मंगलवार, 7 जून 2011

दिग्भ्रमित लग रहे बाबा रामदेव

दिग्भ्रमित लग रहे बाबा रामदेव

(लिमटी खरे)

इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव अब कन्फयूज नजर आ रहे हैं। कभी वे दिल्ली जाने की बात से तौबा करते हैं तो कभी एक करोड़ समर्थकों के साथ दिल्ली कूच करने की बात करते हैं। कभी सरकार को कोसते हैं तो कभी माफ कर देते हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि भोले भाले बाबा रामदेव को रिमोट की तरह चलाने वाला कथित दिमाग अब बाबा के पीछे से हट गया है, यही कारण है कि बाबा रामदेव अब एक कदम आगे चार कदम पीछे कदम ताल कर रहे हैं, बाबा को यह अवश्य ही लग रहा होगा कि वे आगे बढ़ रहे हैं, किन्तु सच्चाई यह है कि बाबा रामदेव अब पिछड़ते जा रहे हैं। भाजपा बाबा रामदेव का साथ सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के दमन के विरोध में दे रही है, किन्तु बाबा मान रहे हैं कि वे भाजपा के कांधों पर बैठ गए हैं।

समय चक्र किस तेजी से करवट लेता है। 01 जून को केंद्र सरकार के चार वरिष्ठ मंत्री बाबा रामदेव की अगवानी के लिए दिल्ली के एयरपोर्ट पर डेढ़ घंटे इंतजार करते रहे। फिर वहां से वार्ताओं का दौर जारी हुआ जो 04 जून की मध्य रात्रि कर अनवरत चलता रहा। आखिर चार दिन क्या बातें होती रहीं? बाबा रामदेव बस इतना ही चाह रहे थे न कि विदेशों में जमा काला धन वापस भारत ले आया जाए! सरकार हामी भर देती और कथित तौर पर बाद में भरी भी। आखिर सरकार को इस बात की इतनी चिंता क्यों है कि अगर काला धन वापस आता है तो क्या पहाड़ टूटेगा? जाहिर है पहाड़ उन पर टूटने वाला है जिनका काला धन विदेशों में जमा है। सरकार अगर इस पर हिचक रही है तो मतलब साफ है कि सरकारी नुमाईंदों का काला धन विदेशों में जमा है। विपक्ष ने इस मामले में संसद में आवाज नहीं उठाई। मामला अगर सांसदों की वेतन वृद्धि का होता तो मसखरे लालू यादव सहित सारे सांसद जमीन आसमान एक कर देते, किन्तु इस मामले में सभी खामोश हैं। खामोश इसलिए क्योंकि अगर काला धन वापस आया तो यह जीत उनकी नहीं बाबा रामदेव के खाते में जाएगी। बाबा पालीटिकल माईलेज ले जाएगा।
 
देखा जाए तो 6 दिसंबर 1992 और 5 जून 2011 में काफी कुछ समानता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव और विश्व हिन्दू परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच 4 दिसंबर तक बातचीत का दौर चला। दोनों ही पक्षों द्वारा एक दूसरे को बेवकूफ बनाया जाता रहा। संघ और विहिप जानते थे कि अगर कार सेवकों को खाली हाथ वापस भेज दिया गया तो फिर दोबारा उनमें उत्साह और जोश का संचार करना कठिन होगा, साथ ही चतुर सुजान नरसिंहराव का सोचना था कि अगर कार सेवक वापस गए तो आंदोलन की रीढ़ टूट जाएगी। कमोबेश कुछ इसी तरह का माजरा रामदेव बाबा के प्रकरण में सामने आया है। सरकार इस आंदोलन को तोड़ने के जतन कर रही थी तो बाबा रामदेव के सामने अस्तित्व का संकट था। पिछले साल नवंबर से अब तक बाबा ने देश के कोने कोने की खाक छानी है, अलख जगाई है, अगर बाबा कदम वापस खींचते तो उनकी साख पर बट्टा लगना तय था।
 
बाबा के काले धन के मामले को सिविल सोसायटी ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हाईजेक कर लिया। बाबा का कद अन्ना के सामने बौना नजर आने लगा था। बाबा के अनशन पर बैठने की बात को भी लोग बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे थे। अचानक ही जब चार और पांच जून की दर्मयानी रात को रामलीला मैदान पर ‘रावणलीला‘ हुई तब जाकर लोगों का बाबा रामदेव पर पुनः भरोसा जमा। बाबा रामदेव का कद अब पूर्व की तरह अन्ना हजारे से कई गुना अधिक बढ़ गया है।
 
बाबा रामदेव पर यह हमला कैसे हुआ? इस मामले की तह में जाने पर अनेक आश्चर्यजनक तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) में ही इस रावणलीला की स्क्रिप्ट लिखी गई थी। बाद में गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम को इसे अमली जामा पहनाने के निर्देश दिए गए। कहते हैं कि चिदम्बरम इससे घबरा गए, और उन्होंने इसकी सूचना वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह को दी। एम.एम.सिंह ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए चिदम्बरम से कार्यवाही न करते हुए बातचीत जारी रखने का मशविरा दिया। बात पुनः सोनिया के दरबार पहुंची। हुकुम उदूली से तमतमाई सोनिया ने चिदम्बरम को फटकारा और कहा कि मनमोहन की बात सुनने की आवश्यक्ता नहीं, तत्काल हुकुम की तामील हो। फिर क्या था देश के गृह मंत्री के आदेश पर देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने मामले की कमान संभाली और बाबा रामदेव और मध्य रात्रि में विश्राम करते उनके समर्थकों पर तबियत से लाठियां भांजी।
 
पूरे घटना क्रम को टीवी चेनल्स और समाचार पत्रों ने प्रमुखता के साथ कव्हर किया। बाबा रामदेव रातों रात फिर हीरो बन गए। बाबा के अंदर प्रचार पाने का कीड़ा एक बार फिर कुलबुलाया। जब टीवी चेनल्स नहीं आए थे तब इस तरह की लोकप्रियता हासिल करने की कवायद को ‘छपास‘ का रोग कहा जाता था। बाबा रामदेव सन्यासी होने का दावा अवश्य ही करते हैं किन्तु सन्यासी जैसे गुण उनमें कम ही देखने को मिल रहे हैं। अमूमन सन्यासियों द्वारा स्वाध्याय और आत्म चिंतन पर जोर दिया जाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि महात्मा गांधी भी सत्याग्रह के आंदोलनों के मध्य गुजरात के साबरमती और महाराष्ट्र के सेवाग्राम आश्रम में जाकर आत्म चिंतन अवश्य ही किया करते थे। बाबा रामदेव ने एक दिन का भी आत्मचिंतन किया हो एसा प्रतीत नहीं होता है। खुद को महिमा मण्डित करने के लिए बाबा रामदेव ने देश भर में योग शिविर लगाए। योग शिविरों में प्रवेश की कम से कम फीस पांच सौ रूपए हुआ करती थी। इस तरह बाबा रामदेव अमीरों को ही योगा सिखाने का काम करने लगे। बाबा इस बात का जवाब देने में खुद को असफल ही पाते हैं कि कल तक जिस व्यक्ति के पास साईकल का पंचर जुड़वाने के पैसे नहीं थे, वह आज 1100 करोड़ की अकूत दौलत का मालिक कैसे बन बैठा है। बाबा के पतांजली योग पीठ में आम आदमी को प्रवेश नहीं मिल सकता, जबकि गांधी के अवसान के छः दशकों बाद भी उनके साबरमती आश्रम और संत बिनोवा भावे के सेवाग्राम में आम आदमी बेरोकटोग आवाजाही कर सकता है।
 
बाबा रामदेव का दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। बाबा रामदेव ने उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया और बयान जारी किया कि वे नोएडा में अनशन करेंगे। नोएडा दिल्ली का उपनगरीय इलाका ही माना जाता है जो उत्तर प्रदेश में होने के साथ ही साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में आता है। नोएडा में कांग्रेस की हुकूमत फिलहाल नहीं है। चतुर सुजान बाबा रामदेव इस बात को भी बेहतर समझ चुके हैं कि नोएडा में ही अधिकांश चेनल्स के कार्यालय हैं, सो उन्हें बैठे बिठाए पब्लिसिटी मिल जाएगी। रही बात हरिद्वार की तो एक दो दिन में ही बाबा का यह मामला ठंडा पड़ जाएगा और फिर कोई भी चेनल का रिपोर्टर बाबा के पास नहीं फटकेगा।
 
बाबा रामदेव को चलाने वाला दिमाग या तो बाबा के कदमों से नाराज है या फिर किसी ने उसे हाईजेक कर लिया है, यही कारण है कि 1 जून के बाद बाबा रामदेव के हर कदम उल्टे ही पड़ रहे हैं। सत्याग्रह के नाम पर जान देने की हुंकार लगाने वाले बाबा रामदेव आखिर चार और पांच जून की दर्मयानी रात औरतों का लिबास पहनकर अनशन स्थल से जान बचाकर भागे क्यों? बाबा और सरकार के बीच जो वार्ता चल रही थी, उस वार्ता के बारे में बाबा ने मीडिया को समय समय पर खुलकर क्यों नहीं बताया? क्यों बाबा बार बार बातचीत के बाद वार्ता सकारात्मक रही का उल्लेख करते आए हैं?
 
बाबा काफी हद तक कन्फयूज्ड लग रहे हैं। बाबा को अब सूझ नहीं रहा है कि अगला कदम क्या उठाया जाना चाहिए। अनशन स्थल पर शाम से ही बाबा की बदहवासी देखते बन रही थी। मध्य रात्रि तक तो बाबा को किसी बात की सुध नहीं थी। अब जब बाबा से उनके विश्वस्त सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के बारे में पूछा गया तो वे कहते हैं कि उन्हें एक खास मिशन पर लगाया गया है। उनके पासपोर्ट और नागरिकता के सवालों को भी बाबा सिरे से खारिज कर रहे हैं। पर उत्तराखण्ड में तो सरकार द्वारा यह साबित कर दिया गया है कि बाल किशन की नागरिकता ही संदिग्ध है।
 
इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव के योग से निरोग अभियान से भले ही किसी को लाभ हुआ हो या नहीं, किन्तु यह तय है कि इसके माध्यम से बाबा की लोकप्रियता में विस्फोटक इजाफा हुआ है। बाबा से जुड़ने और योग में आस्था रखने वालों की तादाद करोड़ों अरबों में है। बाबा रामदेव के मिशन में वे लोग बाबा का साथ अवश्य देंगे। इसलिए बाबा रामदेव को चाहिए कि वे देश हित में विदेश में जमा काले धन को वापस भारत लाने के मिशन पर ही अड़े रहें, राजनीति से तौबा करें, अपने शिष्य या सहयोगी विधायकों सांसदों और अपने चाहने वालों के माध्यम से हस्ताक्षर अभियान, मानव श्रंखला आदि बनवाकर विरोध प्रदर्शन करें। इस तरह से सत्याग्रह करने और फिर रणछोड़दास बनकर भागने से काला धन वापस नहीं आने वाला। बाबा रामदेव को कोई हक नहीं बनता कि वे योग में आस्था रखने वाले देश के अरबों लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करें।

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