शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

पुड़िया बन चुकी जीवन हृदय प्रदेश में


पुड़िया बन चुकी जीवन हृदय प्रदेश में

(लिमटी खरे)

अस्सी के दशक में लोगों के सर चढ़कर बोली थी ब्राउन शुगर, स्मेक, हेरोईन। इसके पहले हिप्पीयों का प्यारा शगल होता था नशा। नशेडी हिप्पी अर्थात महिलाओं जैसे बाल बढ़ाकर रहने वाले देशी विदेशी अपनी टोली के अंदर गांजा, अफीम आदि का नशा कर झूमते रहते थे। कालांतर में इस नशे का स्थान ले लिया घातक स्मेक और हेरोईन ने। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के दिल यानी कनॉट सर्कस के आसपास मैली चादर ओढ़े भिखारी मजे से इस नशे का सुट्टा लगाते दिख जाते हैं। मध्य प्रदेश ब्राउन शुगर, स्मेक और हेरोईन का एक बहुत बड़ा व्यसायिक केंद्र बनकर उभर चुका है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सूबे में सब कुछ प्रतिबंधित होने के बाद भी इनकी बिक्री सरेआम होना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

महज चंद सेकन्ड्स में दुनिया जहान के सारे गम भुलाकर जन्नत की सैर करवाने वाली स्मेक की पुडिया का सबसे बडा बाजार बनकर उभर रहा है देश का हृदय प्रदेश। मध्य प्रदेश के महाकौशल और राजधानी भोपाल में भी स्मेक की पुडिया का चलन बहुत ही तेजी से हो गया है। युवाओं को इसकी लत लगाने वाले गिरोह पहले तो सस्ते दामों पर इसे उपलब्ध कराते हैं फिर जब युवा इसके आदी हो जाते हैं तब इनका दमन चक्र आरंभ होता है। यही कारण है कि युवाओं में चोरी की आदत तेजी से बढ़ रही है। राहजनी, डकैती, लूटपाट जैसे अपराधों की जड़ में पुड़िया का नशा काफी हद तक जिम्मेवार माना जा सकता है।

बताते हैं कि भोपाल की देशी विदेश शराब दुकानों के आसपास खुले अघोषित और अवैध मयखाने (जहां बैठकर लोग बिना झिझक मदिरापान करते हैं) के इर्द गिर्द परिवारों को तबाह करने वाली यह पुडिया बहुत ही आसानी से सुलभ हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार एक बार किसी को इसकी लत लग जाए तो यह ‘‘छूटती नहीं काफिर मुंह की लगी हुई‘‘ की तर्ज पर आसानी से पीछा नहीं छोडती है। खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो महाकौशल क्षेत्र में ही तीन सैकडा से अधिक लोग इस कारोबार में हैं, जो लोगों के घरों को उजाड़ने में कोई कसर नहीं रख छोड रहे हैं। इस गोरखधन्धे में न केवल बेरोजगार वरन् पुलिस के कारिंदों से लेकर श्वेत धवल कुर्ता पायजामा धारण करने वाले नेता भी शामिल हैं।

एक नशामुक्ति केंद्र के संचालक द्वारा किए गए सर्वेक्षण मंे यह तथ्य उभरकर सामने आया है। इतना ही नहीं टी आई (नगर निरीक्षक) प्रोजेक्ट के तहत संभाग के छः जिलों में आठ सौ से भी अधिक नशेडी मिलना चिंताजनक पहलू माना जा सकता है। कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि नगर और गांवों में समान रूप से फैला हुआ है यह नशे का करोबार। जबलपुर पुलिस रेंज के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक एम.आर.कृष्णा के मुताबिक तो यह समस्या महाकौशल के तीस से ज्यादा गांवों में ज्यादा फैली हुई है। आश्चर्य जनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि नशे की यह समस्या आज कल की नहीं वरन लगभग ढाई सौ साल पुरानी है।

बताते हैं कि ब्रितानी हुकूमत के समय में अफीम का नशा महाकौशल में सर चढकर बोल रहा था। उस दरम्यान अफीम का सेवन करने वालों को पकडने के लिए महाकौशल के नरसिंहपुर में एक विशेष थाना बनाया गया था, जिसके दस्तावेज भी मिलने का दावा किया जा रहा है। नरसिंहपुर को कर्मभूमि बनाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा है कि वे आने वाले पांच सालों में क्षेत्र को नशामुक्त बनाने हेतु कृत संकल्पित हैं। बकौल प्रहलाद सिंह पटेल क्षेत्र में तीन सैकडा से भी अधिक लोग स्मेक के काले धंधे में लगे हुए हैं।

बर्बादी का विस्तार करने वाली स्मेक की पुडिया ने नरसिंहपुर जिले को पूरी तरह अपने शिकंजे में कसा हुआ है। नरसिंहपुर सदा से ही मशहूर रहा है। यहां का एक आदर्श ग्राम बुधवारा है, जहां आज तक कोई पुलिस प्रकरण पंजीबद्ध नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं इस गांव का निरीक्षण करके आए हैं। नरसिंहपुर शिक्षा के क्षेत्र में पहले विशेष महत्व रखता था, आज यह नशेलों का जिला बनकर रह गया है। यहां नशे का आलम यह है कि पिछली विधानसभा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में एक युवक ने नशे की पुडिया रख दी थी। इस घटना से मुख्यमंत्री आवक रह गए थे। इसके बाद यहां नशे के विरोध में अभियान छेडा गया, किन्तु नशे के सौदागरों के आगे इस अभियान ने घुटने टेक दिए।

महाकौशल के सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, मण्डला और जबलपुर जिलों में भी पुड़िया के व्यवसाई अपना काम मुस्तैदी से कर रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अनेक जगहों पर तो इसके बेचने वालों ने युवाओं से बाकायदा एटीएम कार्ड भी धरवा लिए हैं जिसके उपरांत दैनिक आधार पर वे इन्हें पुड़िया प्रदान करते हैं और एडवांस में मासिक पैसा निकाल लेते हैं। यह सब पुलिस की जानकारी में होने के बाद भी इस घातक व्यवसाय का फलना फूलना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि राजस्थान से नशे की यह बर्बादी की पुडिया नरसिंहपुर पहुंचती है। यूं तो राजस्थान से नरसिंहपुर का सीधा कोई तारतम्य नहीं जुडा हुआ है। अगर किसी को स्मेक लाना हो तो उसे रतलाम, देवास, इंदौर, सीहोर, उज्जैन, भोपाल, होशंगाबाद के रास्ते इसे लाना होगा। पुलिस के नशे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतने सारे जिलों की सीमाओं को पार कर परिवारों को बर्बाद करने वाले इस नशे को नरसिंहपुर की सीमा में लाया जाता है, वह भी बिना किसी रोक टोक के।

चिकित्सकों के अनुसार इस नशे की लत इतनी बुरी है कि अगर इसके आदी व्यक्ति को यह न मिले तो वह मरने मारने पर आमदा हो जाता है। अस्सी के दशक के उपरांत चेनल्स पर भी स्मेक के बारे में जनजागृति फैलाने का उपक्रम किया गया था, किन्तु मध्य प्रदेश का महाकौशल और विशेषकर नरसिंहपुर जिला इससे अछूता ही रहा है।

राज्य सरकार द्वारा अगर समय रहते महाकौशल अंचल को परिवार को बर्बादी के कगार तक पहुंचाने वाली इस स्मेक के नशे की पुडिया पर अंकुश नहीं लगाया तो आने वाले समय में समूचा महाकौशल और फिर मध्य प्रदेश इसकी जद में होगा और तब भयावह स्थिति से निपटना शासन प्रशासन के लिए टेडी खीर ही साबित होगा।

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