रविवार, 4 नवंबर 2012

इंवेस्र्ट मीट में सवा करोड़ के करार हुए

इंवेस्र्ट मीट में सवा करोड़ के करार हुए
(अभय नायक)
रायुपर (साई)। छत्तीसगढ़ की पहली ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के दौरान राज्य में करीब 1.24 लाख करोड़ रूपए से अधिक के निवेश का करार हुआ है। दो दिनों में राज्य में विभिन्न श्रेणी के उद्योग लगाने के लिए 272 एमओयू हुए। उद्योग स्थापना के लिए राज्य सरकार के समझौता करने वालों में निजी कम्पनियों के साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कई कम्पनियां शामिल हैं। इसमें सेल को कवर्घा में आयरन ओर माइंस देने और गेल के गैस पाइप लाइन का फायदा प्रदेश के लोगों को देने के लिए हुए करार भी शामिल हैं।
नया रायपुर में बनाए गए डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी व्यवसायिक परिसर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट का शनिवार को समापन हो गया। दो दिनों तक चले इस कार्यक्रम में करीब 10 देशों के प्रतिनिधि और देश के लगभग डेढ़ दर्जन बड़े उद्योगपति शामिल हुए। राज्य सरकार ने इस बार कोर सेक्टर से अलग हटकर केवल डाउन स्ट्रीम उद्योगों के लिए एमओयू करने का फैसला किया था।
इसमें रियल एस्टेट से लेकर ऑटोमोबाइल्स, पर्यटन, कृषि, आईटी और खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर को बढ़ावा देने की कोशिश की गई। राज्य सरकार के अफसरों ने बताया कि दो दिनों तक चले एमओयू में सबसे ज्यादा रियल एस्टेट के सेक्टर में निवेश के लिए एमओयू हुए हैं। मीट के समापन के मौके पर सेल, कोल इंडिया, गेल, हिन्दुस्तान कॉपर, सीआईआई, अशोक लिलैंड गु्रप, रियो टिन्टो के निदेशकों के साथ कई देशों के राजदूत शामिल हुए।
सरकार ने पुराने सेक्टर (माइनिंग, स्टील, बिजली और सीमेंट जैसे) उद्योगों से अलग केवल डाउन स्ट्रीम इंडस्ट्रीज में निवेश के लिए एमओयू करने का दावा किया था। इसके विपरीत इस बार भी पूंजी निवेश के आंकड़ों में बड़ा हिस्सा इन्हीं पुराने सेक्टरों का है। नए एमओयू में माइनिंग सेक्टर में पांच हजार करोड़ का सेल के साथ और रेल कॉरिडोर में चार हजार करोड़ शामिल हैं। सरकार कह रही है कि पुराने उद्योगों ने वैल्यू एडिशन के लिए एमओयू किया है। इसके विपरीत इस वैल्यू एडिशन का दो दिनों मे हुए कुल एमओयू में 11 फीसदी से अधिक हिस्सा इसी का है।
विदेशी निवेशकों को बुलाने पिछले साल मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह यूएसए गए थे। इससे पहले तत्कालीन उद्योग मंत्री दयालदास बघेल ने सिंगापुर की यात्रा की। दोनों के साथ अफसरों और नौकरशाहों का जम्बो डेलीगेशन भी विदेश गया था। इस पर सरकार ने करोड़ों रूपया खर्च किया, लेकिन इन दोनों देशों से एक भी निवेशक अब तक यहां नहीं आया है। इससे पहले माइनिंग पद्धति की जानकारी लेने नेता और अफसर दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहां से क्या सीख कर आए और उसका कहां और कितना इस्तेमाल हो रहा है, यह उन्हें भी नहीं मालूम है।
प्रदेश में पहले से 14 औद्योगिक क्षेत्र हैं। ढांचागत विकास के नाम पर इनका बहुत बुरा हाल है। राज्य सरकार ने इस तरफ कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। अब जबकि इन्वेस्टर्स मीट में उम्मीद से ज्यादा करार हो चुके है, तब इनकी याद आई है। इनके लिए भी नीति बनाने पर विचार किया जा रहा है। उरला, सिलतरा, नयनपुर, तिफरा, बिरकोना, भनपुरी में ज्यादातर की हालत खस्ता है। इनकों जोड़ने वाले सड़कें गायब हैं। प्रदूषण से हाहाकार मचा हुआ है। इस वजह से आसपास का जनजीवन भी अस्त-व्यस्त है।
इन्वेस्टर्स मीट में हुए 272 के करीब एमओयू में धुर आदिवासी संभाग बस्तर और सरगुजा को कितना मिला, यह स्पष्ट नहीं है। वहीं, उद्योगपतियों का मूड देखकर भी यह नहीं लगाता कि इनमें से कोई बस्तर या सरगुजा जाने की इच्छा रखता है। ज्यादातर उद्योगपति पहले से विकसित रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, दुर्ग, राजनांदगांव, कोरबा, जांजगीर-चाम्पा और कवर्घा जैसे जिलों में पूंजी निवेश की इच्छा रखते हैं। इन्वेस्टर्स मीट में आए कई उद्योगपतियों ने चर्चा के दौरान इन दोनों संभागों में जाने की इच्छा नहीं जाहिर की। ज्यादातर ने कहा कि एक तो वहां माओवादी खतरा है, दूसरे वह क्षेत्र इतना विकसित नहीं है कि आईटी या रियल एस्टेट के सेक्टर में निवेश किया जा सके। राज्य के दूसरे हिस्सों की तुलना में वहां मार्केट नहीं है। इससे पहले भी औद्योगिकरण के नाम पर इन दोनों संभागों को कुछ खास नहीं मिला है। राज्य के 12 सालों के इतिहास में बस्तर और सरगुजा संभाग में सरकार ने पूंजी निवेश की कोई कोशिश नहीं की। माइनिंग सेक्टर के गिनती के उद्योगों के अतिरिक्त बस्तर और सरगुजा में निवेश का कोई प्रस्ताव नहीं है।

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