सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

वन माफिया और राजस्व की सांठ गांठ से करोड़ों के वारे न्यारे


वन माफिया और राजस्व की सांठ गांठ से करोड़ों के वारे न्यारे

अवैध कटाई को हवा धुंध में गिरे बताने का चल रहा है खेल

मण्डला में कलेक्टर करते है एसे वृक्षों को राजसात

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी। देश के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले में वन माफिया और राजस्व विभाग की सांठ गांठ से करोड़ों रूपयों के वारे न्यारे हो रहे हैं। राजस्व विभाग की मिली भगत से जिले में वन माफिया द्वारा अवैध कटाई चरम पर है। जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में इस वक्त करोड़ों रूपयों की वन संपदा अवैध तौर पर कटी हुई पड़ी है, जिसे वन माफिया राजस्व विभाग के साथ मिलकर एक नंबर में करने की जुगत लगा रहा है।

वन विभाग के सूत्रों का दावा है कि राजस्व विभाग के तहसीलदार की शह पर वन माफिया के हौसले बुलंदी पर हैं। सूत्रों का कहना है कि वन माफिया द्वारा निजी भूमि पर लगी बेशकीमती वन संपदा को अवैध रूप से काट दिया जाता है। इसके उपरांत राजस्व विभाग के कारिंदों द्वारा इसे हवा धुंध आंधी में गिरा हुआ प्रमाणित कर दिया जाता है। इसके बाद आरंभ होता है सारा खेल। वन विभाग द्वारा राजस्व के इस प्रमाणपत्र के मिलते ही इन गिरे हुए वृक्षों पर हेमर लगाकर इन्हें एक नंबर की लकड़ी में तब्दील कर दिया जाता है।

इस पूरी कार्यवाही में तहसीलदार द्वारा भूमि स्वामी पर नाम मात्र का फाईन लगा दिया जाता है। इस फाईन के बाद यह अवैध तरीके से काटी गई पूरी  की पूरी लकड़ी पूरी तरह से वेध हो जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसके बाद यह कटी हुई लकड़ी सीधे वन विभाग के डिपो पहुंच जाती है, इसकी ग्रेडिंग की जाकर इसके अलग अलग लाट बनवा दिए जाते हैं।

वन विभाग के एक अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि चूंकि तहसीलदार को ही राज्य सरकार द्वारा अधिकार दिए गए हैं अतः यह मामला जिला कलेक्टर की जानकारी तक पहुंच ही नहीं पाता है और करोड़ों अरबों रूपए के वारे न्यारे हो जाते हैं। सूत्रों ने बताया कि बिना अनुमति के काटे गए झाड़ों को राजस्व की धारा 240 और 241 के तहत राजसात करने का अधिकार दिया गया है। सीमावर्ती मण्डला जिले में जिला कलेक्टर ने इस तरह की लकड़ी को राजसात करने के सख्त आदेश जारी किए हुए हैं।

व्याप्त चर्चाओं के अनुसार एक चक में अवैध तरीके से काटे गए इस तरह के झाड़ों के लिए पटवारी एवं राजस्व निरीक्षक प्रति प्रकरण दो दो हजार रूपए, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व और तहसीलदार एक एक हजार रूपए, वन विभाग के रेंजर पांच सौ रूपए घन मीटर, अनुविभागीय अधिकारी वन एक हजार रूपए घन मीटर, डिपो में ग्रेडिंग के लिए वहां तैनात अमला ग्रेड के हिसात से अपना हिस्सा निर्धारित करता है। अपेक्षा व्यक्त की जा रही है कि जिला कलेक्टर अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाकर जिले में अवैध ट्री फालिंग के लिए राजस्व की धारा 240 और 241 के तहत राजसात की कार्यवाही को सख्ती से लागू करवाएं।

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