मंगलवार, 26 जून 2012

शिव के राज में मनमानी चरम पर


शिव के राज में मनमानी चरम पर 

बिना अनुमति चले गए चिकित्सकों की हड़ताल पर

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश में सत्ता में चाहे कांग्रेस पार्टी रहे या भाजपा की सदा ही सरकारी नुमाईंदों की मनमानी चरम पर रही है। सोमवार को इंडियन मेडीकल एसोसिएशन के आव्हान पर आहूत बंद में भी मध्य प्रदेश में मनमानी देखने को मिली। उच्चाधिकारियों की पूर्वानुमति के बिना सरकारी चिकित्सकों ने अवकाश रखा, जो नियमानुसार अवैध ही है। चूंकि राजधानी में बैठे सरकारी नुमाईंदों की तिजोरियां एक के बाद एक धन उगल रही हैं इसलिए किसी का ध्यान मूल भूत सुविधाओं और नियम कायदों की तरफ ना होना स्वाभाविक ही है।
राजधानी भोपाल के अरेरा हिल्स स्थित सतपुड़ा भवन के स्वास्थ्य संचालनालय के सूत्रों का कहना है कि निजी चिकित्सक जब मर्जी तब अपनी दुकान बंद रखने के लिए स्वतंत्र हैं किन्तु जहां तक सरकारी तनख्वाह प्राप्त चिकित्सकों की बात है तो उन्हें हड़ताल पर जाने के पूर्व अपने इमीडिएट बॉस के माध्यम से संचालनालय से इसकी अनुमति की दरकार होती है। इसके पहले स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल में अनुमति चाही गई थी, किन्तु इस बार मद में चूर चिकित्सकों ने इसकी जरूरत ही नहीं समझी।
सूत्रों ने कहा कि चिकित्सक भला क्यों शासन से अनुमति लेने चले। जब मध्य प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया के पति डॉ.एच.पी.पटेरिया, विधायक शशि ठाकुर के पति डॉ.वाय.एस.ठाकुर, भी चिकित्सक हैं। इसके अलावा अपने नाम के आगे डॉक्टर की उपाधि लगाने वालों की फेहरिस्त बड़ी ही लंबी है।
सांसद डॉ.वीरेंद्र कुमार, डॉ.विजय लक्ष्मी साधो, के अलावा विधायकों में डॉ.गोविंद सिंह, डॉ.नरोत्तम मिश्रा, डॉ. श्रीमति विनोद पंथी, डॉ.भानु राना, डॉ.राम कृष्ण कुसमरिया, डॉ.निशिथ पटेल, डॉ.प्रभुराम चौधरी, डॉ.बाबू लाल वर्मा, डॉ.कल्पना पारूलेकर अदि भी अपने नाम के आगे डॉक्टर संबोधन लगाते हैं।
सूत्रों ने कहा कि इस चिकित्सकों द्वारा अगर नियमानुसार हडताल पर जाने के पूर्व अपना आवेदन सक्षम अधिकारी के माध्यम से उच्चाधिकारी को नहीं भेजा है तो उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है। अपनी खाल बचाने के लिए अगर अब इन चिकित्सकों द्वारा सक्षम अधिकारी को सिद्ध कर पुरानी तिथि में आवेदन भेजने की कार्यवाही की जाती है तो सक्षम अधिकारी भी नप सकते हैं।
चिकित्सा जैसे पेशे में अगर सरकारी तनख्वाह पाने वाले चिकित्सकों द्वारा निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के मानिंद मनमर्जी से काम किया जाएगा तो मरीजों की तो जान पर बन आएगी। इस संबंध में विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र में कांग्रेस या विपक्ष के विधायक अगर मौन साधे रहते हैं तो यही समझा जाएगा कि शिवराज सिंह चौहान के इस कुशासन को कांग्रेस और विपक्ष का मौन समर्थन हासिल है।

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