गुरुवार, 12 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------07

ठेकेदार को लाभ पहुंचाने होती है सड़क परियोजनाओं में देरी

दो साल से रूका है सिवनी जिले में फोरलेन के निर्माण का काम

संसद की समिति ने कटघरे में खड़ा किया भूतल परिवहन मंत्रालय को

जाने अनजाने लोग भी प्रशस्त कर रहे हैं ठेकेदारों के लाभ के मार्ग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश भर में परिवहन के साधन के लिए सड़कों को बेहतर तरीके से जाना जाता है। देश भर में सड़कों का जाल बिछाने का जिम्मा केंद्र सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय के जिम्मे ही है। मंत्रालय में पदस्थ अफसरान और सड़क निर्माण में लगे ठेकेदार मिलकर जनता से करों के माध्यम से वसूले गए एक एक पैसे में किस तरह आग लगाते हैं यह जादू तारीफे काबिल होता है। यह सब कुछ इतनी सफाई से होता है कि जनता के कानों में आहट तक नहीं आ पाती है।

पिछले दिनों सड़क परियोजनाओं में होने वाली देरी के कारण संसद की एक समिति ने भूतल परिवहन मंत्रालय और नेशनल हाईवे अथारिटी ऑफ इंडिया की जमकर खिंचाई कर दी है। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी संसदीय समिति ने कहा है कि ठेकेदारों को अधिक मुनाफा देने के लिए परियोजनाओं में जानबूझकर विलंब किया जाता है। समिति का आरोप है कि इसके पीछे बाकायदा भ्रष्ट अधिकारियों, दलालों, दागी ठेकेदारों का काकस काम करता है। मंत्रालय के सचिव स्वयं भी इस समिति के सामने इस हकीकत को स्वीकार कर चुके हैं।

सांसद सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि लेटलतीफी से परियोजना की लागत बढ जाती है, जिससे मिलने वाला मुनाफा भ्रष्ट अधिकारी, दलाल और ठेकेदार आपस में बांट लेते हैं। समिति ने सिफारिश भी की है कि इस गठजोड को तोडने के लिए सड़क परिवहन मंत्रालय को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। समिति ने इस बात पर भी आपत्ति व्यक्त की है कि लेट लतीफी का शिकार दर्जनों परियोजनाओं के लिए महज एक ही ठेकेदार को काली सूची में डाला गया है।

समिति का कहना है कि खराब प्रदर्शन करने वाले ठेकेदारों को बाकायदा सूचीबद्ध कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही सुनिश्चित होना चाहिए। समिति ने साफ तौर पर यह बात कही है कि भूमि अधिग्रहण, वन एवं पर्यावरण विभाग सहित संबंधित विभागों की अनुमति की औपचारिकता के उपरांत ही ठेका दिया जाना चाहिए। समिति ने भूमि अधिग्रहण की ढीली चाल पर एनएचएआई को भी आडे हाथों लिया।

गौरतलब होगा कि उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सड़क निर्माण करा रही दोनों कंपनियां मीनाक्षी और सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी का सड़क निर्माण का काम अक्टूबर 2008 से बंद पड़ा हुआ है। इसका कारण सिवनी जिले में वन विभाग एवं जिला कलेक्टर की अनुमति न होना प्रमुख है। इस लिहाज से दोनांे ही कंपनियों को सरकार से जो पेनाल्टी वसूल करना है वह काफी अधिक मात्रा में हो चुकी है।

सिवनी के लोगों द्वारा भी जिला कलेक्टर के 18 दिसंबर 2008 के आदेश को ठंडे बस्ते में डालकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की लडाई लडकर परोक्ष तौर पर ठेकेदारों के द्वारा सरकार से वसूली जाने वाली पेनाल्टी को कई गुना और कई दिनों तक बढाने का ही काम किया है। वस्तुतः अगर उसी दौरान जिला कलेक्टर का आदेश निरस्त हो जाता तो सड़क निर्माण का काम पूरा हो जाता। देखा जाए तो न्यायालय जाने की तैयारियों और अन्य व्यवधानों के बीच सीईसी एवं अन्य लोगों को सर्वोच्च न्यायालय में अपना प्रतिवेदन या पक्ष रखने का पर्याप्त मौका मुहैया करवा दिया गया, जिससे मामला और उलझ गया है।

राजधानी दिल्ली के कानूनविदों के अनुसार अगर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा काम रोका नहीं गया है तो फिर जिला कलेक्टर सिवनी के 18 दिसंबर 2008 के पत्र से गैर वन क्षेत्रों में सड़क निर्माण और वृक्षों की कटाई के लिए फोरलेन बचाने के ठेकेदार वर्तमान जिला कलेक्टर से मिलने में परहेज क्यों कर रहे हैं। देखा जाए तो कलेक्टर का उक्त आदेश अगर वन क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई रोकता है तो यह महज नौ किलोमीटर का मसला होगा, शेष भाग में तो सड़क का निर्माण आरंभ हो ही जाएगा!

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