रविवार, 25 दिसंबर 2011

यूपी का सियासी घमासान आरंभ


यूपी का सियासी घमासान आरंभ

कमल, हाथी, पंजा, सायकल के बीच है रस्साकशी



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश सूबे में रणभेरी बज चुकी है। सारे सियासी दलों की सेनाएं अब युद्ध मैदान की ओर कूच करने वाली हैं। हर कोई उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहा है। अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने के केंद्र के फैसले से यूपी में सियासी भूचाल मचा हुआ है। माना जा रहा है कि सूबे अठ्ठारह फीसदी मुसलमान इससे कांग्रेस के पाले में आ सकते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के इस दांव का लाभ भाजपा द्वारा सवर्ण वोट बैंक के माध्यम से उठाया जा सकता है।
देखा जाए तो सत्तारूढ़ दलों को अक्सर ही सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है। मायावती ही इकलौती एसी नेता होंगी जिनके राज में एंटी इनकंबेंसी फेक्टर लागू शायद ही हो पाए। अमूमन कमजोर ओर दलितों को वोट से दूर रखा जाता है। मायावती के राज में दलित बिना किसी भय के कम से कम पोलिंग बूथ तक तो पहुंचने लगा है। वहीं दूसरी ओर अपने लिए अपनी मूर्तियों को जीते जी लगवाना सड़कें धुलवाने और हेलीकाप्टर का बहुतायत में उपयोग मायावती के खिलाफ जा सकता है।
कांग्रेस के लिए यह चुनाव जीवन या मरण का प्रश्न बना हुआ है। पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ ही साथ गांधी परिवार के सदस्य श्रीमति मेनका गांधी, वरूण गांधी और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी एवं युवराज राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र आता है उत्तर प्रदेश में। राहुल और सोनिया के संसदीय क्षेत्र के इस सूबे में होने से इस पर कांग्रेस की पकड़ बनना बेहद आवश्यक हो गया है।
वैसे देखा जाए तो इस बार कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ही होंगे। इसका कारण यह है कि राहुल ने उत्तर प्रदेश में दिन रात एक कर दी है। मायावती भी अपने प्रतिद्वंदी के बतौर बार बार उनका ही नाम ले रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा बुनकरों को विशेष पैकेज और अल्पसंख्यकों को आरक्षक का मामला काफी हद तक कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है किन्तु पिछले 21 सालों से सूबे से कांग्रेस सत्ता के बाहर है। पार्टी का जमीनी आधार नगण्य ही है।
समाजवादी पार्टी का गढ़ समझा जाने वाला उत्तर प्रदेश अब भी सपा के हाथों में ही है। मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र और युवा तुर्क अखिलेश यादव ने सूबे में अपनी यात्रा से खासी छवि बना ली है। मुस्लिम वोट मुलायम सिंह यादव के पास बहुतायत में हैं। छवि के मामले में मुलायम सूबाई अन्य नेताओं पर बीस ही बैठती है। वैसे अभी लोगों के दिल दिमाग से यह बात नहीं निकल पाई है कि मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में समाजवादी पार्टी ही थाने चलाया करती थी। जातिगत समीकरणों में मुलायम सिंह फिट नहीं बैठ पा रहे हैं। राज्य में दलितों की तादाद 27 फीसदी है जो मुलायम के लिए खतरा बन सकती है।
भारतीय जनता पार्टी की स्थिति भी कमोबेश कांग्रेस सरीसी ही है। केंद्र और राज्य में भ्रष्टाचार का विरोध भाजपा उतने जोर शोर से नहीं कर पाई जितनी कि उम्मीद की जा रही थी। इसका नुकसान सूबे में भाजपा को उठाना पड़ सकता है। राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र की यात्राओं से माहौल बना। भाजपा का सबसे बड़ा ऋणात्मक फेक्टर यह है कि राज्य में राहुल या मायावती के कद को कोई नेता ही नहीं बचा है।

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