शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

कहीं भस्मासुर न बन जाए थापर का पावर प्लांट


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  54

कहीं भस्मासुर न बन जाए थापर का पावर प्लांट

हाड़ गलाने वाली ठण्ड में आसमान तले रात गुजारने मजबूर हैं बेघर आदिवासी



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। ‘‘मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में लगाए जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट ने क्षेत्रीय आदिवासियों का जीना दूभर कर दिया है।‘‘ उक्ताशय के आरोप आदिवासियों के हितों के संरक्षण का दावा करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी द्वारा लगाए गए हैं।
गोंगापा के सिवनी जिला मीडिया प्रभारी ने कहा है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा अपने हितों को देखते हुए आदिवासियों को भरमाया जा रहा है कि संयंत्र के लगने से क्षेत्र का विकास होगा। वास्तविकता यह है कि भस्मासुर रूपी झाबुआ पावर लिमिटेड के पावर प्लांट से पीड़ित आदिवासी सुरक्षित भविष्य की तलाश में पलायन पर मजबूर हैं। गोंगपा ने आरोप लगाया है कि इस पावर प्लांट की नीतियों के चलते रक्त जमाने वाली सर्दी में आदिवासी अपना घर द्वार छोड़कर भागने पर मजबूर हो रहे हैं।
गोंगपा ने आरोप लगाया है कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि नर्मदा नदी जबलपुर सहित अनेक शहरों में बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है, बावजूद इसके मण्डल द्वारा इस संयंत्र से उपजने वाले प्रदूषण को नजर अंदाज आखिर किस कीमत पर किया जा रहा है। गोंगपा ने कहा है कि एमपी पीसीबी के अधिकारी संयंत्र प्रबंधकों के इशारों पर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील जो कि केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल है को झुलसाने का ताना बाना बुन रहे हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा गणतंत्र दिवस पर भी करोड़ों रूपयों के विज्ञापन मीडिया में जारी कर मीडिया को भी भ्रमित करने का प्रयास किया गया है। संयंत्र प्रबंधन के विज्ञापनों में संयंत्र के बारे में पूरी तरह खामोशी ओढ़ी गई है। सिवनी जिले में भी विज्ञापनों की बंदरबांट के कारण मीडिया में रोष और असंतोष बना हुआ है।

(क्रमशः जारी)

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