सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

पृथ्वीराज की छुट्टी किसी भी समय


पृथ्वीराज की छुट्टी किसी भी समय

निर्णय लेने में देरी बन रही विरोध का कारण

एनसीपी को लाभ पहुंचाने का आरोप

पंवार भी चाह रहे चव्हाण की बिदाई

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र के निजाम पृथ्वीराज चव्हाण का सूबे में भारी विरोध हो रहा है। कांग्रेस आलाकमान की नजरें भी उन पर तिरछी हो चुकी हैं। कहा जा रहा है कि अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करने के पहले ही चव्हाण को मुख्यमंत्री निवास से रूखसत किया जा सकता है। कांग्र्रेस आलाकमना ने अपने विश्वस्त रहे वर्तमान में एक राज्यपाल को चव्हाण के विकल्प को खोजने जवाबदारी सौंप दी है।

सूबे के कांग्रेसी नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बारंबार शिकायत की है कि पृथ्वीराज चव्हाण शासन चलाने में पूरी तरह असमर्थ हैं। वे निर्णय लेने में इतना विलंब कर देते हैं कि लोगों का आक्रोश चरम पर पहुंच जाता है। इसका सीधा सीधा लाभा एनसीपी के अजीत पवार गुट द्वारा उठा लिया जा रहा है। इसके अलावा राज्य की सरकार शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के इशारों पर चल रही है जिससे कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

सूबे में राकांपा तेजी से उभर रही है वह भी कांग्रेस की कीमत पर। नवंबर माह में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव चव्हाण का भविष्य तय कर देंगे। साफ सुथरी छवि के चक्कर में एक अयोग्य व्यक्ति को कुर्सी सौंपने से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी कुपित हैं। सोनिया की नाराजगी का आलम यह है कि पिछले दिनों दिल्ली आए चव्हाण बार बार सोनिया से मिलने का समय चाहते रहे पर सोनिया ने उन्हें समय नहीं दिया।

उधर दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे की बाहें एक बार फिर सीएम बनने फड़कने लगी हैं। दोनों ही अपने अपने तौर तरीकों से मदाम को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं। देशमुख द्वारा अण्णा हजारे का अनशन समाप्त करवाने में अपनी भूमिका को बार बार मदाम के सामने रेखांकित किया जा रहा है तो शिंदे बतौर मुख्यमंत्री और उसके बाद केंद्रीय मंत्री अपने कार्यकाल को साफ सुधरा बताकर मदाम को रिझाने की जुगत लगा रहे हैं।

सियासी हल्कों में एक बात साफ हो चुकी है कि पृथ्वीराज चव्हाण का भविष्य अगले नवंबर माह में होने वाले नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, जिला और जनपद पंचायत के चुनावों के परिणाम पर ही निर्भर करेगा। अगर कांग्रेस को लाभ हुआ तो चव्हाण बच जाएंगे और अगर राकांपा हावी रही तो चव्हाण की बिदाई तय ही है।

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