बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

सावधान! मानसून के बाद बढ़ सकते हैं सीमेंट के दाम


सावधान! मानसून के बाद बढ़ सकते हैं सीमेंट के दाम

(लिमटी खरे)

सीमेंट एक बड़ा उद्योग बन चुका है भारत गणराज्य में। सीमेंट का उपयोग अब हर घर में होने ही लगा है। एक समय था जब सत्तर के दशक में सीमेंट की राशनिंग की गई थी। उस समय सीमेंट की खपत बहुत ज्यादा थी और उत्पादन बेहद कम। सीमेंट का उद्योग तेजी से उपर आया है। आज प्रति व्यक्ति सीमेंट की खपत लगभग डेढ़ सौ किलोग्राम आंकी जा रही है। मानसून में वैसे भी सीमेंट का उपयोग बेहद कम होता है। अब जबकि बारिश रूक गई है तब मानसून की बिदाई के साथ ही सीमेंट की कीमतों में उछाल दर्ज किया जाएगा। इसका बड़ा कारक डीजल पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी भी है। त्योहारी मांग को देखकर सीमेंट की कीमतों में इजाफे से इंकार नहीं किया जा सकता है।

देश के महानगरों के अलावा छोटे मंझोले शहरों में भी अब कांक्रीट जंगल खड़े होना आरंभ हो गए हैं। मकान पक्के हों या कच्चे हर जगह सीमेंट का उपयोग अवश्यंभावी ही है। बिना सीमेंट कोई भी दीवार खड़ी नहीं हो सकती है। यही कारण है कि सीमेंट उद्योग में दिन दोगनी रात चौगनी बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। सत्तर के दशक के उत्तरार्ध से लेकर अस्सी के दशक के आरंभ तक सीमेंट की मांग और उत्पादन में कमी के चलते सीमेंट तक की राशनिंग कर दी गई थी। लोग मकान बनाते वक्त सीमेंट खरीदने के लिए पर्ची बनवाने के लिए रतजगा तक किया करते थे। इस दौर में सीमेंट की कालाबाजारी करने वालों की पौ बारह हो गई थी।

मानसून की बिदाई की बेला आते आते रियल्टी सेक्टर के कदम तालों में तेजी आना आरंभ हो गया है। अक्टूबर नवंबर माह में सीमेंट, इंफ्रा और रियल्टी सेक्टर में उफान आने की भविष्यवाणियां होना आरंभ कर दी गई हैं। सीमेंट उत्पादन से जुड़े लोगों का भी मानना है कि अगले माह से सीमेंट के दामों में जबर्दस्त उछाल दर्ज होने की संभावनाएं हैं। त्योहारी मांग को देखकर भी सीमेंट की कीमतों में इजाफे से इंकार नहीं किया जा सकता है।

अमूमन सीमेंट के तीन ही उपभोक्ता होते हैं, इनमें बिल्डर, इंफ्रास्टक्चर संस्थाएं और व्यक्तिगत प्रमुख हैं। एक आंकलन के मुताबिक कुल उत्पादन का चालीस फीसदी हिस्सा व्यक्तिगत तौर पर ही उपयोग में लाया जाता है। वैसे सरकार की इंफ्रास्टक्चर क्षेत्र के प्रति नजदीक और लचीला रवैए के साथ ही साथ त्योहारी आकर्षण में बिल्डर्स द्वारा छूट के साथ मकानों के बेचने की घोषणा के चलते सीमेंट की मांग में तेजी से इजाफा होने का अनुमान है।

वैसे भी मानसून में निर्माण कार्य बाधित ही हुआ करते हैं, यही कारण है कि बारिश के चार माहों में सीमेंट की खपत न्यूनतम ही हुआ करती है। सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में इजाफा किया जा चुका है। पेट्रोल, डीजल, कोयला, लाजिस्टिकल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के चलते सीमेंट की कीमतों में वैसे ही उछाल दर्ज किया जा सकता है। अनुमान तो यह लगाया जा रहा है कि सीमेंट की कीमतों में दस से तीस रूपए प्रति बैग की वृद्धि दर्ज हो सकती है।

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008 - 2009 में 18.61 करोड़ टन सीमेंट का उत्पादन किया गया था। इसी वित्तीय वर्ष में 1850 करोड़ डालर का कुल टर्न ओवर था सीमेंट उद्योग का। सीमेंट इंडस्ट्री के माध्यम से इस वक्त दुनिया में चौदह खरब लोग अपने परिवार की क्षुदा शांत कर रहे हैं। रही बात भारत की तो भारत में इस वक्त 365 छोटे और सफेद सीमेंट के प्लांट अस्तित्व में हैं। जिनमें से 148 बड़े सीमेंट प्लांटस हैं।

आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि भारत गणराज्य विश्व में सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक देश है। भारत की सीमेंट इंडस्ट्री की उत्पादन क्षमता वित्तीय वर्ष 2009 - 2010 में बढ़कर 21.9 करोड़ टन हो गई है। देश में इस वक्त कुल 46 कंपनियां सीमेंट उत्पादन के कार्य में लगी हुई हैं। चालू माली साल के बाद वर्ष 2011 - 2012 में सीमेंट इंडस्ट्री का उत्पादन लक्ष्य बढ़ाकर 29.8 करोड़ टन होने की उम्मीद है।

सीमेंट के बढ़ते उपयोग और मांग को देखकर अगले तीन सालों में सीमेंट इंडस्ट्री के दस फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। विश्व के मान से अगर देखा जाए तो प्रति व्यक्ति सीमेंट का औसत उत्पादन विश्व में 250 किलोग्राम होता है, जबकि दुनिया के चौधरी बनने की होड़ में शामिल चीन द्वारा 450 किलोग्राम सीमेंट का उत्पादन प्रति व्यक्ति किया जाता है। भारत में यह औसत 115 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। जबकि खर्च की दर 136 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है।

एक समय था जब लोग घरों को मिट्टी से बनाया करते थे। उसके पहले दीवारों को खड़ा करने और जोड़ने के लिए मिट्टी के साथ ही साथ अनेक प्राकृतिक चीजों का उपयोग भी किया जाता था। आज के सीमेंट के जोड़ से वे प्राकृतिक चीजों का जोड़ कहीं ज्यादा टिकाउ और मजबूत होता था। कालांतर में मिट्टी का प्रयोग दीवारें खड़ी करने के लिए किया जाने लगा। मिट्टी के बने मकान पूरी तरह पर्यावरण और मौसम के अनुकूल ही हुआ करते थे।
जब से सीमेंट इंडस्ट्री ने अपने पैर पसारे हैं तब से समूचा विश्व इसकी जद में आ गया है। सीमेंट के अत्याधिक प्रयोग के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी साफ तौर पर दृष्टिगोचर होने लगा है। सीमंेट के बने मकानों में स्वच्छ हवा और रोशनी की कमी के कारण तरह तरह की समस्याओं ने पैर पसारने आरंभ कर दिए हैं।

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