना आरंभ कर दिया था। वैसे छोटी छोटी बातों पर बारीक नजर रखने वाले सिवनी जिले के सांसद और विधायकों की इस मामले में चुप्पी भी आश्चर्यजनक ही मानी जा रही है।

गौरतलब होगा कि वन उत्तर सिवनी सामान्य वन मण्डलाधिकारी द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को मुख्य वन संरक्षक सिवनी को लिखे पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि एनएच ने वन विभाग की भूमि को अपना बताकर इस पर खडे पेड काटने की निविदा जारी कर पेड कटाई का काम आरंभ कर दिया था, जिसे वन विभाग ने अवैध माना, और वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था। यही वह समय माना जा सकता है, जब उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में काम को रोका गया था।

जिला मुख्यालय सिवनी से उत्तर दिशा में बंजारी माता के आगे वाले हिस्से में जो काम बंद पडा हुआ है, उस बारे में न तो एनएचएआई और न ही जिला प्रशासन या वन विभाग कुछ स्पष्ट करने की स्थिति में ही नजर आ रहा है। कुल मिलाकर इस समूचे काम के बंद होने में षणयंत्र की बू साफ तौर पर आ रही है। तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा भी इस सडक से पेड की कटाई का आदेश रोकने के नए आदेश जिस वक्त जारी किए गए उस वक्त मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की मुनादी पिटी हुई थी और आचार संहिता चल रही थी। जाहिर सी बात है कि राजनेता उस वक्त अपने अपने उम्मीदवार को जिताने या हराने का उपक्रम ही कर रहे थे।

आश्चर्य की बात तो यह है कि विधानसभा अथवा लोकसभा चुनावों के दौरान जब जिला प्रशासन को दम लेने की फुर्सत भी नहीं होती है, उस दौरान सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा गठित केंद्रीय साधिकार समिति के अनुरोध पर मध्य प्रदेश सरकार के निर्देशों की प्रत्याशा में तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने यह आदेश जारी कर दिया कि पूर्व में जिला कलेक्टर द्वारा जारी पेड कटाई के समस्त आदेश इस आदेश से निरस्त किए जाते हैं।

इस मामले में षणयंत्र की बू इसलिए भी आती है, क्योंकि जिला कलेक्टर का 18 दिसंबर 2008 का उक्त आदेश जिसे 19 दिसबर को पृष्ठांकित किया गया है, की एक प्रति जिला जनसंपर्क अधिकारी के पास इसलिए भेजी गई थी कि वे इस मामले का प्रचार प्रसार स्थानीय मीडिया के माध्यम से करें। विडम्बना यह है कि जिला जनसंपर्क विभाग ने भी इस मामले में मौन अख्तियार करना ही बेहतर समझा। पीआरओ कार्यालय का मौन निश्चित तौर पर किसी वरिष्ठ अधिकारी के डंडे के चलते ही रंग लाया होगा।

आचार संहिता की समाप्ति के उपरांत सरकार बनाने गिराने का सिलसिला आरंभ हुआ, और विधायक सांसदों के लिए सिवनी की जनता का जनादेश गौड होकर निहित स्वार्थ पहली प्राथमिकता बन गए। विधानसभा के उपरांत जब लोकसभा चुनाव हुए तो सिवनी जिले को दो पालकों के हाथों में सौंप दिया गया। सिवनी और बरघाट विधानसभा के लोगों के पालनहार बने बालाघाट के सांसद के.भाजपा के डी.देखमुख तो केवलारी और लखनादौन के खिवैया बने मण्डला के कांग्रेस के बसोरी मसराम।

पूरा एक साल बीत चुका है, किन्तु आज तक न तो सिवनी के विधायक कांग्रेस के हरवंश सिंह, भाजपा के कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर, श्रीमति नीता पटेरिया ने विधानसभा में इस बात को नहीं उठाया है। इतना ही नहीं सांसद द्वय मसराम और देशमुख ने भी इस मामले से अपने आप को दूर ही रखा है।

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