बुधवार, 24 अप्रैल 2013

भूतप्रेत कल्पना बनकर रह गई ब्राडगेज!


भूतप्रेत कल्पना बनकर रह गई ब्राडगेज!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। सिवनी में ब्राडगेज एक दिवा स्वप्न नहीं भूत प्रेत की काल्पनिक कथा बनकर रह गई है। तिस पर से करेला और नीमचढ़ा की कहावत को चरितार्थ करते हुए नैनपुर से बरास्ता सिवनी होकर छिंदवाड़ा जाने वाली सिवनी की छुकछुक गाड़ी इन दिनों बढ़ी यात्रियों की संख्या के दबाव में चरमराती दिख रही है।
छोटी लाईन पर यात्रियों की संख्या के दबाव से जहां रेल का परिसंचालन गड़बड़ा गया है, वहीं यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बताया जाता है कि उपरी राजनैतिक दबाव के चलते सिवनी में नेरोगेज के अमान परिवर्तन का मार्ग रूक गया है।
ज्ञातव्य है कि वर्तमान में ग्रीष्मकालीन अवकाश का मौका है। शादी ब्याह मेले ठेले के चलते छोटी रेल में यात्रियों की तादाद में जमकर इजाफा दर्ज किया जा रहा है। आलम यह है कि यात्री इनके डब्बों में मवेशियों के मानिंद ही भरे हुए हैं। इसके साथ ही साथ इस रेल में एमएसटी यानी रोजाना आने जाने वाले यात्रियों का दबाव अलग से है।
दक्षिण पूर्व मध्य रेल के इस नेरोगेज पर चलने वाली विभिन्न रेल ट्रेन्स को सीएन नाम दिया गया है। नैनपुर से ंिछंदवाड़ा जाने वाले मार्ग पर सिवनी एक प्रमुख और मध्य में पड़ने वाला स्टेशन है, जहां से प्रतिदिन छिंदवाड़ा और नैनपुर की ओर जाने वाले यात्रियों की खासी तादाद देखी जाती है।
इस रेल खण्ड का उपयोग ग्रामीण इसलिए भी करना पसंद करते हैं क्योंकि इसमें यात्रा करना अपेक्षाकृत सस्ता है। नैनपुर से आगे जबलपुर और छिंदवाड़ा के आगे भोपाल जाने के लिए लोग इन्ही रेल गाड़ियों का प्रयोग करते हैं। छिंदवाड़ा से पेंचव्हेली और नई दिल्ली जाने वाली पातालकोट एक्सप्रेस का लुत्फ भी यात्री उठाते हैं।
छोटी लाईन में यात्रियों की रेलमपेल इस कदर होती है कि यात्री छतों पर भी सवारी करने से गुरेज नहीं करते हैं। एसा नहीं है कि रेल प्रशासन और सुरक्षा के लिए तैनात जीआरपी इससे अनजान है, किन्तु आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि रेल प्रशासन इस मामले में नागपुर के जोनल कार्यालय के एक तुगलकी फरमान का हवाला देकर अपने हाथ खड़े कर लेता है।
रेल्वे विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जोनल मुख्यालय नागपुर के आदेश के तहत रेल के डब्बों की संख्या कम कर दी गई है, जो पहले से ही अपर्याप्त मानी जाती थी, लिहाजा यात्री जो पहले से ही ठसाठस भरकर यात्रा करने पर मजबूर थे, वे अब घास भूसे के मानिंद यात्रा पर मजबूर हैं।

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