सोमवार, 9 अगस्त 2010

कम हो सकती है पुलिस की दादा गिरी

ये है दिल्ली मेरी जान


(लिमटी खरे)


अब पुलिस पर लगी कसाम सबसे बडी अदालत ने


पुलिस जो चाहे सो कर सकती है। पुलिस की अगाडा, घोडे का पिछाडा और मौत का नगाडा इन तीनों चीजों से बचने की सलाह हर वक्त ही दी जाती है। आजादी के बाद भारत में पुलिस को इतना अधिकार समपन्न बना दिया गया है कि कोई भी पुलिस से टकराने की हिमाकत नहीं करता सिवाय जनसेवकों के। पुलिस के कहर से आम आदमी बुरी तरह खौफ जदा है। वैसे एक तरह से देखा जाए तो पुलिस का खौफ लोगों के मानस पटल से उड जाए तो देश में अराजकता की स्थिति बन जाएगी। वैसे तो पुलिस के पर अदालतोे ने कई मर्तबा कतरे हैं, पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के मामले में पहली दफा पुलिस को आडे हाथों लिया है देश की सबसे बडी अदालत ने। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए एक हत्याकांड में तीन आरोपियों को मृत्युदण्ड से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर सच्चाई का एनसाईक्लोपीडिया नहीं है, यह पुलिस को सिर्फ अपराध के प्रति आश्वस्त करने का काम करता है। जस्टिस हरजीत सिंह बेदी और जे.एम.पंचाल ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए कहा कि किसी आरोपी को इसलिए बरी नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसका नाम एफआईआर मंे नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश से पुलिस की कार्यप्रणाली में अगर बदलाव आ जाए तो आम आदमी कुछ सुकून महसूस अवश्य ही कर सकेगा।






कैंसर मरीज से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं व्हीआईपी


लगता है कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की संवेदनाएं पूरी तरह मर चुकी हैं। यही कारण है कि उसकी नजरों में बीमार की तीमारदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण अब अतिविशिष्ट लोग लगने लगे हैं। जी हां, यह सोलह आने सच है, केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत त्रणमूल कांग्रेस की रेलमंत्री के नेतृत्व वाले रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल में कैंसर मरीजों की सीटों का कोटा घटा दिया है। आपातकालीन कोटे के तहत अब उन्हें आवंटित होने वाली बर्थ की संख्या की सीमा पूरी तरह तय कर दी गई है। बेशर्म केंद्र सरकार ने यह कदम अतिविशिष्ट लोगों को ज्यादा सीटें मुहैया करवाने की गरज से उठाया है। रेल राज्य मंत्री के.एच.मणियप्पा ने लोकसभा में यह जानकारी दी है। मणियप्पा का तर्क था कि रेल्वे के जोनल कार्यालयों से उन्हें एसी सूचना मिली है कि कैंसर के मरीजों का पूरा कोटा प्रयोग में आने से रेल्वे को अतिविशिष्ट लोगों को जरूरत पडने पर सीट मुहैया नहीं करवाई जा पा रही हैं। यह है भारत गणराज्य की कांग्रेसनीत केंद्र की सरकार जिसकी नजर में कैंसर जैसे गंभीर रोग से पीडित के बजाए अतिविशिष्ट लोगों की अहमियत ज्यादा है। मजे की बात तो यह है कि इस तरह के कदम में विपक्ष ने भी अपना मौन समर्थन देकर जता दिया है कि उसकी नजरों में भी बीमार की अहमियत कितनी है।






मतलब गुजरात दुश्मन देश का हिस्सा है


सीबीआई क्या कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के घर की लौंडी बन चुकी है? यह सवाल देश के हर नागरिक के जेहन में आज भारत की आजादी के छः दशकों बाद भी कौंध रहा है। इसका कारण कांग्रेस और भाजपा के बीच सोहराबुद्दीन की फर्जी मुटभेड के मामले में चल रही चिल्ल पों और आरोप प्रत्यारोप के बाद उपजी परिस्थितियां ही हैं। सोहराबुद्दीन मामले में एक मंत्री का त्यागपत्र ले चुके सूबे के निजाम नरेंद्र मोदी सीबीआई के कडे रूख से खासे आहत नजर आ रहे हैं। मोद ने कंेद्र सरकार से पूछा है कि क्या भारत गणराज्य के गुजरात सूबे को दुश्मन देश का हिस्सा मान लेना चाहिए? गौरतलब है कि खबरें आ रही हैं कि इस मामले की सुनवाई में सीबीआई को आशंका है कि गुजरात में अगर इसकी सुनवाई हुई तो निष्पक्ष नहीं हो सकती है। सीबीआई के स्टेंड से नरेंद्र मोदी हत्थे से उखड गए हैं। मोदी का मानना है कि सीबीआई का दुरूपयोग कांग्रेस द्वारा जमकर किया जा रहा है।






कोर्ट ने मंगवाई नेता जी की केस डायरी


परिसीमन में विलोपित हुई मध्य प्रदेश की लोकसभा सीट की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय को अपने में समाहित करने वाली सिवनी विधानसभा सीट की विधायक के उपर हुए प्राणघातक हमले के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पुलिस से केस डायरी प्रस्तुत करने को कहा है। 26 दिसंबर 2007 को तत्कालीन सांसद श्रीमति नीता पटेरिया के सारथी राजदीप चौहान की शिकायत पर सिवनी जिले के बंडोल पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसका लब्बो लुआब यह था कि मध्य प्रदेश के वर्तमान विधानसभा उपाध्यक्ष और उस वक्त के केवलारी विधायक ठाकुर हरवंश सिंह के इशारे पर उनके समर्थकों ने श्रीमति पटेरिया के वाहन पर पत्थरों से हमला किया था। राजदीप का आरोप था कि तत्कालीन सांसद के वाहन पर जमकर पत्थर बरसाए जिससे सांसद श्रीमति पटेरिया अपने पुत्र सहित किसी तरह जान बचाकर भागे। मजे की बात है कि उस वक्त प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी जो अब तक कायम है। श्रीमति पटेरिया भी भाजपा से सांसद रहीं और वर्तमान में वे भाजपा से विधायक भी हैं। बावजूद इसके भाजपा शासनकाल में अगर केस डायरी कोर्ट में पेश न करवाई जा सके तो यह नूरा कुश्ती की श्रेणी में ही आएगा।






देश में एक करोड़ अनाथ बच्चे हैं सोनिया जी


देश की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी विदेशों की शक्तिशाली महिलाओं की फेहरिस्त में अपना स्थान बना चुकी हैं। नेहरू गांधी परिवार की पहली विदेशी बहू सोनिया गांधी के दो बच्चे राहुल और प्रियंका हैं, इस लिहाज से वे बच्चों का सुख और दर्द दोनों ही बातों से अच्छी तरह वाकिफ होंगी। देश में आज लगभग सवा करोड बच्चे अनाथ हैं, यह बात सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक प्रकरण की सुनवाई में सामने आई। एक विदेश दम्पत्ति द्वारा भारतीय बच्चे को गोद लेने के मामले में जब निचली अदालतों द्वारा हाथ खडे कर दिए गए तब दुनिया के चौधरी समझे जाने वाले अमेरिका से आए केग एलन कोट्स और उनकी अर्धांग्नी सिंथिया ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए। निचली अदालतों का मानना था कि इस दंपत्ति के पहले से ही तीन बच्चे हैं अतः वे संभवतः घरेलू काम के लिए इस बच्चे को नोकर बनाकर ले जाना चाह रहे हैं। बडी अदालत ने इस मामले को संजीदगी से लिया और केंद्र सरकार से कहा है कि देश के लगभग सवा करोड अनाथ बच्चों के विदेशियों द्वारा गोद लेने के लिए कानून बनाया जाए। माना जाता है कि जब केंद्र सरकार श्रीमति सोनिया गांधी के इशारों पर ही कत्थक कर रही है, और वे भी एक मां हैं तो बेसहारा अनाथ बच्चों के लिए कानून बनाने के लिए वे पहल अवश्य ही करेंगी।






कहां गए लाट साहब को मिले उपहार!


कहा जाता है कि भारत गणराज्य में महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री या मंत्री को मिले उपहार उनकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होते हैं। यह सब कुछ सरकारी संपत्ति की श्रेणी में आते हैं। जब भी इन पदों पर आसीन कोई भी जनसेवक कहीं भी जाता है तो उसे उपकृत और उनका सम्मान करने की गरज से महानुभावों को उपहार दिए जाते हैं। इन उपहारों का लेखा जोखा रखना भी जरूरी होता है। अमूमन लोग इसका हिसाब किताब रखना जरूरी नहीं समझते हैं। देश के हृदय प्रदेश में राज्य सूचना आयोग का एक आदेश राजभवन सचिवालय के गले की फांस बनता जा रहा है। आयोग ने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे एक पखवाडे के अंदर मध्य प्रदेश के राज्यपालों को दस साल में मिले उपहारों की सूची बनाकर उनका भौतिक सत्यापन करवाएं, एवं इसकी एक प्रति निशुल्क ही आवेदक को सौंपें। उल्लेखनीय होगा कि हर सरकारी कार्यालय में प्रत्येक वर्ष उपलब्ध सामग्री का स्टाक मिलान कर उसका भौतिक सत्यापन करवाना आवश्यक होता है, ताकि यह साबित हो सके कि कार्यालय मंे सरकारी संपत्ति मौजूद है अथवा गायब कर दी गई है। अमूमन सरकारी कार्यालयों में एसा किया नहीं जाता है। राज्य सूचना आयोग के आदेश के बाद शायद सरकारी अमला चेते और हर साल भौतिक सत्यापन का रिवाज आगे बढाया जा सके।










मुंबई पर मच्छर राज!


पूर्व विदेश मंत्री ‘शशि थरूर‘ फेम सोशल नेटवर्किंग वेवसाईट ‘‘ट्विटर‘‘ एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार यह किसी राजनेता नहीं वरन राजनैतिक कारण से ही चर्चा में आई है। दरअसल विख्यात गायिका आशा भौसले द्वारा ट्विटर पर एक टिप्पणी कर दी जिससे मुंबई के स्वयंभू शेर राज ठाकरे गुर्राने लगे। आशा दी ने कह दिया कि मुंबई पर मच्छर राज कायम है। बस क्या था ‘राज‘ का नाम आते ही मनसे कार्यकर्ता आपे से बाहर हो गए। गौरतलब होगा कि पूर्व में राज ठाकरे ने कहा था कि मुंबई में अन्य प्रांतों से आने वाले लोग मलेरिया जैसी बीमारी लेकर आते हैं जिससे यह यहां फैल रही है और अस्पताल भरे पडे हैं। आशा दी ने जैसे ही मच्छर राज वाली बात कही वैसे ही मनसे कार्यकर्ताआंे को लगा मानो आशा भौसले ने राज ठाकरे पर टिप्पणी कर दी हो। मामला तूल पकडते देख आशा भौसले ने बात को संभाला और कहा कि उनकी भावनाओं को अन्यथा न लिया जाए उनका तातपर्य महज मुंबई के मच्छरों से था, जिनकी बहुतायत को उन्होंने मच्छर राज कहा था। अगर मनसे कार्यकर्ता भडकते हैं तो फिर वे धन्यवाद, नमस्कार, थेंक्य यू जैसे शब्द ही ट्विटर पर इस्तेमाल करेंगी। धन्य है देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई का ‘मच्छर राज‘।






मंहगाई पर सुषमा ने दिखाए तीखे तेवर


राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी ने जब से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद तजा है तब से भाजपा की धार लोकसभा में बोथरी ही दिख रही थी। काफी अरसे बाद अब आडवाणी का स्थान लेने वाली भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने तल्ख तेवर का आगाज किया है। सुषमा ने मंहगाई के मामले मंे सरकार को कटघरे में खडा किया है। सत्तर के दशक के बाद पहली बार विपक्ष में बैठे किसी नेता ने इस सच्चाई को जनता के सामने लाने का प्रयास किया है कि सरकार जनता का ध्यान भटकाने के लिए मंहगाई को अस्त्र की तरह इस्तेमाल करती है। सुषमा का आरोप सौ फीसदी सही है कि सरकार धोखेबाज इसलिए है क्योंकि वह चुनाव के पहले कीमतें नहीं बढाती है, पर चुनाव निपटते ही आम आदमी को भूलकर मनमाने तरीके से कीमतों में इजाफा कर देती है। यह सोलह आने सच है, और राजनेता इस सच से वाकिफ भी हैं। विडम्बना यह है कि चुनाव में जनादेश पाने के लिए तरह तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं। आम आदमी के प्रति फिकरमंद होना और कीमतों का न बढाना भी इसी रणनीति का ही एक हिस्सा होता है। जैसे ही चुनाव के बाद पार्टियां सत्तारूढ होती हैं मंहगाई का मुंह अपने आप ही खुल जाता है।






खेल ने निकाला रियाया का तेल


कामन वेल्थ गेम्स वैसे तो भारत गणराज्य की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के लिए नाक का सवाल बन चुकी है, किन्तु इस खेल से भला किसका हो रहा है या होने वाला है, इस बारे में सोचने की फुर्सत किसी को भी नहीं दिख रही है। सभी अपनी ढपली अपना राग ही बजा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार तीस हजार करोड रूपयों को कामन वेल्थ की हवन वेदी में स्वाहा करने की तैयारी है। आयोजन महज 13 दिनों का भले ही हो किन्तु इस आयोजन के पहले अब तक दो तिहाई पैसा बह चुका है, फिर भी तैयारियां ढाक के तीन पात ही नजर आ रही हैं। खेल मंत्री एम.एस.गिल कह रहे हैं कि इसमें गफलत तो हुई है, किन्तु समय कम है अब कुछ नहीं किया जा सकता है। जांच एजंेसियां अपना मुंह खोले बैठी हैं। सारे प्रहसन को जनता के साथ ही साथ विपक्ष भी मूकदर्शक बनकर ही देखने पर मजबूर है। जनता की मजबूरी तो समझ में आती है पर विपक्ष की मजबूरी किसी दिशा विशेष की ओर इशारा कर रही है। आयोजन समिति के अध्यक्ष ने यह कहकर सोनिया गांधी की परेशानी बढा दी है कि अगर सोनिया चाहें तो वे त्यागपत्र दे सकते हैं। इसके अनेक मतलब निकाले जा रहे हैं, जिनमें से एक यह भी है कि सोनिया के इशारे पर ही तीस हजार करोड रूपयों का बंदरबांट किया जा रहा है!






यूपी मिशन 2012 पर युवराज


कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की नजरें अब उत्तर प्रदेश में 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर आकर टिक गईं हैं। राहुल गांधी यूपी चुनावों को महत्वपूर्ण समझने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि राहुल की सलाह पर ही कांग्रेस ने यूपी के चुनावों के मद्देनजर ‘‘यूपी मिशन 2012‘‘ नाम से तैयारियां आरंभ कर दी हैं। राहुल गांधी की मण्डली ने उन्हें मशविरा दिया है कि अगर यूपी को 2012 में कब्जे में नहीं लिया गया तो आने वाले समय में राहुल गांधी की गत भी राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी की सी होने से कोई नहीं रोक सकता है। यही कारण है कि राहुल गांधी अब यूपी में ज्यादा से ज्यादा समय देने लगे हैं। कांग्रेस जानती है कि यादवी संगठित वोट बैंक को मुलायम सिंह के बलशाली पंजे से छुडाना बहुत आसान नहीं है, सो अब गैर यादवी वोट बैंक पर कांग्रेस ने अपनी नजरें गडा रखी हैं। राहुल बाबा के एक करीबी का कहना है कि उन्हें मशविरा दिया गया है कि आने वाले समय में अगर यूपी और बिहार जैसे सूबों में अगर दलित, पिछडे और अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध नहीं लगाई गई तो समय काफी मुश्किल हो सकता है। यही कारण है कि अब कांग्रेस की नजरें गैर यादवी वोट बैंक की ओर इनायत होने लगी हैं।






सवा करोड खर्च पर एड्स है कि मानता ही नहीं!


एड्स को गंभीर बीमारी की श्रेणी में रखा गया था अस्सी के दशक के आरंभ के साथ ही। तीस सालों में अरबों खर्च करने के बाद भी सरकार एड्स को नियंत्रण में लेने में असफल ही रही है। पिछले साल लगभग 121 करोड रूपए खर्च करने के बाद भी भारत गणराज्य में एड्स के 3 लाख 85 हजार से अधिक मामले प्रकाश में आए हैं। यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सरकार की मंशा इस रोग के नियंत्रण के प्रति क्या और कैसी है। एड्स मूलतः संक्रमित सुई के लगाने या इस तरह के खून के चढाने अथवा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में असुरक्षित यौन संपर्क से ही फैलता है। जब यह बात सार्वजनिक तौर पर समझाई जा चुकी है, फिर भी अगर एड्स का पहिया थमने की बजाए अपनी ही गति से घूम रहा हो तब सरकार द्वारा पानी में बहाई जा रही धनराशि का क्या ओचित्य है।






पुच्छल तारा


अब जबकि कामन वेल्थ गेम्स के आरंभ होने में चंद सप्ताह ही बचे हैं, और इसके आयोजनों में हजारों करोड रूपए स्वाहा हो गए हों, तब पुराना एक लतीफा प्रसंगिक ही लगता है। कोलकता से राजुली सेन एक ईमेल भेजती हैं कि जब सानिया मिर्जा ने पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति से विवाह किया तब श्रीराम सेना के चीफ प्रमोद मुथालिक जैसे अनेक लोगों ने यह पूछा था कि क्या सानिया मिर्जा को सवा सौ करोड भारतियों में एक भी योग्य व्यक्ति विवाह के लिए नहीं मिला। इसका जवाब यह था कि जब एशियाड, ओलंपिक आदि में भारयितों को एक भी स्वर्ण पदक नहीं मिलता तब भला एसा प्रश्न इन लोगों के दिमाग में क्यों नहीं कौंधता। अब कामन वेल्थ गेम्स होने वाले हैं सो ‘‘नाई नाई कितने बाल‘‘ अभी देख लेते हैं हजूर।

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