शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

कैसे कह दें ईमानदार हैं मनमोहन

बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 49

कैसे कह दें ईमानदार हैं मनमोहन

भ्रष्टों के ईमानदार सरदार बन चुके हैं प्रधानमंत्री



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सच है कि किसी व्यक्ति विशेष या राजनैतिक व्यक्तित्व के बारे में गलत धारणा कई बार बहुत बड़े धोखे और देश के लिए घातक तथा विनाशकारी ही साबित हो जाती है। आजादी के साढ़े छः दशक में देश की सबसे महानतम भ्रष्ट सरकार होने के बाद भी लोगों को भ्रम है कि वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह बेहद ईमानदार व्यक्तित्व के स्वामी हैं। संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल में तो सारे मिथक टूट चुके हैं पर मनमोहन सिंह का व्यक्तिगत मीडिया मैनेजमेंट इतना तगड़ा है कि आज भी मीडिया उन्हें ईमानदार ही परोस रहा है।

कमोबेश यही धारणा पूर्व प्रधानमंत्री पी.व्ही.नरसिंहराव के मामले में थी। उन्हें भी बेहद ईमानदार और धर्म निरपेक्ष प्रधानमंत्री के बतौर महिमा मण्डित किया गया था। नरसिंहराव के मामले में दोनों ही धारणाएं गलत साबित हुईं। नरसिंहराव के बारे में बातें बाद में खुलीं और उन्हें सर्वाधिक भ्रष्ट और बेईमान करार दिया गया। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में प्रचारित करवा दिया गया था कि उन्होंने बोफोर्स तोप सौदे में साठ करोड़ रूपए खा लिए हैं। बाद में पता चला कि राजीव गांधी तो बेदाग थे। उन्हें बदनाम करने की साजिश राजीव के ही चचेरे भाई अरूण नेहरू और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रची थी।

आज चहुं ओर सरदार जी को ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बताया जा रहा है। ईमानदारी की परिभाषा आखिर है क्या? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी ज्यादा कट्टर मानी जाने वाली चैम्बर्स ट्वंटीअथ सैंचुरी डिक्शनरीके अनुसार ईमानदार व्यक्तित्व का अर्थ है -‘‘सम्मानित, सही बात करने का माद्दा रखने वाला, सीधा, सरल, दृढ़ सिद्धांतों का धनी, हेराफेरी से दूर रहने वाला, धोखाधड़ी से कोसों दूर रहने वाला, दो टूक और सच बोलने का साहस रखने वाला, भ्रष्टों को इर्द गिर्द न फटकने देने वाला।‘‘ यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इस ईमानदार व्यक्तित्व के चोगे में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह या उनकी परछाईं एक फीसदी भी फिट बैठ रही है।

(क्रमशः जारी)

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