सोमवार, 5 सितंबर 2011

सिवनी को आवश्यकता एक अन्ना हजारे की ........

सिवनी को आवश्यकता एक अन्ना हजारे की ........

(अभिषेक दुबे)

 पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद कर सरकार को झुकाने वाले अन्ना हजारे का नाम आज हर घर में बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। कहा जाता है कि अक्सर कोई भी क्रांति हं-ामा मचाते हुए नहीं बल्कि दबे पांव आती है। पूरे विश्व में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं उनमें मुख्य रूप से हिंसा आसानी से देखी जा सकती है किंतु अू दिन तक देश का युवा सड़कों मंे नारे बाजी करता रहा किंतु देश के एक भी कोने से पत्थरबाजी तक की खबर सुनने को नही आयी। जबकि कां-रे
स प्रवक्ता मनीष तिवारी अपनी अल अ-स्त की प्रेस कांफ्रेस मंे द्यल वर्षीय बुर्जु- श्री किशनबाबू राव हजारे उर्फ अन्ना हजारे जी को -ण्डा बता चुके थे। ये पूरे समाज के लिये एक मिसाल बन चुकी क्रांति थी। हमारे हिसाब से तो राजनैतिक दलों को इस पर पीएचडी करनी चाहिए कि अहिंसा के मार्- से भी क्रांति लाई जा सकती है।
    देश में क्रांति लाने का काम तो अन्ना हजारे और उनकी टीम अन्ना ने कर दिया, लेकिन वर्षेा    से अपनी पलकें बिछाए सिवनी की जनता एक अदद अन्ना हजारे की तलाश कर रही है। जनता को न उसकी उम्र से फर्क पडे-ा न उसकी जातपात से न उसके पूरूष होने से फर्क पडे-ा, न उसके महिला होने से। बस वह सिवनी की आवाज दिल्ली तक बुलंद करने वाला होना चाहिए फिर अपने आप ही सीने में सुल-ती ज्वाला लिये जनता उसके पीछे हो चले-ी। इस जिले में अन्याय की कहानी वर्षो से चली आ रही है, विषय चाहे बडी रेल लाईन को हो, पेंच जल परियोजना का हो, फोरलेन का हो, संभा-ीय मुख्यालय का हो, मिनी मेडिकल कॉलेज का हो, यहां तक कि आजतक इस जिले मंे एफएम रेडियो तक नहीं चालू हो पाया है। जबकि पडोसी जिलों में ये सब सुविधाएं वर्षो पहले से प्रारंभ है। आज भी जिले के साथ इतना सौतेला व्यवहार होने के बाद भी खामोशी से जनप्रतिनिधि खुश हैं कि उनका विरोध तो नहीं हो रहा है किंतु यह खामोशी एक बडे तूफान के पहले की खामोशी भी हो सकती है यह उन्हें सोंच लेना चाहिए। वक्त अब दूर नहीं कि जनता सड़कों पर उतरकर फिर से राईट टू रिकाल और राइट टू रिजेक्ट के लिये अपने अधिकार मां-ने ल-े। अ-र ऐसा हुआ तो राजनीति के नाम पर लाखों का इनवेस्टमंेट करके करोड़ो का प्रोफिट पाने वालों की अब खेर नहीं ।
    समस्याएं तो सभी के सामने आ चुकी हैं किंतु कहानी वहीं है कि हर कोई  चन्द्रशेखर आजाद या भ-तसिं- का पडोसी बनना ज्यादा पसंद करे-ा न कि उन्हंे अपने घर में जन्म देना क्योंकि उन्ह तो शहीद होना है और आज की दुनिया में कोई आ आकर शहादत देना नहीं चाहता। अब देखना यह है कि ूअ वीं सदी का चन्द्रशेखर आजाद और भ-तसिं- सिवनी के लिये कोई बने न बनें किंतु अहिंसात्मक मार्- से अन्ना हजारे बनने की पहल कौन करता है।

कोई टिप्पणी नहीं: