शनिवार, 28 जनवरी 2012

स्नातकोत्तर कालेज होंगे हर जिलों में


स्नातकोत्तर कालेज होंगे हर जिलों में



(यशवंत श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। लगता है केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने अपनी छवि को साफ सुथरा करने का प्रयास आरंभ कर दिया है। सिब्बल के नेतृत्व वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अब स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षा पर ध्यान देना आरंभ कर दिया है। कहा जा रहा है कि जल्द ही उन जिलों में जहां स्नातकोत्तर महाविद्यालय नहीं हैं, में डिग्री कालेज खोलने की योजना है।
उच्च शिक्षा में सुधारों के मोर्चे पर बीते वर्षाे में सरकार भले ही नाकाम रही हो, लेकिन चुनौतियों से निपटने के लिए कोशिशें जारी हैं। अब योजना हर जिले में एक ऐसा डिग्री कॉलेज खोलने की है, जिसका पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी। इसके अलावा मॉडल डिग्री कॉलेजों को खोलने में राज्यों की ओर से धन की कमी को दूर करने के मद्देनजर उसका पूरा खर्च भी केंद्र ही उठा सकता है। इतना ही नहीं, खराब सकल दाखिला दर वाले राज्यों को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें अलग से विशेष मदद देने की भी योजना पर भी काम हो रहा है।
सूत्रों के मुताबिक , बीते वर्षाे में हर राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने के बाद आने वाले पांच वर्षाे में हर जिले में एक डिग्री कॉलेज खोलने की योजना पर काम हो रहा है। बेहतरीन कमरे, योग्य शिक्षक, अच्छा पुस्तकालय, प्रयोगशाला और खेल के मैदान और दूसरे सभी संसाधनों से लैस इन कॉलेजों का पूरा खर्च केंद्र उठाएगा। इनका प्रस्ताव विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ख्यूजीसी, मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेज चुका है। आयोग के अध्यक्ष प्रो. वेदप्रकाश का कहना है, श्प्रतिभाएं तो जिलों से ही आती हैं। ऐसे में उन्हें उनके यहां ही हर तरीके से उच्च गुणवत्ता का डिग्री कॉलेज मिल जाए तो आगे की राह आसान हो सकती है। जबकि, प्रयोगशाला, पुस्तकालय व खेल के मैदान जैसे संसाधनों का उपयोग दूसरे स्थानीय कॉलेज भी कर सकेंगेश्।
दरअसल पिछले पांच सालों में उच्च शिक्षा के मामले में राज्यों के साथ यूजीसी व केंद्र का तजुर्बा अच्छा नहीं रहा है। शैक्षिक रूप से पिछड़े ख्राष्ट्रीय औसत से भी कम दाखिला दर वाले जिले, जिलों में इस साल मार्च तक 374 मॉडल डिग्री कॉलेज खुलने थे। केंद्र के पास राज्यों ने सिर्फ 142 प्रस्ताव भेजे। उनमें भी सिर्फ 78 प्रस्तावों को मंजूरी मिल सकी। योजना के तहत लागत का एक तिहाई खर्च केंद्र को व दो तिहाई राज्यों को उठाना था। खर्च में अपने हिस्से को लेकर ज्यादातर राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए। सूत्रों के मुताबिक, अब इसका पूरा खर्च केंद्रीय स्तर पर उठाने पर विचार हो रहा है।

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