बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

चालाक कंपनियों की चाल है वेलेंटाइन डे


चालाक कंपनियों की चाल है वेलेंटाइन डे 

(बी.पी.गौतम)

नई दिल्ली (साई)। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-उत्तर कोरिया, चीन आदि देशों की नजर में भारत एक सर्वश्रेष्ठ बाजार है और उनकी नजर में यहां रहने वाले लोग सिर्फ एक ग्राहक। विदेशी कंपनियां भारतीयों को सबसे भोला ग्राहक समझती हैं, क्योंकि थोड़ी सी भूमिका बनाने के बाद ही भारतीय आसानी से चंगुल में फंस जाते हैं। भारत में लगातार बढ़ रही वेलेंटाइन डे की लोकप्रियता के पीछे भी विदेशी कंपनियों का ही एक षड्यंत्र है, जिसमें भारतीय युवा पूरी तरह फंस गये हैं। विदेशी कंपनियों के झांसे में आ चुके भारतीय युवा प्यार का अर्थ भी पूरी तरह भूलते जा रहे हैं। धरती पर भारत ही एक ऐसा देश है, जहां आपस में ही नहीं, बल्कि जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों तक से प्यार करने की शिक्षा दी जाती है। भारतीय संस्कृति में दिन की शुरुआत प्यार से ही होती है। यही एक ऐसा देश है, जहां रहने वाले लोगों के तन, मन और कर्म में हर क्षण प्यार ही रहता है। यह भारत की भूमि, वातावरण, संस्कृति, परंपरा और धर्म की देन है। भारत परंपराओं को मानने वाला देश है। विभिन्न वर्गों, भाषाओं, धर्मों और विशाल भू-भाग में रहने के बाद भी सभी परंपरा व धर्म के नाम पर अपने त्योहार मिलजुल कर और पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाते हैं, जिसका मतलब प्रेम को बढ़ावा देना ही होता है, फिर भारतीय वेलेंटाइन डे क्यों मनायें? यह बात युवाओं को कोई नहीं समझा पा रहा है, इसके अलावा प्यार जोडऩा सिखाता है, प्यार समर्पण के भाव जागृत करता है, प्यार त्याग करने के लिए प्रेरित करता है, प्यार ईमानदारी और सच्चाई की राह पर चलना सिखाता है, पर वेलेंटाइन डे के नाम पर युवा जिस प्यार को लेकर दीवाने नजर आते हैं, वह प्यार नहीं, बल्कि शारीरिक आसक्ति है, हवस है। प्यार का मतलब हवस कभी नहीं हो सकता। सेक्स संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देने वाला वेलेंटाइन डे प्यार का संदेश कभी नहीं दे सकता। न ही प्यार का मतलब कभी समझा सकता है। वेलेंटाइन डे के मौके पर एक-दूसरे को प्यार जताने वाले युवाओं में भी कभी आत्मीयता का संचार नहीं हो सकता। वेलेंटाइन डे हवस की पूर्ति के लिए सिर्फ एक समझौता करा सकता है, जिसका मतलब जीवन भर पछताना ही होता है। वेलेंटाइन डे को लेकर युवाओं में बढ़ती जा रही दीवानगी का भी महत्वपूर्ण कारण यही है कि धर्म की सही परिभाषा बताने वाले लोग अब कम ही रह गये हैं, इसलिए धर्म की सही जानकारी के अभाव में युवा धर्म को सिर्फ पाखंड करार देने लगे हैं, तभी पाश्चात्य संस्कृति युवाओं को रास आ रही है। उन्हें यह कोई समझा ही नहीं पा रहा है कि वह जिसके पीछे भाग रहे हैं, उसका अंत दुरूख और हताशा है। हालांकि वेलेंटाइन डे का देश भर में विरोध भी होता है, पर विरोध करने वालों के तरीके ने युवाओं को वेलेंटाइन डे को लेकर और प्रेरित करने का काम किया है। धर्म और राजनीति को साथ में जोड़ कर कुछ लोग वेलेंटाइन डे का विरोध तो करते हैं, पर सही बात नहीं बता पाते, जिससे पक्ष में दोगुने लोग खड़े हो जाते हैं। युवाओं को वेलेंटाइन डे न मनाने को लेकर जो सच्चाई बतानी चाहिए, वह कोई नहीं बता पा रहा है। महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रहे भारतीय युवाओं को यह बताना ही होगा कि यह सब विदेशी कंपनियों की चाल है, जिसमें वह फंसते जा रहे हैं। युवाओं को समझना ही होगा कि विदेशी कंपनियां उन्हें प्यार में फंसा कर अपनी जेबें भर रही हैं। यह मान लिया जाये कि वेलेंटाइन डे मनाना धर्म की नजर में पाप नहीं है। न ही परंपरा की नजर में अपराध है, लेकिन विदेशी कंपनियों के प्रचार की धूम में वह वेलेंटाइन डे के नाम पर जो खर्च कर रहे हैं, उससे देश व देशवासियों का अहित हो रहा है, उनका खुद का भी अहित हो रहा है, इसलिए युवाओं को यह समझना ही होगा कि भारतीयों की खून, पसीने की गाड़ी कमाई विदेशों में जा रही है। देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाये रखने के लिए विदेशी कपंनियों के वेलेंटाइन डे जैसे षड्यंत्रों से उन्हें दूर रहना ही होगा। विदेशी कंपनियों का जादू इस कदर सवार हो चुका है कि पढ़ा-लिखा हाई-प्रोफाइल तबका या शहरी युवा ही नहीं, बल्कि अनपढ़ व दूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले युवा भी वेलेंटाइन डे के चंगुल में फंस चुके हैं। विदेशी कंपनियों ने वेलेंटाइन डे से पहले बड़े शहरों के साथ छोटे-छोटे कस्बों व गांवों तक अपने ब्रांड पहुंचा दिये हैं। विदेशी कंपनियों द्वारा तैयार किये गये उपहारों पर अगर एक नजर डालें तो हार्ट्स टेडीवियर सौ रुपये से लेकर तीन हजार तक, ओम शांति ओम डेढ़ सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक, पियर स्टेचू डेढ़ सौ रुपये से लेकर आठ सौ रुपये तक और मिरर ताज डेढ़ सौ रुपये से लेकर आठ सौ रुपये तक छोटे-छोटे शहरों व कस्बों में भी जमकर बिक रहे हैं, जबकि बड़े शहरों में पांच हजार से लेकर लाखों तक के उपहार तैयार हैं। कंपनियां बड़े पैमाने पर प्रचार कर रही हैं कि अगर आपने अपने साथी को उपहार नहीं दिया तो वेलेंटाइन डे भी नहीं मनाया। कंपनियां कह रही हैं कि अगर आपके साथी ने उपहार नहीं दिया तो इसका मतलब है कि वह आपको प्यार ही नहीं करता है। क्या यही है वेलेंटाइन का अर्थ? विदेशी यह अच्छी तरह जान गये हैं कि भारतीयों से धर्म, परंपरा, आस्था और प्यार के नाम पर कुछ भी कराया जा सकता है। युवाओं को यह बात अच्छी तरह समझनी ही होगी कि वह प्यार के नाम पर ठगे जा रहे हैं। विदेशी कंपनियों की नजर में वह सिर्फ एक बेबकूफ ग्राहक ही हैं। हां, यह सब करना अगर बेहद जरुरी है तो युवा विदेशी कंपनियों के तरीके से वेलेंटाइन डे मनाने की बजाये भारतीय संस्कृति में जैसे प्यार का इजहार किया जाता है या प्यार किया जाता है, वैसे भी कर सकते हैं। तोहफे देने अगर बेहद जरुरी हैं तो खरीदते समय यह ध्यान रखें कि वह जिस वस्तु को खरीद रहे हैं, वह विदेशी तो नहीं है। तोहफे में सिर्फ और सिर्फ भारतीयकंपनियों की बनाई वस्तु ही दें। इससे कई लाभ होंगे। एक तो यही कि विदेशी कंपनियों की चाल बेकार हो जायेगी। देशवासियों की गाड़ी कमाई विदेशी हाथों में जाने से रुक जायेगी। दूसरे अश्लीलता को भी बढ़ावा नहीं मिलेगा और तीसरा सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि साथी के साथ आत्मीय संबंध बनेंगे, जो जीवन में प्यार का संचार करेंगे और सही दिशा दिखा कर सुखद जीवन की ओर ले जायेंगे।

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