सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

पीएम का विश्वास नहीं जीत पाए हरीश खरे


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 79

पीएम का विश्वास नहीं जीत पाए हरीश खरे

सोनिया से पंगा लेना मंहगा पड़ा खरे का



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह के लिए देश के मीडिया को मैनेज करने की महती जवाबदेही संभालने वाले पीएम के मीडिया एडवाईजर हरीश खरे अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री का विश्वास कभी भी जीत नहीं पाए। उनकी रवानगी में महती भूमिका सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने निभाई। जिस दिन हरीश खरे ने पीएमओ में आमद दी थी उसी दिन से हरीश खरे की पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव से नजदीकी को बड़े ही करीने से उकेरना आरंभ कर दिया गया था। गौरतलब है कि हरीश खरे पूर्व वज़ीरे आज़म नरसिंहराव के बेहद करीबी समझे जाते रहे हैं।
पीएमओ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि हरीश खरे ने अपने अहम के चलते मनमोहन सिंह की पंजाबी जुंडाली और सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी से पंगा ले लिया था। हरीश खरे ने अनेक मौकों पर पीएम के पंजाबी मित्रों विशेषकर अंबिका सोनी को नीचा दिखाया था। अंबिका सोनी मन ही मन हरीश खरे को सबक सिखाने की फिराक में ही दिख रहीं थीं।
बताते हैं कि अंबिका सोनी की नाराजगी का पारा तब आसमान पर पहुंचा जब मुश्किल की घड़ी में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को चुनिंदा संपादकों की टोली के साथ हरीश खरे ने चाय पर बुला भेजा। दो बार पीएम मीडिया के चुनिंदा लोगों से रूबरू हुए, इन दोनों ही मर्तबा हरीश खरे ने देश की सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को विश्वास में लेना उचित नहीं समझा।
उधर, अंबिका सोनी के करीबी सूत्रों का कहना है कि हरीश खरे पर पलटवार करने की तैयारी में बैठी अंबिका सोनी के हाथ तत्काल ही एक मौका लगा। वह मौका था चुनिंदा संपादकों की टोली के साथ चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री का बंग्लादेश के बारे में कहा गया ऑफ द रिकार्डबयान केंद्र सरकार की आधिकारिक विज्ञप्ति जारी करने वाले सूचना प्रसारण मंत्रालय के एक अंग पत्र सूचना कार्यालय की वेब साईट पर अपलोड हो गया। इस बयान से कूटनतिक विवाद पैदा हो गया था।

(क्रमशः जारी)

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