मंगलवार, 20 मार्च 2012

देश को मिला इंटर पास रेल मंत्री!


देश को मिला इंटर पास रेल मंत्री!

साक्षरता का ढोल पीटने वाली कांग्रेस ने गठबंधन को माना राष्ट्रधर्म से उपर!



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के लोगों को साक्षर करने के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को पानी की तरह बहाने वाली कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार सत्ता की मलाई चखते रहने के लिए अपने सहयोगी दलों के सामने घुटनों पर खड़ी दिखाई दे रही है। ममता बनर्जी की दादा गिरी के आगे नतमस्तक कांग्रेस ने बारहवीं (इंटर) पास मुकुल राय को रेल विभाग का नया निजाम बना दिया है।
देश के इतिहास में संभवतः यह पहला ही मौका होगा कि रेल बजट पेश करने के बाद उसे पास करवाने का काम नया रेल मंत्री करेगा। यह देश के संसदीय इतिहास की एक बहुत बड़ी विडम्बना के बतौर सामने आया उदहारण ही माना जा सकता है। राष्ट्रधर्म के उपर गठबंधन धर्म का आलम यह है कि मुकुल राय को एक साल पहले मनमोहन सिंह ने रेल मंत्री बनाने से मना कर दिया था। तब राय रेल राज्य मंत्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री के कहने के बावजूद एक रेल दुर्घटनास्थल का दौरा करने से मना कर दिया था।
देश के नए रेल मंत्री मुकुल रॉय का जन्म 17 अप्रैल 1954 को उत्तर 24 परगना जिले के कंचरपाड़ा में हुआ था। 12वीं पास मुकुल ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में बीएससी में दाखिला लिए लेकिन प्रथन वर्ष तक ही पढ़ाई कर पाए। मुकुल रॉय अप्रैल 2006 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। रॉय 28 मई 2009 के बाद से ही जहाजरानी राज्य मंत्री हैं।
उधर दिनेश त्रिवेदी का जन्म 4 जून 1950 को नई दिल्ली में हुआ था। त्रिवेदी ने बी.कॉम के बाद कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से एमबीए किया और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सॉस से भी एमबीए की डिग्री ली। वे पहली बार 1990 में राज्य सभा के लिए चुने गए थे। 2002 में वे दोबारा राज्यसभा में आए। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की और केंद्र सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री बने। जुलई 2011 में वे रेल मंत्री बनाए गए, लेकिन रेल बजट 2012  में किराए में बढ़ोतरी के प्रस्ताव के बाद उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी।
सियासी बियावान में चल रही चर्चाओं के अनुसार एक पढ़े लिखे रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को बेवजह बाहर का रास्ता दिखाकर बारहवीं पास मुकुल राय को रेल मंत्री बनाकर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और त्रणमूल कांग्रेस आखिर देश को क्या संदेश देना चाहती है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह और ममता बनर्जी के तेवरों से एक बात तो साफ होती दिख रही है कि पढ़े लिखे शिक्षित लोगों को राजनीति में आगे आने की बातें महज भरमाने के लिए ही लोगों के सामने की जाती हैं।

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