शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

भ्रष्टों के सरदार मनमोहन --- 2


कथड़ी ओढ़ कर घी खा रहे हैं मनमोहन

नाकामियों का बचाव कमजोरियों से!

मनमोहन के लिए राष्ट्रधर्म से बढ़ा है गठबंधन धर्म

वजीरे आजम ने प्रिंट को दरकिनार कर इलेक्ट्रानिक को बिठाया गोद में

(लिमटी खरे)

आजाद भारत के इतिहास में सबसे भ्रष्ट सरकार के मुखिया डॉक्टर मनमोहन सिंह गत दिवस चुनिंदा समाचार चेनल्स के संपादकों से रूबरू हुए। प्रधानमंत्री ने अपने आप को बेहद निरीह बताकर देशवासियों का भरोसा और हमदर्दी जीतने का कुत्सित प्रयास किया है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए। कितने आश्चर्य की बात है कि मनमोहन सिंह जैसी शख्सियत राष्ट्रधर्म निभाने के बजाए गठबंधन के चलते अपनी मजबूरियों दुश्वारियों को गिना रहे हैं। इस मुलाकात के पहले ही इसे पूर्वनियोजित बढ़ा चढ़ा कर पेश कर दिया गया था। देश के संपादकों ने भी बेबाकसवाल दागे, पर किसी ने यह नहीं पूछा कि जनता ने कांग्रेस को अगर स्पष्ट जनादेश नहीं दिया है तो क्या गठबंधन की कीमत पर देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के प्रधानमंत्री सरकार को सहयोग करने वाले दलों के नुमाईंदों को देश को लूटने की इजाजत दे देंगे? क्या मुखिया होने के नाते नैतिकता के आधार पर वे त्यागपत्र देने को तैयार हैं?

वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें राज के खिलाफ ढेरों शिकायतें मिल रही थीं, फिर भी गठबंधन की मजबूरी के चलते राजा को संचार मंत्री बनाया गया। यक्ष प्रश्न तो यह है कि सत्ता की मलाई चखने की आखिर एसी क्या मजबूरी है, जिसके चलते देश के संसाधनों के अवैध तरीके से दोहन और सिस्टम को अपनी जेब में रखे बिना कोई और उपाय क्यांे नहीं किए गए। ईमानदार साफगोई पसंद प्रधानमंत्री की आखिर क्या मजबूरी थी कि उन्होंने शिकायत के ढेर पर बैठे एक एसे शख्स को न केवल मंत्री बनाया वरन् उसे लंबे समय तक ढोया और उसका बचाव भी किया।

जनता के मानस पटल पर यह प्रश्न घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि भ्रष्टाचारी ए राजा जिनके खिलाफ शिकायतों के पुलिंदे थे, उन्हें मंत्री बनाना प्रधानमंत्री की मजबूरी थी, या फिर उनकी या किसी अन्य मंत्री या संत्री की गल्ति को रोकना प्रधानमंत्री की नैतिक जवाबदारी है। इससे क्या यह साफ नहीं हो जाता है कि मनमोहन सिंह सत्ता का सुख पाने के लिए किसी दल विशेष को सरेराह रिश्वत देकर खुश कर रहे थे? मनमोहन सिंह को जवाब देना ही होगा कि प्रधानमंत्री रहते हुए वे किसी दल विशेष के प्रति जवाबदेह हैं या फिर भारत गणराज्य की सवा करोड़ से अधिक जनता के प्रति। प्रधानमंत्री की गठबंधन को लेकर स्वीकारोक्ति से साफ हो जाता है कि वे सरकार नहीं चला रहे वरन् एक मुनाफा कमाने वाली एक संस्था के मुखिया बन चुके हैं। देश में डॉ.मनमोहन सिंह की छवि धूल धुसारित हुए बिना नहीं है, लोग कहने लगे हैं कि जो प्रधानमंत्री जनता के बीच जाकर जनादेश लेने से कतरा रहा हो, वह किसी जांच एजेंसी का भला क्या सामना कर सकेगा।

सरकार चलाने के लिए ममता बनर्जी का हाथ थामना भी डॉ.मनमोहन सिंह की मजबूरी है। ममता बनर्जी इसी छूट का बेजा इस्तेमाल कर सरकारी खर्च पर बंगाल को नाप रही हैं। देश का रेल मंत्रालय भाड़ में जाता है जाए ममता की बला से! यह हो क्या रहा है मनमोहन सिंह जी? भारतीय रेल पटरी से उतर चुकी है, ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनना है, तब तक वे भारत गणराज्य की रेल व्यवस्था को पंगु बनाए जा रही हैं। रेल विभाग के आला अफसरान विभाग की नस्तियां ममता के हस्ताक्षरों के लिए उनके पीछे दौड़ रहे हैं, वह भी जनता के द्वारा एकत्र किए गए धन पर। आप कब तक ध्रतराष्ट्र बने बैठे रहोगे?

भारत गणराज्य में किसी प्रधानमंत्री द्वारा एक विशेष आयोजन कर चुनिंदा मीडिया पर्सन्स को बुलाकर संवाद करने का कोई इतिहास नहीं मिलता है, अलबत्ता विदेश यात्रा, स्वाधीनता अथवा गणतंत्र दिवस या विशेष राजनैतिक या रणनीतिक महत्व की घटनाओं के दौरान एसा होने का उल्लेख अवश्य ही मिलता है। प्रधानमंत्री को अगर खुद चलकर मीडिया के पास जाना पड़ा इसका मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री, सरकार, कांग्रेस और उसके गठबंधन वाले दलों के बीच सब कुछ सामान्य कतई नहीं है। संसद का शीतकालीन सत्र हंगामें की भेंट चढ़ा क्योंकि विपक्ष टूजी मामले में जेपीसी की मांग पर अडिग था। अब प्रधानमंत्री उस पर राजी होते दिख रहे हैं। अब क्या कहा जाए? यही न कि प्रधानमंत्री के अडियल रूख के चलते देश वासियों के करोड़ों रूपयों में आग लगा दी गई।

कितने आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री ने चुनिंदा टीवी संपादकों के सामने ही मीडिया को कटघरे में खड़ा कर दिया और संपादक खीसें निपोरते रहे। मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए पीएम ने कहा कि मीडिया की भूमिका अच्छी है, किन्तु अत्याधिक नकारात्मक रिर्पोटिंग से यह छवि बनती है कि देश में घोटालों के अलावा और कुछ नहीं हो रहा है। वस्तुतः यही सच है कि देश में घपलों घोटालें के अलावा हो क्या रहा है? ये उजागर हो रहे हैं, और सरकार इन पर पर्दा डालने का जतन कर रही है। वैसे प्रधानमंत्री ने चुनिंदा मीडिया पर्सन्स के बीच इस बात पर यकीन दिलाया कि भ्रष्टाचार के मामलों की पूरी जांच की जाएगी। किसी भी सम्माननीय संपादक ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या इसे समय सीमा में बांधा जा सकता है? क्या मामलों की जांच समय सीमा में संभव है? अब तक सुखराम को छोड़कर किस मामले में किस माननीय जनसेवक को जेल की चक्की पीसनी पड़ी?

चुनिंदा टीवी के संपादकों के सामने बैठकर डरने, सहमने और मजबूर दिखाने का प्रहसन कर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह आम जनता के मानस पटल पर सरकार के प्रति उपजे अविश्वास को कम नहीं कर पाए हैं। विदेशों में जमा काला धन इस चर्चा में गौड हो जाना इस बात की ओर साफ इंगित करता है कि इन चुनिंदा टीवी के संपादकों को पहले से ही क्वेश्चनायर थमा दिया गया था ताकि ये सिर्फ विषय पर ही प्रश्न कर सकें।

पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने गठबंधन की मजबूरी का राग अलापा अब खुद वजीरे आजम इस बारे में रोना रो रहे हैं। वस्तुतः दोनों ही महानुभावों को गठबंधन की मजबूरी के स्थान पर सत्ता सुख की मजबूरी का राग मल्हार गाना चाहिए। वहीं इलेक्ट्रानिक मीडिया के चुनिंदा संपादकों को अपने आवास पर बुलाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि उनकी नजर में प्रिंट और वेव मीडिया वाले सौतेली संतान हैं। कल तक पेड पत्रकारिता पर बहस के दौरान इसी सगे बेटे को सबसे अधिक कटघरे में खड़ा किया गया था। हर मोर्चे पर विफल देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संपादकों के साथ चर्चा कर देश वासियों के सामने अपने आप को लाचार और मजबूर साबित कर राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी के उस आरोप को पुख्ता कर ही दिया है जिसमें आड़वाणी ने कहा था कि मनमोहन अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं।

मनमोहन सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रजातंत्र के घोषित तीन स्तंभ न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को सीमाओं में रखने के लिए मीडिया जैसा चौथा अघोषित स्तंभ खड़ा हुआ था। आज तीनों घोषित और चौथे अघोषित स्तंभ की जुगलबंदी के चलते देश रसातल की ओर जाने लगा है तब उदय हुआ है पांचवें स्तंभ अर्थात ब्लागका। जिन खबरों को मीडिया मुगल सैंसर कर देते हैं वे ब्लाग पर प्रमुखता से पढ़ी और देखी जाती हैं। कहने का तात्पर्य महज इतना ही है कि चंद संपादकों के साथ मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की छवि चाहे जैसी पेश करना चाहें करें, किन्तु ब्लागर्स वास्तविकता को जनता के सामने लाकर ही रहेंगे।

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