शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

वालमार्ट आयेगा, रोजी रोटी खायेगा


वालमार्ट आयेगा, रोजी रोटी खायेगा

(प्रेम शुक्ला / विस्फोट डॉट काम)

रिटेल यानी खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर हर राजनीतिक दल के मन में जो सबसे बड़ी आशंका है वह है बड़ी आबादी वाले देश में व्यापक बेरोजगारी बढ़ने की आशंका। सरकार का दावा है कि वालमार्ट जैसी रिटेल कंपनियों के लिए दरवाजा खोल देने से देश में 40 लाख रोजगार के नये अवसर पैदा होगें। क्या इसमें कोई सच्चाई है? अगले तीन वर्षों में वॉलमार्ट’ 40 लाख कर्मचारियों को भारत में रोजगार देना चाहे तो आज उसके 28 देशों में जितने कुल स्टोर्स हैं उसकी तुलना में लगभग दोगुना स्टोर अकेले भारत में खोलना पड़ेगा। यदि रिटेल क्षेत्र के चारों टॉप ब्रांड्स का औसत निकाल लिया जाए तो प्रति स्टोर कर्मचारियों की संख्या बनती है 117 की। यदि चारों ब्रांड मिलकर वाणिज्य मंत्रालय के रोजगार देने के दावे को पूरा करना चाहें तो उन्हें कुल 34,180 स्टोर्स खोलने पड़ेंगे। क्या यह संभव है?
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के प्रथम संस्कण में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि गिनाई गई थी सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) में 8 से 10 फीसदी की सालाना वृद्धि। जीडीपी में वृद्धि का लाभ क्या आम आदमी को मिला? सरकारी आंकड़े ही इस प्रश्न का जवाब नकारात्मक देते हैं। 2000 से 2005 के बीच रोजगार वृद्धि में इजाफे की दर 253 प्रतिशत थी जो 2005 से 2010 के बीच में घटकर 08 प्रतिशत रह गई। यह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) का है। इस अवधि में गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार वृद्धि की दर 465 प्रतिशत से गिरकर 253 प्रतिशत रह गई। देश की कुल श्रम शक्ति का 51 प्रतिशत हिस्सा स्वयं रोजगार वाला है। देश की कुल श्रमशक्ति में अस्थायी श्रमिकों की संख्या 335 प्रतिशत और नियमित या वेतनभोगी श्रमिकों की संख्या केवल 156 प्रतिशत है। आईसीआरआईईआरने मई 2008 में असंगठित क्षेत्र में संगठित खुदरा व्यापार के प्रभाव पर एक अध्ययन कराया। इस शोध रिपोर्ट के अनुसार 2006-2007 तक देश में कुल 13 करोड़ खुदरा दुकानदार थे जो औसतन 217 वर्गफुट की दुकान से अपना कारोबार करते हैं। असंगठित खुदरा क्षेत्र का कुल कारोबार लगभग 4088 बिलियन डॉलर का है। औसतन प्रत्येक दुकानदार सालाना 15 लाख रूपए का करोबार करता है और न्यूनतम 3 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है।
अब हम देख लें कि एफडीआई के माध्यम से जिन मल्टीनेशनल ब्रांड्स को हम निमंत्रित कर रहे हैं उनका कारोबार और रोजगार अनुपात क्या है? ‘वॉल्मार्टइसमें सबसे चर्चित नाम है जिसका कारोबार 28 देशों में फैला है, जिसकी बिक्री 9800 स्टोर्स के माध्यम से 405 बिलियन डॉलर की है। वॉल्मार्ट के कुल कर्मचारियों की संख्या 21 लाख है। इस अनुपात से अगर वॉल्मार्टभारत में विस्तार पाता है तो एक वॉल्मार्टस्टोर 1300 खुदरा दुकानदारों की दुकान बंद कराएगा जिसमें 3900 लोग बेरोजगार हो जाएंगे। वॉल्मार्टके एक स्टोर में कुल आवश्यक कर्मचारियों की संख्या 225 होगी (यह आंकडा अमेरिका में वॉल्मार्टस्टोर के आधार पर है)। यदि वॉल्मार्टखुदरा क्षेत्र में आज सक्रिय श्रमशक्ति को समाहित भी करें तो 3,675 लोग एक स्टोर के खुलते ही बेरोजगार हो जाएंगे। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए उलटा भारत सरकार का वाणिज्य मंत्रालय दावा करता है कि रिटेल में एफडीआई से अगले तीन वर्षों में 1 करोड़ नए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। इसमें 40 लाख लोग सीधे नए स्टोर्स में कर्मचारी होंगे जबकि शेष आपूर्ति सेवाओं में रोजगार पाएंगे।
अब पहले दुनिया के 4 मल्टीनेशनल ब्रांड के वर्तमान स्टोर्स के कर्मचारियों की संख्या की पड़ताल कर लें। वॉल्मार्टके दुनिया में कुल 9,826 स्टोर्स हैं जिसमें प्रति स्टोर 214 कर्मचारियों की दर से कुल 21 लाख कर्मचारी नियुक्त हैं। दूसरा ब्रांड है केयरफोरजिसके कुल 15937 स्टोर्स में प्रति स्टोर 30 कर्मचारियों के औसत से कुल 4,71,755 कर्मचारी नियुक्त हैं। तीसरा ब्रांड है मेट्रोजिसके कुल 2131 स्टोर्स में 133 प्रति स्टोर की दर से 2,83,280 कर्मचारी नियुक्त हैं। चौथा बड़ा रिटेल ब्रांड है टेस्कोजिसके कुल 5380 स्टोर्स में प्रति स्टोर 92 कर्मचारी के औसत से 4,92,714 कर्मचारी नियुक्त हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि प्रति स्टोर सर्वाधिक कर्मचारी नियुक्ति के मामले में इन चारों में वॉल्मार्टशीर्ष पर है। अब हम वाणिज्य मंत्रालय के दावे की पड़ताल करें तो ज्ञात होता है कि यदि अगले तीन वर्षों में वॉल्मार्ट’ 40 लाख कर्मचारियों को भारत में रोजगार देना चाहे तो उसे 18600 सुपर मार्केट खोलने पड़ेंगे, अर्थात आज उसके 28 देशों में जितने कुल स्टोर्स हैं उसकी तुलना में लगभग दोगुना। यदि चारों टॉप ब्रांड्स का औसत निकाल लिया जाए तो प्रति स्टोर कर्मचारियों की संख्या बनती है 117 की। यदि चारों ब्रांड मिलकर वाणिज्य मंत्रालय के रोजगार देने के दावे को पूरा करना चाहें तो उन्हें कुल 34180 स्टोर्स खोलने पड़ेंगे। आज चारों ब्रांड्स के विश्वव्यापी स्टोर्स की कुल संख्या 18874 है। रिटेल में एफडीआई के लिए सरकार ने कुल 53 महानगरों को चिह्नित किया है। वाणिज्य मंत्रालय के रोजगार टारगेट को पूरा करने के लिए हर शहर में औसतन 644 सुपरमार्केट खोलने पड़ेंगे। क्या यह संभव है? तब क्या सरदार मनमोहन सिंह की सरकार देश से सफेद झूठ नहीं बोल रही है? इस झूठ के लिए क्या सरकार को जूते से नहीं मारा जाना चाहिए? यदि रिटेल में एफडीआई का बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि सुपरमार्केट यदि एक रोजगार सृजित करेगा तो वह मौजूदा खुदरा क्षेत्र के 17 रोजगार खा जाएगा।
रिटेल में एफडीआई के समर्थन में दूसरा तर्क दिया जाता है कि इससे मुद्रास्फीति नियंत्रित होगी और आम आदमी को महंगाई की मार से बचाया जा सकेगा। यह तर्क बुनियादी तौर पर गलत है। रिटेल क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित होने से जब प्रतियोगिता खत्म हो जाएगी तो महंगाई घटाने-बढ़ाने का सूत्र सीधे तौर पर मल्टीनेशनल कंपनियों को प्राप्त हो जाएगा। खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप और अमेरिका में मंदी के बावजूद सिर्फ मल्टीनेशनल कंपनियों की मेहरबानी से वहां खाद्य पदार्थों के भाव आसमान छू रहे हैं। मल्टीनेशनल कंपनियां बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों के वायदा बाजार में सट्टा कराती हैं उसके परिणामस्वरूप भी खाद्य पदार्थ निचली पायदान की आबादी के लिए दुर्लभ है। पहले वॉल्मार्टका बोधवाक्य हुआ करता था- आलवेज लो प्राइसेस, आलवेज’ (हमेशा कम कीमत, हमेशा)। उसे जैसे ही मंदी की आहट मिली 2008 में उसका नारा बदल गया सेव मनी, लीव बेटर’ (धन बचाओ, बेहतर जियो)। 2011 में भारी मंदी के बीच भी वॉल्मार्टने ब्रेड, दूध, कॉफी, चीज यानी लगभग हर आवश्यक खाद्य सामग्री का भाव बढ़ा दिया। अब अमेरिका में कोई ब्रांड उसका मुकाबला कर पाने की स्थिति में नहीं, इसलिए उसे अब प्रतियोगिता की परवाह नहीं, सो ग्राहकों को चूसने का दौर चल पड़ा है। जो कंपनी अमेरिकियों का खून चूस सकती है उससे भारतीयों को कौन बचाएगा?
सो, आप तैयार रहे कि सुनील भारती मित्तल अब वॉल्मार्टके सहयोग से जल्द ही इस देश को लूटने का चक्र शुरू करेंगे। टाटा का संभावित पार्टनर टेस्को है। टेस्कोने पिछले साल आयरलैंड में बड़े पैमाने पर अपने सामानों की कीमत में इजाफा किया है। टेस्कोको अपनी बैलेंस शीट में मुनाफा बढ़ाने का दबाव था सो उसने 8000 वस्तुओं की कीमतें एकमुश्त बढ़ा दीं। कौन रोक सकता है उसे? यही काम फ्रांस में केयरफोरऔर हायपरमार्केट के बड़े ब्रांड्स ने देखते-देखते ऑस्ट्रेलिया के 97 प्रतिशत खुदरा बाजार को अपने कब्जे में ले लिया। ब्रिटेन समेत यूरोप में बड़े ब्रांड्स के पास न्यूनतम 50 प्रतिशत बाजार पर कब्जे में है। इसका परिणाम है कि जब मंदी में बाकी व्यापारी दम तोड़ रहे हैं तब मनचाही मूल्यवृद्धि कर बड़े मल्टीनेशनल अपना मुनाफा बढ़ा रहे हैं। नीलसन नामक सर्वेक्षण कंपनी ने फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) पर रिटेल एंड शॉपर्स ट्रेंडरू एशिया पैसिफिक, दि लैटेस्ट इन रिटेलिंग एंड शॉपर्स ट्रेंडके अगस्त 2010 के रिपोर्ट में माना कि सन् 2000 से 2009 के बीच कोरिया, सिंगापुर, ताईवान, चीन, मलेशिया और हांगकांग में देखते-देखते मल्टीनेशनल ब्रांड खुदरा व्यापार को निगल गए। क्या भारत इस अजगर के जबड़े से बच पाएगा?
(लेखक मुंबई से प्रकाशित सामना के कार्यकारी संपादक हैं)

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