गुरुवार, 20 जनवरी 2011

बेईमान ही बेईमान

हम भी बेईमान तो तुम भी बेईमान....


(मनोज मर्दन त्रिवेदी)
सिवनी। किसानों के खेत में ओला गिरे, पाला गिरे, सूखा पड़े या अतिवृष्टि हो,इल्लियों से फसल नष्ट हो जाये। किसानों क बर्बादी पर राजनैतिक व्यक्ति जश्र मनाते नजर आते हैं। किसानों की फसल चौपट चाहे किसी भी कारण से हो,किसानों पर विपदा आते ही राजनीति करने वालों की फसल लहलहा जाती है। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनो अपने-अपने स्तर की राजनीति करते हैं। उन्हे किसानों की आपदा पर सुनहरा अवसर मिल जाता है। हाल ही में सिवनी सहित पूरे प्रदेश में कड़ाके की ठंड में गिरे पाले और तुषार से किसानों की फसलें चौपट हो गयी हैं,प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह घोषणा कर रहे हैं कि 50 प्रतिशत नुकसानी को 100 प्रतिशत मानकर किसानों को राहत प्रदान की जायेगी। कोई उन्हे किसान विरोधी नेता न कह दे इसका उन्हे भय ऐंसा सताया कि उन्होने दर्जन भर घोषणाऐं किसानों के हित में कर डाली,जिसके साथ उन्होने एक ऐंसी हास्यप्रद घोषणा भी की है जिसे पूरी करना सरकार के वश की बात नहीं और यदि किसान उनकी घोषणा का पालन करता है तो और भी बड़े नुकसान में चला जायेगा,परंतु उस बात की ओर प्रशासन तंत्र की तो हिम्मत नहीं है कि उन्हे सलाह दे सके,सत्ता पक्ष के और विपक्ष के नेता भी उस बात का उल्लेख करने से बच रहे हैं। मुख्यमंत्री की यह घोषणा साहूकारों का ऋण अदा न करने से संबंधित है। यह बात मुख्यमंत्री भी अच्छी तरह जानते हैं कि साहूकार जितना ऋण देता है,उससे दुगनी कीमत की मूल्यवान वस्तु अपने पास गिरवी रख लेता है। किसान यदि उसका ऋण अदा नहीं करेगा तो किसान को साहूकार को ब्याज देना पड़ेगा साथ ही यदि समय बीत जाता है तो किसान का जेवर या जो वस्तु उसने गिरवी रखी है वह डूब जायेगी।

50 प्रतिशत नुकसानी को 100 प्रतिशत नुकसानी मानने की परिभाषा बड़े राजनैतिक व्यक्ति बेहतर समझते हैं, परंतु किसानों को वे समझाने से हमेशा परहेज करते हैं। ठाकुर हरवंश सिंह क्षेत्र का सघन दौरा कर किसानों के हमदर्द बनने की नौटंकी कर रहे हैं,उन्हे कम से कम उस 50 प्रतिशत की परिभाषा किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिये था परंतु सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की मजबूरी उन्हे ऐंसा करने से रोक देती है। किसानों के धरना कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उनके समर्थकों द्वारा किसानों और उनका अभिनंदन संबंधी विज्ञापन जारी होना किसानों के प्रति क्या पीड़ा है कांगे्रस की उस मानसिकता को प्रकट करता है। ठाकुर हरवंश सिंह मामूली एक विधायक नहीं पूरी सरकार हैं, वे चाहें तो विधानसभा उपाध्यक्ष के नाते राजस्व पुस्तिका में संशोधन करा सकते हैं,परंतु इसके लिए राजनैतिक ईमानदारी की आवश्यकता है जो राजनैतिक व्यक्तियों में कम पायी जाती है। राजस्व रिकार्ड के अनुसार प्रति एकड़ जो उत्पादन दर्ज है,आज किसान उससे दुगना-तिगना उत्पादन अपने खेतों में कर रहा है परंतु यह किसानों द्वारा महंगे बीज,खाद महंगी दवाईयां और महंगी तकनीकियों के बल पर किया जा रहा है। उत्पादन का आंकलन पुराने रिकार्ड के अनुसार होता है जबकि वर्तमान में लागत अधिक लगाकर किसान अपने उत्पादन को बढ़ा चुका है। यह संशोधन जब तक नहीं होगा किसानों को पर्याप्त नुकसानी मिलना संभव नहीं है। ठाकुर हरवंश सिंह को विरोध नहीं विधानसभा उपाध्यक्ष के नाते संशोधन पर बल देना चाहिये। किसानों की आपदा पर अभिनंदन नहीं उनके साथ ईमानदारी से खड़े होकर साथ निभाना चाहिये। जनता उन पर अटूट विश्वास जताते रही है,उस विश्वास के अनुरूप उन्हे अपनी भूमिका निभाकर अपने विशाल हृदय का परिचय दें। किसानों की आपदा पर जारी हुए विज्ञापन किस मानसिकता से जारी किये गये थे संभव है कांग्रेस इस पर मंथन कर रही हो,परंतु आम जनता एक ही राग अलाप रही है कि नेता बेईमान तो चेला बेईमान। परेशानियों से जूझता किसान फिर भी मेरा देश महान।

जारी......


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