बुधवार, 7 नवंबर 2012

मंदिर का धन विज्ञापन के लिए नहीं


मंदिर का धन विज्ञापन के लिए नहीं

(विपिन सिंह राजपूत)

नई दिल्ली (साई)। मंदिरों का धन वाकई भगवन का धन होता है। इस धन का उपयोग निजी हित में या विज्ञापनों के लिए नहीं किया जा सकता है। देखा जा रहा है कि देश भर में मंदिरों को दुकान के बतौर खोल दिया गया है और इससे होने वाली आय का कोई हिसाब किताब ही नहीं रखा जा रहा है। लोगों ने मंदिरों को अपने वर्चस्व जतलाने का साधन भी बना लिया है।
उच्चतम न्यायालय ने केरल के प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने की कोठरियों को मजबूत बनाने की अनुमति दे दी है। इनमें डेढ़ लाख करोड़ रुपए की संपत्ति बताई जा रही है। न्यायमूर्ति आर। एम। लोढा और ए। के। पटनायक की खंडपीठ ने कहा कि खजाने की कोठरियों को पुख्ता करने का खर्च राज्य सरकार और मंदिर की प्रबंधन समिति मिलकर वहन करेंगे।
इस पर ८० लाख रुपए की लागत आने का अनुमान है। इस बीच, उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि मंदिर की संपत्ति को उजागर करने और उसका मूल्य तय करने की समूची प्रक्रिया अगले वर्ष जून तक पूरी हो पाएगी। मंदिर के खजाने की ६ कोठरियां हैं, जिनमें से अधिकांश भूमिगत हैं और उनमें बेशकीमती वस्तुएं रखी गई हैं।
उधर, शिमला से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से स्वाति नाडकर्णी ने खबर दी है कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बाबा बालक नाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा विज्ञापन में धन खर्च करने पर कड़ा रुख अपनाया और राज्य सरकार को इस तरह की गतिविधियों को रोकने का निर्देश दिया।
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ एवं न्यायमूर्ति डी.सी. चौधरी की खंडपीठ ने सोमवार को आदेश में कहा कि मंदिर का ट्रस्ट अपने किसी भी प्रायोजन के विज्ञापन के लिए किसी भी तरीके से धन खर्च नहीं कर सकता। रजनीश खोसला द्वारा हाई कोर्ट को लिखित पत्र पर संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया। खोसला ने पत्र में कहा था कि बाबा बालकनाथ मंदिर के ट्रस्ट ने 2009 में 100000 रुपये विज्ञापन में खर्च किए थे।
हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव एवं मुख्य आयुक्त (मंदिर) को यह निर्देश जारी करने के लिए कहा कि भगवान का धन मंदिर के ट्रस्ट द्वारा विज्ञापन में खर्च नहीं किया जा सकता।

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