शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

प्रभाव छोड़ने में असफल साबित हो रहे भूरिया


प्रभाव छोड़ने में असफल साबित हो रहे भूरिया

बिसेन को घेरने में नाकाम दिख रही कांग्रेस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। 2003 के बाद कोमा में गई अखिला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई अब भी सुस्सुपतावस्था से उबर नहीं पाई है। आलाकमान ने यद्यपि सुरेश पचौरी के स्थान पर कांतिलाल भूरिया को सूबे की कमान सौंप दी है पर भूरिया भी कांग्रेस को जिलाने में अक्षम ही साबित हो रहे हैं। भूरिया के कमान संभालने के बाद भी कांग्रेस में चुने गए जिलाध्यक्षों की घोषणा न हो पाने से अब कांग्रेस का आम कार्यकर्ता उनसे विमुख होता प्रतीत हो रहा है।

नौ दिन चले अढ़ाई कोसकी कहावत को चरितार्थ करते हुए भूरिया ने राम रामकरते अपने सौ दिन तो पूरे कर लिए पर इसमें कोई खास उपलब्धि उनके खाते में दर्ज नहीं हो सकी है। भूरिया के अध्यक्ष बनने के बाद हुए जबेरा उपचुनाव मे भी कांग्रेस औंधे मुंह ही गिरी। इस चुनाव में भूरिया ने संवैधानिक पद पर बैठे विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह को भी महती जवाबदारी देकर साबित कर दिया कि कांग्रेस प्रजातांत्रिक मूल्यों पर विश्वास नहीं करती है। अमूमन संवैधानिक ओहदों पर बैठे नेताओं द्वारा पार्टी का काम खुलकर न किए जाने की परंपरा रही है।

पीसीसी चीफ बनने के बाद भूरिया के हाथों मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन के द्वारा आदिवासी पटवारी को जातिसूचक शब्दों से अपमानित कर सभा मंच पर ही उठक बैठक लगवाने, आदिवासियों के बारे में घोर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले आए, किन्तु भूरिया के नेतृत्व में कांग्रेस इसे भुना न सकी। इतना ही नहीं सिवनी और छिंदवाड़ा में आदिवासियों का अपमान करने वाले बिसेन के खिलाफ दोनों ही जिलों का संगठन मौन साधे बैठा रहा किन्तु भूरिया ने इसकी सुध भी नहीं ली।

निर्णय लेने से कतराते हैं भूरिया
एमपी कांग्रेस के मुखिया कांतिलाल भूरिया की लाल बत्ती कांग्रेस आलाकमान ने छीन ली है। सत्ता के गलियारों में चर्चा आम है कि भूरिया द्वारा निर्णय लेने में आनाकानी करने के चलते ही लाल बत्ती से उनको उतारा गया है। इतना ही नहीं अध्यक्ष बनने के उपरांत भी निर्वाचित जिलाध्यक्षों की घोषणा में भी वे हीला हवाला करते ही नजर आ रहे हैं।

नहीं छूट रहा दिल्ली का मोह
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि कांतिलाल भूरिया को दिल्ली से विदा कर पूरी तरह मध्य प्रदेश पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है। भूरिया का दिल्ली प्रेम किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि वे आए दिन मध्य प्रदेश को छोड़कर दिल्ली में ही अपना डेरा डाले नजर आते हैं। अध्यक्ष बनने के बाद भूरिया ने सौ दिन पूरे होने के उपरांत भी प्रदेश के जिलों में जाने की जहमत नहीं उठाई है।

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