शनिवार, 16 जून 2012

पुराने समाजवादी हैं प्रणव दा!


पुराने समाजवादी हैं प्रणव दा!

राजीव के पुरजोर विरोधी रहे हैं प्रणव मुखर्जी!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस के उमर दराज नेता प्रणव मुखर्जी के नाम पर राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने पहली बार हामी भरी है। महामहिम राष्ट्रपति पद के लिए संप्रग के साझा उम्मीदवार के बतौर प्रणव मुखर्जी का जीतना लगभग तय माना जा रहा है, किन्तु कांग्रेस में अंदर ही अंदर प्रणव मुखर्जी की मुखालफत आरंभ हो गई है। दरअसल, प्रणव मुखर्जी को राजीव गांधी का विरोधी माना जाता है। संभवतः यही कारण है कि प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री का पद नसीब नहीं हो पाया है। राजीव का विरोध कर प्रणव ने समाजवादी कांग्रेस का गठन किया था, तब से वे समाजवादी ही कहलाने लगे थे। कहा जा रहा है कि राहुल की ताजपोशी में शूल बोने के चलते भी प्रणव को सक्रिय राजनीति से दूर किया जा रहा है।
11 दिसंबर 1935 को वीरभूमि जिले के मिराती गांव में जन्मे प्रणव मुखर्जी विद्यासागर कालेज से स्नातक हैं। राजनीतिक कलाबाजियां खाने के पहले प्रणव ने पत्रकारिता, अध्यापन और वकालत के पेशे को भी अपनाया है। प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन पर नजर डालते ही कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के पति राजीव गांधी के मुखर विरोधी के बतौर प्रणव का नाम सामने आ जाता है।
प्रणव पहली मर्तबा 1969 में राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके उपरांत 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी वे पिछले दरवाजे यानी राज्य सभा से ही संसदीय सौंध में पहुंचे। प्रणव ने अपने जीवन में महज दो यानी 2004 और 2009 में जंगीपुर से लोकसभा चुनाव जीता है। वे केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों को संभाल चुके हैं।
प्रणव मुखर्जी का अशुभ अंक माने जाने वाले 13 से अनोखा नाता है। वे 13 वें राष्ट्रपति बनने के लिए मैदान में उतरे हैं। दिल्ली में तालकटोरा रोड़ पर उनके बंग्ले का नंबर 13 ही है, कहा जाता है कि अंधविश्वासी प्रणव छोटा होने के बाद भी इस बंग्ले को छोड़ना नहीं चाहते हैं। उनकी शादी की सालगिरह भी 13 तारीख हो होने के साथ ही साथ 13 जून को ही ममता बनर्जी ने उनका नाम सियासी फिजां में उछाला था।
प्रणव मुखर्जी के साथ विवादों का भी गजब का नाता रहा है। कांग्रेस के सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर की अघोषित उपाधि पा चुके प्रणव मुखर्जी कम विवादित नहीं हैं। उनके उपर नेहरू गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी यानी राजीव गांधी का विरोध करने का तमगा लगा हुआ है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि जब भी प्रणव मुखर्जी का नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे लाया जाता, उनके विरोधियों द्वारा राजीव विरोधी होने की बात कहकर उनकी उम्मीदवारी की हवा निकाल दी जाती।
गौरतलब है कि कांग्रेस के धुरंधर और दिग्गज नेता प्रणव मुखर्जी ने 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद पार्टी को छोड़ भी दिया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। इससे नाराज प्रणब मुखर्जी ने 1986 में कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम के अपने दल का गठन किया था। लेकिन पीवी नरसिंहा राव ने उन्हें  1989 में योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेसी मुख्यधारा में शामिल कर लिया था। इस तरह प्रणव पर समाजवादी होने का ठप्पा लगा गया है।
कांग्रेस की राजनीति को नजदीक से जानने से वाले यह कहते हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। लेकिन गांधी परिवार को प्रणब की यह इच्छा रास नहीं आई और दोनों के बीच दूरी बन गई। इसी मनमुटाव का नतीजा 1986 में तब देखने को मिला जब प्रणब ने अपनी पार्टी बनाई। कहा जाता है कि सोनिया प्रणब पर पूरा भरोसा कभी नहीं करती हैं। राजनीति के गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि इसी भरोसे की कमी की वजह से सोनिया गांधी ने 2004 में प्रणब मुखर्जी की जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था। प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत ने भी मीडिया से बात करते हुए कहा है कि उनके पिता 1984 से ही प्रधानमंत्री बनना चाह रहे थे। लेकिन अभिजीत के लिए उनके पिता अब भी पीएम यानी प्रणब मुखर्जी हैं।
प्रणव पर आपतकाल के दौरान ज्यादतियां करने का आरोप लगा था। प्रणव मुखर्जी दरअसल, इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी कैबिनेट के सदस्य रहे थे। प्रणव पर इमरजेंसी के दौरान पुलिस केस भी दर्ज किए गए। बाद में इंदिरा गांधी ने सत्ता में लौटते ही केस वापस लिए। प्रणव पर लगे आरोपों में तस्लीमा नसरीन को दिल्ली में नजरबंद करवाने में शामिल होने का भी आरोप है। मार्च 2008 में तस्लीमा को देश से वापस भेजा। इसके लिए प्रणब को आलोचना का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस के सूत्रों का मानना है कि प्रणव मुखर्जी की राह में शूल बोने का काम गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम ने बाखूबी किया है। ज्ञातव्य है कि 2011 में 2जी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने लिखा था कि पी. चिदंबरम चाहते तो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला रोका जा सकता था। 2011 में उनके कार्यालय सहित वित्त मंत्रालय के महत्वपूर्ण कमरों में जासूसी का खुलासा हुआ था। हालांकि जांच में कुछ नहीं मिला। लेकिन बीजेपी के कुछ नेताओं का दावा है कि चिदंबरम ने प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी करवाई थी। हालांकि, इस आरोप की आज तक किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हुई है।
उधर, राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के हक में बढ़ते सियासी समर्थन के बावजूद एनसीपी नेता पीए संगमा मैदान छोड़ने को राजी नहीं है। अपनी पार्टी और गठबंधन की इच्छा के विरुद्ध पूर्व लोकसभा अध्यक्ष संगमा चुनाव लड़ने पर अड़े हैं। संप्रग की ओर से प्रणब की उम्मीदवारी के ऐलान के बाद मीडिया से मुखातिब संगमा ने कहा कि वो आदिवासी समाज के प्रतिनिधि के तौर पर राष्ट्रपति चुनाव में उतरे हैं। लिहाजा मैदान से हटने का सवाल नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के चुनाव मैदान में उतरने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर संगमा का कहना था, कि इससे उनकी दावेदारी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वे हर हाल में चुनाव लड़ूंगे। माना जा रहा है कि अगर संगमा मैदान से नहीं हटते हैं तो इसका खामियाजा उनकी मंत्री पुत्री अगाथा पर पड़ने की संभावना है।
गौरतलब है कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता अपनी पार्टी अन्नाद्रमुक और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बीजेडी की ओर से संगमा की उम्मीदवारी को समर्थन जाहिर कर चुके हैं। हालांकि संगमा की पार्टी एनसीपी ही उनकी उम्मीदवारी के हक में नहीं है। पार्टी महासचिव डीपी. त्रिपाठी के मुताबिक एनसीपी ने संगमा को यह स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी यूपीए के साझा उम्मीदवार का समर्थन कर रही है।
प्रणव मुखर्जी पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की इतनी मेहरबानी की वजहें कांग्रेस के अंदरखाने में खोजी जा रही हैं। सोनिया गांधी की किचिन कैबनेट के एक सदस्य ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि चूंकि प्रणव खुद प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे इसलिए वे अब राहुल गांधी के मार्ग में शूल बोने का काम कर रहे हैं। यही कारण है कि अहमद पटेल के कहने पर सोनिया गांधी द्वारा प्रणव मुखर्जी को देश के सर्वोच्च पद पर बिठाकर सक्रिय राजनीति से प्रथक किया गया है।

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