बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

रिमिक्स ओरिजनल गीतों का बिगड़ा हुआ रूप है : उषा


रिमिक्स ओरिजनल गीतों का बिगड़ा हुआ रूप है : उषा

(रहीम)

मुंबई (साई)। भारतीय हिन्दी फिल्म संगीत में एक से बढ़कर आवाज के जादूकर हुये जिन्होंने अपने फन से लोगों के दिलों पर अपनी छाप बनाने में कोई कमी नहीं रखी । इसी श्रेणी में एक नाम महिला पार्श्व गायिका उषा थिमोथी का भी है । जिन्होंने स्टेज प्रोग्राम से अपने गायन का सफर प्रारंभ किया और आज वह एक स्थापित फनकार के रूप में हिन्दी फिल्म जगत में जानी पहचानी जाती है। पिछले दिनों उनसे जब उनके गायन यात्रा पर चर्चा की गई तो उषा जी ने बताया कि -‘‘संगीत मेरे रग रग में बसा हुआ है, मैंने शायद बोलने के पहले गाना ही शुरू किया था । यह मेरे पास ईश्वर का सबसे बेहतरीन वरदान है । तीन साल की उम्र से ही मैंने गाना शुरू कर दिया था। स्कूल में जब बच्चों से टीचर पूछती थी तो तुम बड़े होकर क्या बनोगे तो मेरे जवाब होता था मुझे लता मंगेशकर बनना है । तब मुझे पता नहीं था कि लता मंगेशकर किसी खास व्यक्ति का नाम है । मैंने गायिका बनूंगी यह कहने की जगह में लता जी का नाम लिया करती थी और आज भी गायन के क्षेत्र में वह मेरे आदर्श है । मैं सात साल की उम्र से ही स्टेज शो करना शुरू कर दिया था और नागपुर में मैं बहुत लोकप्रिय हो गई थी । इसी मध्य मुझे कल्याणजी आनंदजी नाइट में गाने का अवसर मिला जहां रफी साहब, मन्नाडे, मुकेश जी, हेमंत दा के साथ डूएट गाया और फिर मुंबई आ गई । 13 साल की उम्र में श्रीप्रकाश फिक्चर की फिल्म हिमालय की गोद में (1965) में रफी साहब के साथ भंागडा डूएट गाने का मौका मिला, इसका संगीत कल्याणजी आनंद जी ने दिया था और गीत के बोल आंनद बक्शी ने लिखा था जो इस प्रकार था - तू रात खड़ी थी छत पर मैं समझा की चांद निकला.... यह गीत आज भी संगीत प्रेमी श्रोताओं के मध्य लोकप्रिय है ।
इसके बाद मेरा सौभाग्य था कि मुझे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, बसंत देसाई, मदन मोहन, उषा खन्ना, सोनिक ओमी, ओ.पी. नैयर, एस. कोहली, बाबू सिंग, बब्लू शिवराम, जैसे स्थापित संगीतकारों के निर्देशन में गाने का अवसर मिला । मैंने 500 से अधिक फिल्मों में प्ले बेक सिंगर के रूप में गीत गाये जैसे - हिमालय की गोद में, तकदीर, मेरा मुन्ना, विश्वास, परिवार, जोरो, जोहर मेहमूद इन गोआ, लकड़ी पसंद है, किलर, दो ठग, कहानी किस्मत की, विद्यार्थी, मेरा सलाम, अपना खून अपना दुश्मन, मुजरिम कौन, खूनी कौन, उलझन, हमराही, रामराज्य, हीररांझा, बेशर्म, फरेब, फरार, सोलह सिंगार करके दुल्हनिया चली (भोजपुरी) इत्यादि फिल्मों के साथ भोजपुरी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, हरियाणवी, बांगला, मलयालम, उडिया, पंजाबी, और असामी भाषा में मैंने गीत गाये । साथ ही दुनिया के भिन्न भिन्न देशों में शंकर जयकिसन, आर.डी. बर्मन, श्रीरामचंद, ओ.पी. नैयर, किशोर कुमार, मुकेश जी, एवं शम्मी कपूर, ऋषि कपूर, सुनीलदत्त, अशोक कुमार, जानी वाकर जैसे कलाकारोां के साथ अनेक स्टेज शो प्रोग्राम किये । मुझे हिन्दूस्थानी शास्त्रीय संगीत में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानीत किया गया । शास्त्रीय संगीत में मैने पंडित लक्ष्मण प्रसाद जयपुर वाले, और मेरे भाई मधुसूदन थिमोथी से सीखा, ठुकुरी गायन श्रीमती अरूण से एवं सुगम संगीत पं. शिवराम जी से सिखने के बाद संगीत में मेरे गुरू मोहम्मद रफी साहब रहे । वह पल मैं कभी नहीं भूल सकती है जब अपनी पहली फिल्म के गाने में मेरे आवाज से प्रभावित होकर रफी साहब से मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया था ।
स्थापित गायिका उषा जी ने वर्तमान संगीत पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि वर्तमान संगीत में पहले से ज्यादा गिरावट तो जरूर आई है फिर भी बहुत से से गीत आज भी सदाबहार है और लोग पुराने गानों को सुनना ही ज्यादा पसंद करते है । वर्तमान समय कलाकारों को संगीत का पूरा ज्ञान भी नहीं होता और वह स्टेज पर आ जाते है । आजकल सिंगर को जो टी.व्ही. के माध्यम से जो स्थान मिल रहा है वह उनके लिये हानिकारक है एक बार जल्दी स्टार बन गया तो नया कलाकार परिश्रम से ज्यादा अंहंकार के शिकार हो जातो है और फिर मेहनत नहीं कर पाते । इसलिये नये गायक गायिकाओं को पहले खूब मेहनत करनी चाहिये और अपने स्वभाव को नम्र बनाये रखना चाहिये । हमारा भारतीय संगीत शांति प्रधान है । इससे दिल को शांति मिलती है इसके लिये कलाकार को बहुत परिश्रम करना पडता है । जबकि पश्चित संगीत में जोश है यह पांव को थिकराता है और भारतीय संगीत की तुलना में आसान है । मैं केवल गायिका की बात कर रही हॅू वाद्य संगीत उनका भी मुश्किल हे। रिमिक्स ओरिजनल गीतों का बिगड़ा हुआ रूप है । जैसे किसी का कार्टून बनाने के बाद भी उस व्यक्ति को पहचान लेते है वैसे ही गीत के अच्छे पार्टस को सीधा कर मोड दिया जाता है जिससे गीत की सारी सुन्दरता नष्ट हो जाती है । मुझे आज भी स्टेज पर गाना बहुत पसंद है । और मैं अब भी लाईव शो करती हॅू मेरा अपना संगीत गु्रप है जिसमें मैं पुूराने गीत और गजल प्रस्तुत करती हॅू । फिल्मी गीतों में फूहडता से मुझे नफरत है । समय बदलता है लोगों की रूचियां बदलती है परन्तु सदाबहार नगमें हमेशा सदाबहार ही रहते है ।

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