गुरुवार, 14 जून 2012

ममता मुलायम का मनमोहनी प्रहार


ममता मुलायम का मनमोहनी प्रहार

(संजय तिवारी)

इघर दिल्ली में बुधवार की शाम जब ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव अपने पसंदीदा तीन उम्मीदवारों का नाम ले रहे थे तो उधर इन पसंदीदा तीन उम्मीदवारों में से एक को पता भी नहीं था कि दूर दिल्ली में उनका नाम देश के सर्वाेच्च प्रशासक और भारत के प्रथम नागरिक के लिए लिया जा रहा है। वे हैं सोमनाथ चटर्जी। कुछ टीवी चौनलवाले उनसे जानने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उनसे तो किसी ने संपर्क ही नहीं किया। फिर उनका नाम कैसे आया? पता नहीं। शायद मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी ने मीटिंग्स के बाद तेरी पसंद मेरी पसंद वाला जो राजनीतिक खेल शुरू किया उसमें जो तीन नाम सामने रखे गये वे तीन कोणों को ध्यान में रखकर सामने लाये गये। चलिए इन नामों की गणित और उससे निकलने वाले परिणाम की तरफ सोचते हैं।
सोमनाथ चटर्जी का नाम सिर्फ भ्रम पैदा करने के लिए लिया गया है। मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी की भले ही सोमनाथ चटर्जी से पूरी सहानुभूति हो लेकिन वे मुलायम सिंह यादव कभी भी वामपंथियों को नाराज करके सोमनाथ चटर्जी का नाम सर्वाेच्च नागरिक के लिए आगे नहीं करेंगे। लेकिन क्योंकि उनका ममता बनर्जी से नया नया याराना है इसिलए इस नाम पर वे आपत्ति करने से बच गये होंगे। अगर ममता बनर्जी वामपंथियों को एक नाम लेकर पीड़ित करना चाहती हैं तो मुलायम सिंह को मौन सहमति देने में भला ऐतराज क्यों होगा? इसी तरह दूसरा नाम एपीजे अब्दुल कलाम का है। कलाम के बारे में कहा जाता है कि वे मुलायम सिंह यादव की पसंद हैं। इसमें अगर कोई सच्चाई है तो सिर्फ इतनी कि कलाम मुस्लिम तबके से आते हैं और समूचे देश में उनकी स्वच्छ छवि है। लेकिन शायद ही मुलायम सिंह कभी चाहेंगे कि कलाम राष्ट्रपति बनें। कलाम का नाम इसलिए आगे किया गया है अगर राज्यों के लिए पैकेज को लेकर कांग्रेस से राजनीतिक सौदेबाजी पूरी नहीं होती है तो वे एक ऐसा नाम अपने पास रखना चाहेंगे जिसे एनडीए का समर्थन मिल जाए। कलाम को कल भी एनडीए ने राष्ट्रपति बनवाया था और आज भी उसे कलाम के नाम पर कोई ऐतराज नहीं होगा। कलाम का नाम सामने आया तो टीडीपी जैसे दल भी समर्थऩ कर देंगे और संगमा को समर्थन देने का ऐलान कर चुकीं जयललिता भी कलाम के नाम पर अपनी सहमति दे सकती हैं। लेकिन शायद ऐसा दिन आयेगा नहीं।
फिर मुलायम ममता की प्रस्तावना में आखिरी नाम बचता है मनमोहन सिंह का। मनमोहन सिंह का नाम ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद लिया है। ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच करीब घण्टे भर की मुलाकात के पहले ममता बनर्जी मुलायम सिंह यादव से मिली थीं और मुलाकात के बाद भी वे सीधे नेताजी के घर पहुंची। इसी के बाद दोनों ने संयुक्त रूप से प्रेस कांफ्रेस की और तीन नाम सामने कर दिये। सोनिया गांधी के घर से बाहर आते हुए ममता बनर्जी ने मीडिया से एक संक्षिप्त बात की। अगर वे चाहतीं तो ऐसा न करतीं लेकिन उन्होंने ऐसा किया। और कहा कि वे सोनिया गांधी या फिर कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी पहली पसंद हैं। ऐसा कहने के पीछे जो राजनीतिक संदेश था वह यह कि प्रणव मुखर्जी कांग्रेस की पसंद हैं, उनकी नहीं। याद करिए पिछले दो तीन दिनों में खुद प्रणव मुखर्जी और उनके बेटे मीडिया में यह बयान दे चुके हैं कि केवल चाहने से वे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं हो जाएंगे। उनके बेटे ने तो तृणमूल कांग्रेस पर शक भी जाहिर किया था कि कौन जाने ममता बनर्जी दादा के नाम पर अपनी सहमति देने से इंकार कर दें। इसका मतलब कम से कम प्रणव बाबू और उनका परिवार जानता था कि ममता बनर्जी प्रणव दादा के नाम पर सीधे तौर पर अपनी सहमति नहीं देंगी। बात सिर्फ इतनी है या फिर कहानी कुछ और भी है?
देश के अगले राष्ट्रपति के लिए निश्चित रूप से वही नाम स्वीकार किया जाएगा जिससे कम से कम यूपीए के सभी दलों की राजनीति सधती हो। कांग्रेस, सपा, तृणमूल, डीएमके सभी के लिए जो मुफीद सौदा होगा, राष्ट्रपति पद के लिए वही साझा उम्मीदवार बन जाएगा। कांग्रेस के लिए जब अपने ष्संकटष् और ष्संकटमोचकष् के बीच चुनने के वक्त आयेगा तो निश्चित तौर पर वह संकटमोचक से निजात पाने की बजाय संकट से छुटकारा पाना चाहेगी। संभवतरू ममता और मुलायम के जरिए उसने इस दिशा में पहल भी शुरू कर दी है।
इस और वाली कहानी का अहम सवाल उन संकेतों से शुरू होता है जो प्रणव मुखर्जी ने देना शुरू किया था। वे राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते, फिर वे रोज सुबह टहलते हैं और इस चहलकदमी के लिए उन्हें अपने घर के छोटे से लान के चालीस चक्कर लगाने पड़ते हैं जैसे संकेत क्यों दिये जा रहे थे कि प्रणव मुखर्जी का नाम राष्ट्रपति के लिए सामने आ जाए? कम से कम प्रणव मुखर्जी इतने राजनीतिक तो हैं ही कि इन संकेतों का मतलब खुद तो समझते ही थे। लेकिन इन संकेतों के साथ ही एक सवाल हमेशा बना रहा कि आखिर अपने राजनीतिक संकटमोचक को कांग्रेस राष्ट्रपति भवन में लेजाकर क्यों बिठा देगी? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था। राजनीतिक सूचनाओं का आदान प्रदान करनेवाले दिल्ली के सूत्रधार भी यही संदेश ले दे रहे थे कि आखिरकार दादा के नाम पर ही सहमति बनेगी और वे ही देश के अगले राष्ट्रपति होंगे। लेकिन इन सूचनाओं और संदेशों के बीच एक छोटी सी राजनीतिक सूचना और लीक हुई थी कि मनमोहन सिंह भी सम्मानजनक विदाई का रास्ता खोज रहे हैं। संभवतरू वे राजनीतिक रूप से अपनी इच्छा व्यक्त कर चुके थे कि प्रधानमंत्री पद से वे तभी मुक्त होना चाहेंगे जब उन्हें रायसीना हिल्स पर पक्के तौर पर पांच साल के लिए पदोन्नत कर दिया जाए। कांग्रेस के लिए यह घाटे का सौदा नहीं था लेकिन उस वक्त यह भी कहा गया कि कांग्रेस मनमोहन सिंह की इतनी भी सम्मानजक विदाई के पक्ष में नहीं हैं।
तो क्या ममता मुलायम के तीन नामों में मनमोहन सिंह का नाम किसी योजना के तहत रखा गया है? मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं इसे कम से कम ममता और मुलायम तो जानते ही होंगे। और किसी भी प्रधानमंत्री का नाम राष्ट्रपति वाली सूची में सहयोगी दलों द्वारा सुझाया जाए तो यह इतना भी अचानक और अप्रत्याशित तो नहीं होगा। मुलायम सिंह सोनिया गांधी के ऋणी हों या न हों लेकिन मनमोहन सिंह के प्रति अक्सर कृतज्ञ नजर आते हैं। कारण कई हैं। राज बहुतेरे हैं। यह मनमोहन सिंह ही थे जो वाया अमर सिंह मुलायम को अमेरिकी हित साधनेवाले परमाणु विधेयक पर समर्थन देने के लिए राजी कर लिया था। कहने के लिए तो मुलायम सिंह कांग्रेस का साथ देते नजर आ रहे थे लेकिन असल में उन्होंने मनमोहन सिंह का साथ दिया था क्योंकि सीबीआई के शिकंजे से फिलहाल पीएमओ ही उनकी रक्षा कर सकता था। कहते तो यह भी हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में मुलायम सिंह की फतेह और कांग्रेस की फजीहत में भी मनमोहन सिंह की मंद मंद मुस्कान शामिल थी। रही बात ममता की तो मनमोहन सिंह का नाम सामने लाकर ममता बनर्जी न सिर्फ कांग्रेस का संकट काट रही हैं बल्कि मनमोहन सिंह को वह पद दिलाने में मदद भी कर रही हैं जो उनकी अब शायद आखिरी महत्वाकांक्षा है। कौन जाने पीएमओ में लंबे समय तक राष्ट्रीय सुलाहकार रहे एम के नारायणन ने भी अपनी कोई भूमिका निभाई हो जो इन दिनों पश्चिम बंगाल में बतौर गवर्नर तैनात हैं।
मंगलवार शाम से बुधवार शाम के बीच जितना राजनीतिक मंथन हुआ है उसमें ममता और मुलायम महत्वपूर्ण खिलाड़ी नजर आ रहे हैं। अभी ममता बनर्जी एक दिन और रहेंगे और इस एक दिन में वे मनमोहन सिंह से भी मुलाकात करेंगी। तो क्या कांग्रेस ममता बनर्जी को एक राजनीतिक विदूषक के तौर पर इस्तेमाल करते हुए वह हासिल करना चाहती है जो कई असफल कोशिशों के बाद भी हासिल नहीं कर पाई है? क्या मनमोहन सिंह की सम्मानजक विदाई का रास्ता अब ममता और मनमोहन के जरिए निकाला जा रहा है? अगर ऐसा है तो राष्ट्रपति उम्मीदवार से बड़ा सवाल यह है कि मनमोहन पीएमओ से चले गये तो अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? देश राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहा तो क्या इस चुनाव के बीच कांग्रेस प्रधानमंत्री का पद भी अपनी अगली पसंद के लिए खाली कर लेना चाहती थी? राजनीतिक और गैर राजनीतिक की इस बहस में क्या कांग्रेस अपनी राजनीति ठीक कर रही है? फिर प्रणव बाबू के संकेतों का क्या? क्या वे जानबूझकर ऐसे संकेत दे रहे थे कि वे राष्ट्रपति बनना चाहते हैं लेकिन समहति मनमोहन सिंह के नाम पर है इसलिए वे पीछे जा रहे हैं? तो क्या जो इच्छा मनमोहन सिंह कांग्रेस के रास्ते पूरा नहीं कर पाये उसे अब ममता मुलायम के जरिए पूरा कर रहे हैं? पहले ही सवालों के ढेर लगे थे, अब उसमें कुछ और सवाल जुड़ गये हैं। चौनलों के वरिष्ठ विश्लेषक भी संभावनाओं में गोते लगा रहे हैं, आप भी लगाइये, हम भी लगाते हैं। देश के लिए राष्ट्रपति चुना जाना है, इतनी राजनीति तो नाजायज नहीं है।
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

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