शुक्रवार, 4 मार्च 2011

और कितने प्रमाण चाहिए कांग्रेस की राजमाता को

थामस का शनी हो गया भारी
 
दागदार को बनाया थानेदार कोर्ट ने उतारा कुर्सी से

आखिर क्या चाह रही हैं सोनिया गांधी?

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से दूध का दूध पानी का पानी

(लिमटी खरे)

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति के दौर में सवा सौ करोड़ की आबादी का भारत गणराज्य बुरी तरह शर्मसार हुआ है। देश को शर्मसार और किसी ने नहीं वरन् सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के वर्तमान निजामों ने किया है। लंबे समय से कांग्रेस की बागडोर इटली मूल की श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों में है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के सारे कारिंदे मनमानी पर पूरी तरह उतारू हैं, और सोनिया कभी मंद मंद मुस्कुरा देती हैं तो कभी जोर का ठहाका लगा देती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पोलायिल जोसफ थामस को हटाने के जो आदेश जारी किए हैं, वे देश की कांग्रेसनीत सरकार की किरकिरी करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, किन्तु घपलों, घोटालों को अंगीकार कर चुकी भ्रष्टों की संरक्षक और हिमायती बनी कांग्रेस पार्टी ने इसे अपने बचाव के तौर पर भी देख रही है। कांग्रेस ने सारी हदें पार कर ली हैं। इस वक्त लगभग तीन लाख करोड़ रूपयों के घपले और घोटाले देश में गूंज रहे हैं, इनका कहीं न कहीं कांग्रेस से संबंध है।

लंबे समय तक पोलायिल जोसफ थामस का बचाव करने वाली केंद्र सरकार के गाल पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो जबर्दस्त तमाचा मारा है, उसकी गूंज की गूंज सालों साल तक सुनी जाती रहेगी। वस्तुतः प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम द्वारा सीवीसी की नियुक्ति के लिए गठित समिति की तीसरी सदस्य नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पोलायिल जोसफ थामस को सीवीसी जैसे महत्वपूर्ण पद पर विराजमान कर दिया था। सवाल यह है कि जहां देश की सबसे बडी जांच एजेंसी सीबीआई भी सीवीसी की देखरेख में काम करती है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के समय संस्थागत गरिमा को बाकायदा ध्यान में रखा जाए। इसके लिए जरूरी है कि सीवीसी जैसे पद पर उस व्यक्ति को बिठाया जाए जिसकी छवि उजली हो, बेदाग हो और वह किसी के दबाव में आकर काम न करे।

पोलायिल जोसफ थामस की हिमाकत तो देखिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायलय में यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग देश में सांसद चुने जा सकते हैं तो फिर वे सीवीसी क्यों नहीं बन सकते हैं। उधर कितने आश्चर्य की बात है कि देश के प्रधानमंत्री को यह नहीं पता कि पोलायिल जोसफ थामस पर पामोलिन आयल घोटाले का प्रकरण चल रहा है! जब थामस पर एक प्रकरण चल रहा है फिर पलनिअप्पम चिदम्बरम भला थामस को कैसे क्लीन चिट दे सकते हैं।

पोलायिल जोसफ थामस में क्या गुड लगा हुआ है जो सरकार बार बार उनका बचाव करती रही। इतना ही नहीं सरकार द्वारा न्यायपलिका पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हुए कहा गया कि न्यायपालिका को सरकार के काम में दखल देने का अधिकार नहीं है। कितने आश्चर्य की बात है कि एक अदने से भ्रष्ट अधिकारी को सही ठहराने के लिए कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा न केवल तथ्यों को छिपाने का कुत्सित प्रयास किया है, वरन देश को गुमराह भी करने में कोई शर्म नहीं महसूस की है।

विडम्बना तो यह है कि एक निहायत ईमानदार व्यक्ति के प्रधानमंत्री होते हुए केंद्र सरकार एक के बाद एक घपले घोटालों से घिरती ही चली जा रही है। पता नहीं कब यह सिलसिला रूक सकेगा। इससे पहले कामन वेल्थ गेम्स में सरकार की खासी किरकिरी हो चुकी है। टूजी मामले में आदिमत्थू राजा का बचाव करने वाली सरकार के सामने बुरी स्थिति तब आई जब उसे इसी मसले में राजा से त्यागपत्र मांगा गया और फिर बाद में राजा को जेल भी भेजा गया।

हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सरकार अपनी जिम्मेवारी को समझना ही नहीं चाहती। बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘जगाया उसे जा सकता है, जो सो रहा हो, किन्तु जो सोने का नाटक करे उसे आप कभी भी जगा नहीं सकते। कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि सरकार को अपने हाथ साफ करके सबके सामने आना चाहिए, ना कि आत्मघाती राजनैतिक मजबूरियों को गिनाने का प्रयास करना चाहिए।

भगवान शनि बहुत दयालू और दूसरी ओर बहुत ही क्रूर भी हैं। शनि देव को तेल का अर्पण करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं। पोलायिल जोसफ थामस ने केरल में पामोलीन तेल के आयात में घोटाला किया था। इस लिहाज से थामस ने शनि को रूष्ट कर दिया। केरल सरकार ने वर्ष 1991 - 92 में सिंगापुर के एक प्रतिष्ठान से ताड़ का तेल मंगवाया गया था। इसमें आरोप था कि इसे अंतर्राष्ट्रीय दर से अधिक कीमत पर मंगाया गया था। सरकार ने 405 डालर प्रति टन की दर से पंद्रह हजार टन तेल के आयात को मंजूरी दी थी। जबकि बाजार में इसकी दर 392.25 डाॅलर प्रति टन थी। इस हिसाब से राज्य सरकार को उस वक्त 2 करोड़ 32 लाख रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था।

जब पोलायिल जोसफ थामस के सीवीसी बनाए जाने की बात चल रही थी तब उनके अलावा 1973 बैच के पश्चिम बंगाल के भारतीय प्रशासनिक सेवा के विजय चटर्जी और 1975 बैच के उत्तरांचल काडर के अधिकारी एस.कृष्णन का नाम उस फेहरिस्त मे ंथा। दूसरी तरफ देखा जाए तो केंद्रीय सतर्कता आयोग एक स्वायत्ता संस्था है, जो केंद्र सरकार की समस्त विजलेंस इकाईयों की निगरानी का काम करती है। वस्तुतः यह कोई जांच एजेंसी नहीं है, यह सीबीआई या अन्य विभागीय जांच एजेंसियों के माध्यम से काम करवाती है। इतना ही नहीं यह सरकार द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की जांच भी स्वयं अपने स्तर पर ही करती है। देखा जाए तो सीवीसी ने 1998 से ही काम करना आरंभ कर दिया था किन्तु इसका गठन 2003 में देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश के बाद हुआ था।

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