सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

रियाया पीएम नहीं दुल्हा बनाना चाहती हैं युवराज को


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

रियाया पीएम नहीं दुल्हा बनाना चाहती हैं युवराज को
उत्तर प्रदेश के अमेठी की जनता को इस बात की चिंता कम है कि उनके सांसद और कांग्रेस के कथित युवराज राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनें। अमेठी की रियाया इस बात को लेकर ज्यादा उत्सुक नजर आ रही है कि उनके युवराज कब दूल्हा बनकर घर बसाएंगे। अमेठी के हाल ही के दौरे में चंदन गारमेंट्स नामक दुकान के मालिक देवी प्रसाद से चर्चा के दौरान देवी प्रसाद ने राहुल से कहा कि अमेठी वासियों की इच्छा उनकी दुल्हन देखने की है। इस सवाल पर राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा कि जल्द ही एसा होगा। राहुल के इस बार के अमेठी दौरे के दरम्यान एक बात ही सामने आई, हर कोई राहुल को प्रधानमंत्री से ज्यादा घोड़ी चढ़ दुल्हा बनाने को आतुर नजर आ रहा है। गौरतलब है कि पूर्व में ज्योतिषियों ने राहुल की शादी 48 साल के उपरंात ही होने का दावा किया था।

नाथ की शरण में शिंदे!
केंद्रीय गृहमंत्री को इस समय संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ तारण हार से कम नजर नहीं आ रहे हैं। जयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर में सोनिया और राहुल की नजरों में नंबर बढ़ाने की गरज से उन्होंने भगवा आतंकवाद के मसले को उछाला अवश्य पर अब वे विपक्ष विशेषकर भाजपा के निशाने पर हैं। झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय केशव कुंज के सूत्रों का कहना है कि संघ के शीर्ष नेतृत्व ने इस मसले को गंभीरता से लिया है और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोश और सुषमा स्वराज को तलब कर 21 फरवरी से आरंभ होने वाले लोकसभा सत्र में शिंदे को घेरने के हुक्म जारी कर दिए हैं। इसकी कमान सुषमा स्वराज को दी गई है। इस बारे में जब जानकारी शिंदे को मिली तो वे बुरी तरह भयाक्रांत नजर आ रहे हैं। अब फ्लोर मैनजमेंट में माहिर कमल नाथ पर ही जाकर उनकी नजरें आ टिकी हैं। देखना है कि कमल नाथ किस तरह विपक्ष की धार को बोथरा करते हैं।

मैया मो तो चंद्र खिलौना लेंहूं. . .
कांग्रेस के नेता देश चला रहे हैं या फिर बाल हट कर रहे हैं। हर मामले में कमोबेश कांग्रेस का यह रूख साफ दिखाई देता है कि कांग्रेस के मंत्री अपनी हठ के आगे किसी की नहीं सुनना पसंद करते हैं। कितने आश्चर्य की बात है कि दिसंबर में गैंगरेप पीड़िता को सिंगापुर भेजने के पक्ष में खुद स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद नहीं थे पर फिर भी गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने उसे सिंगापुर भेज दिया। शिंदे का कहना था कि इस मामले में प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ नरेश त्रेहन के साथ अनेक विशेषज्ञों से सलाह मशविरा हो चुका है अतः इस फैसले पर पुर्नविचार की आवश्यक्ता ही नहीं थी। कैबनेट की बैठक में एक मंत्री ने यहां तक कहा कि त्रेहन हार्ट स्पेशलिस्ट हैं पर शिंदे थे कि मैया मो तो चंद्र खिलौना लेंहूं का रट लगाकर पीडिता को सिंगापुर भेजने पर आमदा थे। पीडिता को सिंगापुर क्यों भेजा यह आज भी लोगों के लिए अबूझ पहेली ही है। विपक्ष भी इस मसले पर मौन ही है।

पुलक की संजीवनी पर सांसे ले रहे नायर!
पुलक चटर्जी के प्रधानमंत्री कार्यालय आते ही टी.के.नायर को किनारे लगा दिया गया था, पीएमओ में। लोगों को यहां तक कि पीएमओ कव्हर करने वाले मीडिया पर्सन्स को भी यह लगने लगा था कि टी.के.नायर अब काम के नहीं बचे हैं। जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। नायर आज भी वहां ताकतवर बने हुए हैं। कहते हैं नायर ने सबसे पहले पुलक चटर्जी को साधा। पुलक चटर्जी की गुड बुक्स मेें आने के उपरांत नायर का रसूख फिर से पुराने जैसा हो गया है। कहते हैं नायर अब पुलक चटर्जी को इनपुट्स देने का काम बखूबी करने लगे हैं। इतना ही नहीं महत्वपूर्ण निर्णयों में भी नायर की महती भूमिका रहती है। पीएमओ के सूत्रों का दावा है कि टी.के.नायर पीएमओ में विदेश मामलो को छोड़कर हर मामले में अपनी राय देते हैं और उनकी राय को महत्व भी दिया जाता है।

रीढ़ तलाशते बिना रीढ़ के नेता!
कांग्रेस में राज्यसभा के रास्ते चुनावी बिसात में कूदने वाले नेता अब बरास्ता लोकसभा राजनीति करने का मन बना रहे हैं। 2014 में जो राज्यसभाई नेता चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं उनमें केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला, जयंती नटराजन, अश्विनी कुमार, रहमान खान, जी.के.वासन, सुरेश पचौरी आदि प्रमुख बताए जा रहे हैं। एआईसीसी के सूत्रों का कहना है कि राजीव शुक्ला उत्तर प्रदेश से अपनी पसंदीदा सीट पर संभावनाएं तलाश रहे हैं। बरास्ता सतीश मिश्रा उनकी सीधी पहुंच मायावती तक है, इसलिए वे अपने खिलाफ बसपा के वाकोवर के प्रयास में लगे हैं। वहीं जयंती नटराजन तमिलनाडू के श्रीपेरंबदूर, जी.के.वासन मल्लादुराई या चेन्नई के दक्षिण इलाके से, रहमान खान कर्नाटक तो अश्विनी कुमार पंजाब से किस्मत आजमाना चाह रहे हैं। सुरेश पचौरी का मन मध्य प्रदेश के होशंगाबाद से चुनाव लड़ने का बन रहा है।

संघ और भाजपा में खुदी खाई!
भारतीय जनता पार्टी और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच अब रिश्ते बहुत सामान्य नहीं प्रतीत हो रहे हैं। गौरतलब है कि जब अटल आड़वाणी की जोड़ी भाजपा में शीर्ष पर थी तब इन दोनों के रिश्तों की तल्खी पर संघ बारीक नजर रखा करता था। आज हालात एकदम बदल चुके हैं। गड़करी को दूसरा कार्याकाल देने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा के आला नेताओं को बुलाकर सर जोड़कर बैठाने की जहमत नहीं उठाई है। लगता है संघ का शीर्ष नेतृत्व अब भाजपा के नंबर दो वाले नेताओं के कदमताल और कांग्रेस के प्रति नरम रवैए से नाखुश है। संघ मुख्यालय केशव कुंज के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी ने जनता का ध्यान देने के बजाए अब कांग्रेस के इशारों पर खुद का ज्यादा ध्यान रखना आरंभ कर दिया है। भाजपा भी अब कांग्रेस की ही तरह प्राईवेट लिमिटेड पार्टी के रूप में चलने लगी है।

बेटे को टाईम फ्रेम में बांधा नेताजी ने
नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। मुलायम के करीबी सूत्रों का कहना है कि नेताजी ने अपने पुत्र को सीधे सीधे अल्टीमेटम देकर दो माह में अपना चाल चलन (कार्यप्रणाली) में सुधार करने को कहा है। सूत्रों का कहना है कि खुफिया रिपोर्ट और सर्वे ने नेताजी की नींद उड़ा दी है, जिसमें अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली के चलते राज्य में एक बार फिर बसपा का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। मुसलमान भी समाजवादी पार्टी से दूरी बनाते जा रहे हैं। मुलायम सिंह को कार्यकर्ताओं ने भी आगाह किया है। अगर अखिलेश यादव ने अपना तौर तरीका नहीं बदला तो मजबूरी में मुलायम सिंह लोकसभा चुनाव तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, क्योंकि हालात अगर यही रहे तो लोकसभा में सपा को अपने पुराने 22 सीट को बरकरार रखना भी दुष्कर ही साबित होगा।

उत्तर प्रदेश से प्रफुल्ल का लेना देना!
राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल मूल रूप से महाराष्ट्र से हैं। उत्तर प्रदेश से उनका खास लेना देना नहीं है पर पिछले दिनों कैबनेट की बैठक में वे उत्तर प्रदेश के एक सार्वजनिक उपक्रम स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड के लिए बेल आउट पैकेज की मांग करते देखे गए। इसका पुरजोर विरोध किया वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम ने। फिर क्या था यंत्रचलित मुद्रा में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इसमें दखल दिया और कहा कि इसे दो सौ करोड़ा का पैकेज दिया ही जाना चाहिए। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के दबाव में आकर प्रफुल्ल पटेल ने यह कदम उठाया है और चिदम्बरम को इसकी जानकारी नहीं थी, पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को भी साफ तौर पर निर्देश देकर इस पैकेज को जारी करने को कहा था इसीलिए अमूमन साईलेंट मोड में रहने वाले मनमोहन सिंह ने अपना मुंह इस मसले पर खोला था।

चिदम्बरम से परेशान हैं अश्विनी!
कानून मंत्री अश्विनी कुमार इस समय वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम से बुरी तरह नाराज बताए जा रहे हैं। इसका कारण चिदम्बरम का सीधा सीधा कानून मंत्रालय में दखल और वर्चस्व बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि कानून मंत्री चाहे जो कर लें, पर अंतिम मुहर चिदम्बरम की ही लगती है। गैंगरेप के मामले में न्यायिक आयोग पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने अश्विनी कुमार से मुखातिब होकर उनका पक्ष जानना चाहा। छूटते ही अश्विनी कुमार ने मामला चिदम्बरम के पाले में डालते हुए कहा कि इनसे ही पूछ लीजिए कानून मंत्रालय के मामलों में अंतिम फैसला यही करते हैं। अश्विनी कुमार को चिदम्बरम द्वारा सुपरसीट करने पर उनकी पीड़ा पर प्रधानमंत्री ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान फैंकते हुए चिदम्बरम की ओर देखा और अंत में चिदम्बरम के ही मश्विरे को अंतिम माना गया।

जयराम और विजय!
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश इन दिनों काफी परेशान चल रहे हैं। उनकी परेशानी का कारण विजय नाम होना है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का फिल्मों में पसंदीदा नाम रहा है विजय! और यही नाम अब जयराम रमेश के लिए परेशानी का सबब बन चुका है। दरअसल, ग्रामीण विकास मंत्रालय में विजय नाम के अनेक अधिकारी हैं। विभाग में एस.विजय कुमार सचिव हैं, अतिरिक्त सचिव हैं विजय आनंद, अतिरिक्त सचिव हैं विजय श्रीवास्तव, तो टी.विजय नाम के दो अफसर हैं संयुक्त सचिव। बताते हैं कि एक विजय के खिलाफ गोपनीय शिकायत पर कार्यवाही के लिए जयराम रमेश ने एक रूक्का दूसरे विजय के पास भेजा। विजय विजय के हेर फेर में वह रूक्का उसी विजय के पास पहुंच गया जिसके खिलाफ वह शिकायत थी। मामला जब जयराम रमेश को पता चला तो उन्होंने अपना सर पीट लिया। अब वे अपने मंत्रालय में विजय एक विजय दो विजय तीन विजय चार जैसे नामकरण करने पर विचार कर रहे हैं।

 धरी रह गई सारी तैयारी!
भारतीय जनता पार्टी के निर्वतमान अध्यक्ष नितिन गड़करी अपने दूसरे कार्यकाल के प्रति इतने आश्वस्त थे कि वे इसके लिए सारी तैयारियां कर चुके थे। 11 अशोक रोड़ स्थित अपने कार्यालय और तीन मूर्ति लेन स्थित उनके आवास को उनके अनुरूप एक बार फिर सजाया गया था। भाजपा मुख्यालय में उनके कार्यालय का नवीनीकरण, कांफ्रेंस हाल का सौंदर्यीकरण, उनके आवास में रंग रोगन सुधार आदि का काम उनके मन मुताबिक हो गया था। इसका भोगमान किसने भोगा यह बात तो गड़करी ही जानते होंगे या इस काम की देख रेख करने वाला किन्तु लाखों रूपए पानी में ही बह गए हैं। इसका कारण यह है कि वर्तमान निजमा राजनाथ सिंह सीधी सादी सोच वाले हैं जबकि गड़करी तड़क भड़क शोशा पसंद करते थे। भाजपा के मुख्यालय में इस बारे में चर्चा गर्म है कि पता नहीं राजनाथ सिंह आगे गड़करी के सुसज्जित लकझक कार्यालय को ही अपनाएंगे या फिर अपने मुताबिक सादगी भरा नया कार्यालय तैयार करवाएंगे।

पुच्छल तारा
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट फेसबुक पर तरह तरह के अपडेट आते रहते हैं। इन अपडेट्स के बारे में कुछ सच्चाई तो कुछ झूठी बातों का समावेश रहता है। पिछले दिनों हृदय प्रदेश में भगवान शिव की नगरी मानी जाने वाली सिवनी में कर्फ्यू लगा दिया गया। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि मीडिया को ही घरों में कैद कर दिया गया। पता नहीं हालात किस कदर बेकाबू थे या होने को थे कि अखबारों का वितरण तक नहीं होने दिया गया। मीडिया को हालात का जायजा लेने नहीं जाने दिया गया। बाद में मीडिया को शाम पांच बजे तक ही पास दिए गए, सवाल यह है कि अगर सवा पांच बजे कहीं कोई घटना घटती तो मीडिया असहाय रहता। इस मामले में प्रशासन और मीडिया के बीच के सेतु जनसंपर्क के जिला प्रमुख अपने आप को प्रशासन के सामने असहाय बताकर अपनी जान बचा रहे थे। यह शिवराज सिंह चौहान के लिए वाकई शर्मनाक है कि उनके राज में एक जिले में मीडिया पर अघोषित सैंसरशिप लागू कर दी गई। मजे की बात यह है कि समाचार चेनल्स के संवाददाताओं पर घरों से फोन से समाचार भेजने पर प्रतिबंध नहीं था। देश दुनिया में सिवनी वालों के रिश्ते नातेदारों को सोशल मीडिया के सहारे ही खोज खबर लेने देने पर निर्भर रहना पड़ा।

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