गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

चौधरी की बराबरी करते अतिविशिष्ट!


चौधरी की बराबरी करते अतिविशिष्ट!

(लिमटी खरे)

दुनिया का चौधरी कहलाता है अमरीका। अमरीका के प्रथम नागरिक के हवाई सफर के लिए एयरफोर्स वन नामक सर्वसुविधायुक्त विमान है, जिसमें विलासिता की सारी चीजें मौजूद रहती हैं। आजादी के साढ़े छः दशकों में भी भारत गणराज्य ने अपने प्रथम नागरिक या प्रधानमंत्री के लिए प्रथक से एक उड़न खटोला नहीं खरीदा है। अब व्हीव्हीआईपीज के लिए 300 करोड़ के चौपर की खरीदी चर्चा में है। 3600 करोड़ का सौदा क्या जरूरी था? क्या भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री रेल मंत्री आदि के लिए भारतीय रेल के पास अलग से रैक नहीं है, और सालों से इसका क्या उपयोग हुआ है? अगर इन नेताओं को रेल में चलने में शर्म महसूस होती है तो फिर लाव लश्कर को वेतन क्यों दिया जा रहा है? देश के आम आदमी के पास दो वक्त की रोटी नहीं है और अतिविशिष्ट लोगों के लिए हजारों करोड़ के चौपर खरीदे गए उसमें भी भ्रष्टाचार की बू ही आ रही है।

एसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन वाली केंद्र सरकार का गठन उचित महूर्त में नहीं किया गया है। संभवतः यही कारण है कि एक के बाद एक घपले, घोटाले, अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार आदि के मामलों की आग में केंद्र सरकार के साथ ही साथ आम आदमी भी पूरी तरह झुलसा हुआ है। इन सभी मामलों में आकंठ डूबी केंद्र सरकार भी रूकने का नाम ही नहीं ले रही है। अब व्हीव्हीआईपी के लिए आए चौपर यानी हेलीकाप्टर की खरीद में घोटाले का मामला प्रकाश में आया है।
यह मामला इसलिए भी तेज आग में जल रहा है क्योंकि इसमें खरीद में इटली शामिल है। इटली के अलावा कोई और देश होता तो शायद मामले को इतना तूल ना मिल पाता पर इटली संप्रग की चेयर पर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का पीहर जो है। 3600 करोड़ रूपए के सौदे में 362 करोड़ रूपए की रिश्वत की बात सामने आ रही है। समय के साथ यह मामला भी बोफोर्स के मानिंद गति को पा ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए पर वर्तमान में तो इसकी आंच काफी तेज ही महसूस हो रही है।
ए.के.अंटोनी को ईमानदार माना जाता है इसमें कोई शक नहीं। कहा जा रहा है कि अंटोनी को इस बात की खबर लगभग ग्यारह माह पहले ही लग चुकी थी। पर उसके बाद भी वे पूरी तरह खामोश ही बैठे रहे। उनकी खामोशी को उनकी ईमानदारी का परिचायक तो कतई नहीं माना जा सकता है। इस मामले में एयर मार्शल एसपी त्यागी पर शक की सुई ले जाई जा रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि त्यागी को बलि का बकरा ही बनाया जा रहा है, क्योंकि सभी इस बात से इत्तेफाक ही रखते होंगे कि किसी सेना प्रमुख के पास इतना पावर नहीं होता है कि वह अकेले ही किसी डील को अंजाम दे दे।
हाल ही में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने की बात पर भड़के थे। इससे सियासी जादूगरों ने अंदाजा लगा लिया होगा कि 2014 में राहुल खुद को पीएम के उपयुक्त नहीं पा रहे होंगे। राहुल की अप्रत्यक्ष ना के उपरांत अब सियासत में कांग्रेस के पास साफ छवि वाले नेताओं की फेहरिस्त में चंद ही नाम बचते हैं। पलनिअप्पम चिदम्बरम का नाम तो हवा में उछल ही चुका है। रही बात अंटोनी की तो वे साफ छवि के ईमानदार नेता माने जाते हैं।
हो सकता है इस घोटाले के बारे में पीएम के अन्य दावेदारों के पास सबूत मौजूद रहे हों, वे माकूल वक्त के इंतजार में हों। जब राहुल गांधी ने अपना स्टेंड कुछ हद तक क्लीयर किया तब पीएम के अन्य दावेदारों ने सबसे पहले अंटोनी की मट्टी खराब करने का जतन किया हो। जंग और राजनीति में सब जायज है। अंटोनी के हाथ भ्रष्टाचार के आरोपामें में सनने के बाद उनका नाम इस दौड़ से बाहर होना स्वाभाविक ही है।
वैसे भी, सीबीआई इस मामले को एक दो साल में तो नहीं निपटा सकती है। मतलब साफ है कि अंटोनी को 2014 तक तो क्लीन चिट मिलने की संभावनाएं ना के बराबर ही हैं। जयपुर में चिंतन शिविर में नेहरू गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी को सत्ता की बागडोर सौंपने, भ्रष्टाचार मुक्त भारत को गढ़ने, सुशासन लाने के संकल्प के तत्काल बाद ही इस घोटाले का असर कांग्रेस पर बुरी तरह पड़ना तय माना जा रहा है।
इस मामले में जिस किसी ने भी एके अंटोनी को घेरा है बहुत ही तरीके से घेराबंदी की है। इस मामले के इटली में उजागर होने के उपरांत इसकी सीबीआई जांच की घोषणा से साफ हो गया है कि शक की सुई केंद्र और विशेषकर केंद्रीय रक्षा मंत्री अंटोनी पर आकर टिक गई है। केंद्र सरकार में अगर सही व्यक्तित्व का स्वामी किसी को माना जाता है तो वे हैं प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए.के.अंटोनी।
अगर मनमोहन सिंह की नेकनियति के सामने देश को उनके सहयोगी ही बुरी तरह लूट रहे हों, ईमानदारी का चोगा पहनने वाले केद्रीय रक्षा मंत्री अंटोनी की नाक के नीचे ही करोड़ों के भ्रष्टाचार का ताना बाना बुना जा रहा हो तो इनकी एसी नेकनियति और ईमानदारी भला किस काम की।
लोगों के दिलोदिमाग से अभी यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी कि कामन वेल्थ, टूजी, एस बेण्ड, आदर्श सोसायटी, आदि घोटालों के प्रकाश में आने के उपरांत सरकार ने इनको लटकाने का प्रयास किया था। देश को न्यायिक व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसके हस्ताक्षेप से ही ये मामले दब नहीं पाए। यह अलहदा बात है कि इन मामलों में कार्यवाही आज भी कच्छप गति से ही संचालित हो रही है।
कांग्रेस की नींद इस मसले पर उड़ना स्वाभाविक ही है, क्योंकि इस मामले के उछलने से एक बार फिर बोफोर्स और इटली कनेक्शन का जिन्न बोतल के बाहर आ चुका है। उस वक्त क्वात्रोच्चि को देश से भागने में सफलता मिल गई थी। क्वात्रोच्चि को बचाकर राजीव गांधी को अपनी सरकार को सत्ता के गलियारे से बाहर लाना पड़़ा था। अब दूसरी बार इतिहास अपने आप को दुहरा रहा है।
इस बार रक्षा सौदे की लपटें एक बार फिर प्रधानमंत्री कार्यालय को घेर रही हैं। सरकार भले ही बोफोर्स तोप को बेहतरीन किस्म की तोपों का दर्जा दे दे, इस बार भी चौपर्स एकदम चुस्त दुरूस्त हों, पर यक्ष प्रश्न तो वही खड़ा है कि अगर सब कुछ ठीक ठाक है तो आखिर रिश्वत किस बात की। रेल में सफर के दौरान अगर रिजर्वेशन कंफर्म है तो भला टीसी को सौ का पत्ता देने का क्या ओचित्य!
भ्रष्ट देशों की सूची में भारत की स्थिति काफी अच्छी नहीं कही जा सकती है। सरकार किसी की भी हो, कांग्रेस या भाजपा, या किसी अन्य दल की। आज हमें सोचना होगा, किस परंपरा को प्रश्रय दे रहे हैं। क्या वैश्विक स्तर पर हम यह छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत में कोई भी काम या डील बिना रिश्वत के अंजाम को नहीं पा सकती है?
आधी सदी से ज्यादा इस देश पर राज करने वाली कांग्रेस के लिए यह शर्म की ही बात है कि रक्षा के क्षेत्र में आज भी भारत गणराज्य आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। भारत आज भी रक्षा के मामालों में सत्तर से 75 फीसदी तक विदेशों पर ही निर्भर है। हमारे देश में इतनी मात्रा में रक्षा क्षेत्र की आयुध निर्माणी, व्हीकल फेक्टरी आदि होने के बाद भी रक्षा मामलों में सरकार ने अभी तक प्रोत्साहन को रोक के क्यों रखा है कि हम विदेशों के हथियारों और अन्य चीजों की ओर ही देखने को मजबूर हैं। (साई फीचर्स)

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