शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

बिहार में समाप्त हो गई जनसंहार की दहशत?


बिहार में समाप्त हो गई जनसंहार की दहशत?

(प्रतिभा सिंह)

पटना (साई)। बाथे नरसंहार की दहशत से अब बिहावासी बाहर आ गए हैं। ज्ञातव्य है कि बाथे नरसंहार में विनोद पासवान के परिवार के सात सदस्यों की हत्या हो गई थी, अपने परिवार में ये अकेले ज़िंदा बचे थे। बिहार में जनसंहारों का सिलसिला ख़त्म हुए बारह साल हो चुके हैं, लेकिन उसके निशान सम्बंधित इलाक़ों में अभी भी टीसते हुए ज़ख्मों की तरह मौजूद हैं।
उन जनसंहारों से जुड़ी हुई दहशत और नफ़रत अभी मिट नहीं पाई है। लेकिन वैसा जघन्य जाति-युद्ध फिर शुरू होने जैसा कोई स्पष्ट लक्षण भी अभी नहीं दिखता। हालांकि बिहार की राजनीति में जातीयता का ज़हर बेअसर नहीं हुआ है, इसलिए दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि ख़तरा सदा के लिए टल गया है।
हाँ, इतना ज़रूर हुआ है कि चाहे श्लाल सेनाश् हो या रणवीर सेना, दोनों पक्षों से जुड़े समाज ने मार-काट का भारी नुकसान झेलते रहने से मना कर दिया है। यह तभी संभव हुआ, जब वर्ग या जाति केन्द्रित हिंसा-प्रतिहिंसा वाले हथियारबंद दस्तों के बीच शक्ति संतुलन जैसी स्थिति बन गई।
ज्ञातव्य है कि नक्सली हमलों से बचने या नक्सलियों से मुक़ाबला करने के लिए भूमिहार समाज के लोगों ने वर्ष 1994 में भोजपुर ज़िले के बेलाउर गाँव में एक बैठक की थी। उसी बैठक में रणवीर सेना नाम से एक सशस्त्र संगठन बनाने का निर्णय हुआ था। उसका नेतृत्व ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह श्मुखियाश् को सौंपा गया था ।
फिर तो पूरे मध्य बिहार में जातीय हिंसा-प्रतिहिंसा का भयावह दौर शुरू हो गया। राज्य सरकार ने रणवीर सेना को प्रतिबंधित कर दिया, फिर भी अगले पांच वर्षों तक मार-काट जारी रही। वर्ष 1997 के दिसंबर माह की पहली तारीख़ को अरवल ज़िले के लक्ष्मणपुर बाथे गाँव में रणवीर सेना ने दलित और पिछड़ी जातियों के 58 लोगों की हत्या कर दी।
बिहार के इस सबसे बड़े और सबसे क्रूर जनसंहार के मृतकों में औरतों और बच्चों की तादाद ज़्यादा थी। इस हत्या कांड में निचली अदालत ने 16 अभियुक्तों को मृत्यदंड और 10 अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा दी है। इस सज़ा के ख़िलाफ़ की गई अपील हाई कोर्ट में लंबित है और आठ अभियुक्तों को हाई कोर्ट से ज़मानत मिल चुकी है।

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