शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

सट्टे के मकडज़ाल में फंसा युवा वर्ग


सट्टे के मकडज़ाल में फंसा युवा वर्ग

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। कुछ दिनों पहले मीडिया की जागरूकता के चलते न चाहते हुए भी पुलिस प्रशासन को शहर भर के तमाम सट्टेबाज और खाईबाजों को खदेडऩा पड़ा था। प्रतिदिन अखबारों पर इन सभी सट्टेबाजों के नाम से ही समाचार प्रकाशित हो रहे थे। इस दबाव के चलते पुलिस ने भी आनन- फानन में अपनी कार्यवाही की, किंतु कुछ दिनों तक इस काले धंधे पर लगाम लगने के पश्चात पुनरू दोगुनी रफ्तार से इसकी शुरूआत हो चुकी है, अब इन सट्टेबाजों के द्वारा दैनिक वेतनभोगी के रूप में अपने कर्मचारी रख लिये गये हैं, जो कि पट्टी लिखना और भुगतान करने का काम करते हैं। पुलिस महकमे के जिन लोगों का वीडियो फेसबुक में अपलोड किया गया था, उन पर भी जिला पुलिस अधीक्षक के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई, जिसके चलते फिर से ये लोग 100, 200, 500 और 1000-5000 अपनी अपनी वर्दी पर लगे स्टार के दम पर वसूल रहे हैं।
प्रतिदिन दोपहर के लगभग 04 बजते ही नगर में सट्टे खाईबाजों के मोबाईल घनघनाने लगते हैं और दूसरी ओर से आवाज आती है हां भाई, ओपन क्या आई है?। पुनः यही बात शाम 06 बजे, रात 9ः20 और रात्रि 12- 12ः30 बजे होती है। यह आश्चर्य की बात है कि सिवनी नगर में सट्टे का कारोबार चलाता है। आश्चर्य इस बात का है कि जहां पुलिस प्रशासन अपनी सक्रियता के डिंडौरे पीटता है, वहीं उनकी नाक के नीचे यह सट्टे का कारोबार चल रहा है और हमारे खाकीधारक सच्चे सिपाहियों को इस बात की भनक भी नहीं। या शायद यह हो कि कुछ सिक्कों की खनक के कारण यह सारी घटना पर स्वयं पर्दा डालते हैं। नगर निरीक्षक महोदय तो मानो इस विषय पर कोई रूचि ही नहीं लेते। इस कारण सैकड़ों परिवार प्रतिदिन बर्बादी की कगार में जा रहा है। दिन भर अपनी मेहनत मजदूरी कर चंद रूपए अपने परिवार के लिए कमाने वाले ये मजदूर किस्म के लोग धन कमाने के इस शार्टकट रास्ते पर चलते हैं, लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं होता कि यह शार्टकट रास्ता उनकी बर्बादी का कारण बनता है। सट्टे के खेल में जो उग जाता है वह हंसी- खुशी अपने परिवार के साथ अपने दिन बिताता है, लेकिन जो डूब जाता है वह शराब के नशे में धुत होकर अपने ही परिजनों को शारीरिक और मानसिक प्रताडऩा देने से भी नहीं चूकता। दूसरी तरह से अगर कहा जाए तो घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण सट्टा भी है, जो आए दिन हर गली मोहल्ले में घटता नजर आता है, लेकिन हमारा पुलिस प्रशासन इन मामलों में पंगु बनकर सिर्फ छोटी- मोटी उपल्बिधयों से ही अपनी पीठ थपथपाता है।
नगर में बुधवारी बाजार, भैरोगंज चौक, गणेश चौक, शुक्रवारी, मंगलीपेठ और गंज क्षेत्र सट्टे का प्रमुख केंद्र बन गये हैं, जहां शहर भर के छोटे छोटे सट्टा लिखने वाले अपनी लिखी पट्टी की कटाई भी कराते हैं और खुद भी सट्टा लिखाते हैं। देखा जाये तो ये केवल जल्द से जल्द पैसा कमाने वालों तक ही सीमित रहने वाला खेल नहीं रह गया है, बल्कि शासकीय कार्यालयों तक इसकी पैठ हो चुकी है। एक जैन व्यापारी तो शासकीय कर्मियों को सट्टे का शौक पूरा करने के लिए ब्याज पर रकम तक उपलब्ध करवाता है साथ ही वह उन कर्मचारियों की बैंक पासबुक और एटीएम पासवर्ड सहित अपने पास रख लेता है, जिससे वेतन के आते ही वह ब्याज सहित बैंक से वसूल लेता है। ये व्यापारी अक्सर बैंक ऑफ इंडिया के आसपास बड़ी आसानी से चाय पान की दुकान में नजर आ ही जाता है। सट्टे के साथ- साथ सूदखोरी के इस मकडज़ाल से पुलिस निजात दिलाती है कि नहीं या जैसे यह गंदगी फैल रही है, फैलते रहेगी? यह आगामी समय में पता चलेगा।

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