गुरुवार, 19 मई 2011

काली लक्ष्मी सफेद लक्ष्मी!



काली लक्ष्मी सफेद लक्ष्मी!


(लिमटी खरे)


भगवान राम के इस देश में लक्ष्मी मैया की कृपा को सभी मोहताज रहते हैं। पहले एचआईजी, एमआईजी, एलआईजी, ईडब्लूएस और बीपीएल श्रेणी में बंटे थे देश वासी। कालांतर में धारणा बदल गई है। अब एचआईजी, ईडब्लूएस और बीपीएल की श्रेणियां ही बची हैं। शेष मध्यम वर्ग का तो सूपड़ा ही साफ हो गया है। इस देश में कमोबेश हर राजनेता फावड़े तो क्या जेसीबी मशीन से धन बटोर रहा है। यह धन आखिर आता कहां से है, क्या सरकार के पास पारस पत्थर है जिसे छुलाकर वह लोहे को सोने में तब्दील कर देती है, जी नहीं इस देश की गरीब जनता का ही धन है जो सरकार करों के रूप में वसूल कर खजाना भरती है फिर अपने कारिंदों को लूटने का अघोषित प्रमाण पत्र प्रदान कर देती है। स्विस जैसे बैंक में भारत का कितना धन जमा है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। मोटी चमड़ी वाले जनसेवक, लोकसेवको के चेहरे पर फिर भी शिकन नहीं है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा पिछले दो सालों में भारत गणराज्य में कुल तीस हजार करोड़ रूपयों का काला धन बरामद किया है। सीबीडीटी द्वारा आपराधिक मामलों की जांच के लिए एक प्रथक निदेशालय के गठन पर भी विचार किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इसके लिए अपनी सैद्धांतिक सहमति प्रदान कर दी है। कालेधन पर एक सेमीनार में सीबीडीटी के अध्यक्ष सुधीर चंद्रा ने कहा कि सीबीडीटी द्वारा बड़ी मछलियों और सफेद कालर लोगोंके खिलाफ महज सर्च आपरेशन्स में ही सौ करोड़ रूपयों का काला धन बरामद किया जाना अपने आप में देश की अर्थव्यवस्था की नींव के पत्थरों का खोखला होना प्रदर्शित करने के लिए काफी है। 

भारत देश को सोने की चिडि़या कहा जाता था। कहते हैं महमूद गजनवी ने सबसे अधिक लूटा है इस चिडि़या को। इसके बाद ब्रितानी गोरी चमड़ी वालों ने देश को आर्थिक तौर पर कमजोर करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। उस वक्त गोरे ब्रितानी न केवल हमारी संपदा को लूटते वरन् हमें ही आंख चिढ़ाकर ‘फूट डालो और राज करो‘ की नीति का अनुसरण कर हम पर राज भी किया करते थे। ब्रितानियों ने भारत देख की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह चट करने का प्रयास किया, किन्तु उनके जाने के बाद एक बार फिर हमारी पुरानी पीढ़ी ने देश को आर्थिक तौर पर संपन्न करने का प्रयास किया।

आजादी के चार दशकों के उपरांत देश के जनसेवकों ने अपना चोला बदला और बगुला भगत बन गए। अफसोस तो इस बात का है कि इस देश को महमूद गजनवी और गोरी चमड़ी वाले ब्रितानियों ने उतना नहीं लूटा जितना कि हमारे अपने जनसेवकों और लोक सेवकों ने। अगर दो सालों में तीस हजार करोड़ का काला धन मिले, पौने दो लाख करोड़ का टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो, कामन वेल्थ जैसे घपले और नीरा राडिया जैसे टेप कांड हो जिसमें सरेआम जनसेवकों की काम की फीस तय हो, और ईमानदार किन्तु बेबस, लाचार मजबूर प्रधानमंत्री चुनिंदा संपादकों को बुलाकर अपनी इमेज बिल्डिंग का काम करें तो क्या कहा जा सकता है। लगता है वजीरे आजम देश की लगभग सवा करोड़ जनता नहीं वरन् चुनिंदा टीवी चेनल्स के संपादकों के प्रति जवाबदेह ही हैं।

भारत का काला धन विदेशी बैंक में जमा है। इसे वापस लाने के लिए बाबा रामदेव सहित अनेक विभूतियों ने अभियान छेड़ा, किन्तु उन्हें किंचित मात्र भी सफलता न मिलना इस बात का घोतक है कि देश में काले धन के संग्रहकर्ताओं की लाबी कितनी मजबूत है, कि भारत के ईमानदार छवि वाले वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह भी इस मामले में अपने आप को असहज ही महसूस कर रहे हैं। देश में गरीब गुरबों द्वारा सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हर चीज पर टेक्स दिया जाता है। इस टेक्स से संग्रहित राजस्व से केंद्र और प्रदेशों की सरकारें अपने खर्च चलाती हैं। जनता के पैसे पर एश करने का लाईसेंस अस्सी के दशक के उपरांत जनसेवकों को अघोषित तौर पर मिल चुका है। जनता मंहगाई से कराह रही है, और नेता मंत्री जनसेवक हवाई यात्राओं में मनमाना व्यय कर रहे हैं।

भारत का पैसा जो विदेशों में जमा है उसके बारे में भारत और स्विटजरलेण्ड के बीच हुई दाहरी कराधान संधि का हवाला देकर मामले की हवा निकाल दी जाती है। स्विटजरलैण्ड के आर्थिक मामलों के मंत्री जब भारत आए तो उन्होनंे कहा था कि इस साल जनवरी के उपरांत स्विस बैंक में जमा धनराशि और उनके जमाकर्ताओं के नाम के खुलासे होना संभव हो पाएगा। इस तरह की सूचनाओं का आदान प्रदान जनवरी 2011 के उपरांत ही होना बताया गया था। इससे साफ था कि जनवरी 2011 के पूर्व इस तरह की सूचनाओं का आदान प्रदान नहीं किया जा सकता था।

लगता है कि केंद्र सरकार में शामिल जनसेवकों का काला धन भी विदेशी बैंक में जमा है यही कारण है कि बाबा रामदेव की चिंघाड़ के बावजूद भी केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में गोल मोल जवाब ही दिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी दोहरी कराधान संधि पर केंद्र सरकार को जमकर लताड़ा है। कोर्ट ने इसकी उपयोगिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा है कि यह किसी भी तरह से काला धन वापस लाने के मामले में कारगर साबित नहीं हो सकती है।

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे भारत के नीति निर्धारकों द्वारा पता नहीं क्यों भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार उठाकर जेहाद करने से पीछे हटा जा रहा है। आज जबकि समूची दुनिया भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई हेतु वचन बद्ध है तब भारत की एक कदम आगे चार कदम पीछे की नीति समझ से परे ही है। गौरतलब होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2003 में एक प्रस्ताव पारित कर ‘यूनाईटेड नेशंस अगेन्सट करप्शन‘ नामक संधि को अस्तित्व में लाया था। इस संधि में 140 से अधिक देशों ने न केवल हस्ताक्षर किए वरन् इसे प्रमाणित और सत्यापित भी किया। विडम्बना देखिए कि भारत गणराज्य ने इस प्रस्ताव पर अंतिम दिन ही हस्ताक्षर किए और आज तक इसे सत्यापित और प्रमाणित नहीं किया है।

इसके उपरांत अमेरिका जैसे देश ने न केवल उन्नीस हजार काले धन के जमा संग्राहकों के नाम पता किए वरन् 780 मिलियन डालर बतौर जुर्माने के भी वसूल लिए। भारत के बारे में किंवदंती के मुताबिक अकेले स्विस बैंक में ही भारत के लोगों के 70 लाख करोड़ रूपए जमा हैं। कई अफवाहों चर्चाओं के अनुसार इसमें मशहूर राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों, उद्योगपतियों, सिने अभिनेताओं आदि का बेनामी पैसा जमा है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि जब भी किसी मशहूर हस्ती को ‘वैंटीलेटर‘ पर रखा जाता है तो उसके अंगूठे और उंगलियों के निशान स्विस बैंक के अधिकारियों के सामने सत्यापित कर खाता धारक बदलकर नए अंगूठे या उंगलियों के निशान लगवा दिए जाते हैं। एसा संपादित होने पर वैंटीलेटर हटा दिया जाता है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह बात तो उन सभी के परिजन ही जाने पर अफवाहों और चर्चाओं के बारे में कहा जाता है कि बिना आग के धुंआ नहीं निकलता।

हमारा कहना महज इतना ही है कि पैसा तो पैसा ही होता है, यह लक्ष्मी का ही एक रूप माना गया है। दीपावली के दिन धर्म भीरू सनातन पंथी माता लक्ष्मी की पूजा कर इसकी विशेष कृपा के लिए लालयित रहते हैं। लक्ष्मी या पैसा का रंग और रूप कैसा? कैसे किसी धन को काला धन और किसी धन को सफेद धन की संज्ञा दी जा सकती है। अवैध तरीके से धन कमाने पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जा सकता है? सब कुछ संभव है पर इसके लिए जरूरी है देश के नीति निर्धारकों की नीयत का साफ होना।

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