मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

सस्ती दवाएं हुईं बाजार से नदारत


सस्ती दवाएं हुईं बाजार से नदारत

(महेश)

नई दिल्ली (साई)। दवाओं की कीमतें तय करने की नई नीति को मंजूरी मिलने के बाद कम रेट की कई जरूरी दवाएं बाजार से गायब हो गई हैं। सूत्रों का कहना है कि दवा कंपनियों ने अब पहले के मुकाबले ज्यादा दाम पर दवाएं बेचने के मकसद से फिलहाल इनकी सप्लाई रोक दी है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि आम जनता को इन दवाओं के विकल्प कई गुना ज्यादा कीमतों पर खरीदने पड़ रहे हैं।
सालब्यूटामोल का इस्तेमाल खांसी और ब्रॉन्काइटिस का इलाज करने के लिए किया जाता है। यह अब बाजार में आसानी से नहीं मिल रही है। मेट्रोनिडाजोल कई किस्म के बैक्टीरियल इन्फेक्शन में दी जाती है। यह भी बाजार से गायब है। इसी तरह अस्थमा, एलर्जी और आर्थराइटिस में प्रयोग होने वाली बीटामीथासोन, दर्द निवारक दवा पेंटाजोसाइन और सांस की बीमारियों, सूजन व कई अन्य दिक्कतों में दी जाने वाली टेक्सामीथासोन की भी बाजार में किल्लत हो गई है। इसके अलावा खून के दौरे को दुरुस्त रखने के लिए इस्तेमाल होने वाली पेंटॉक्सीफायलिन भी बाजार में आसानी से नहीं मिल रही है। ये सभी जेनरिक दवाएं हैं और इनकी कीमतों पर मूल्य नियंत्रण के प्रावधान लागू होते हैं।
सरकार ने हाल में ही मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं के दाम तय करने के लिए नई नीति का ऐलान किया है। पहले ऐसी दवाओं के रेट तय करने के लिए कॉस्ट को आधार बनाया जाता था। अब इनके मूल्य इनके बाजार मूल्य के आधार पर तय किए जाएंगे। सरकार अब बाजार मूल्य के आधार पर इस दायरे में आने वाली हर दवा का अधिकतम मूल्य तय कर देगी। कंपनियों को इस कीमत या इससे कम कीमत पर अपनी दवाएं बेचने की आजादी होगी। मूल्य नियंत्रण के दायरे में पहले 74 बल्क ड्रग्स को रखा गया था। अब इनकी संख्या 348 कर दी गई है। इसमें कैंसर और टीबी की दवाएं भी शामिल की गई हैं।
रेट तय करने की नई नीति से हर दवा की न्यूनतम कीमत बढ़ना तय है। सूत्रों का कहना है कि इसी कारण कई कंपनियां पुराने रेट पर दवाएं सप्लाई करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसके कारण आम लोगों को इन दवाओं के विकल्प ज्यादा कीमत पर खरीदने पड़ रहे हैं। मसलन सालब्यूटामोल की 10 टैबलेट की कीमत 1.80 रुपये है। पेशंट को अब इसका विकल्प 6 रुपये में खरीदना पड़ रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं के मामले में यह अंतर और भी ज्यादा है। 

कोई टिप्पणी नहीं: