सोमवार, 16 जुलाई 2012

नितीश की मेहरबानी, 42 रूपए महीना में मकान!


नितीश की मेहरबानी, 42 रूपए महीना में मकान!

(प्रतिभा सिंह)

पटना (साई)। यह बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की दरियादिली है या प्रशासनिक विफलता कि एशिया की सबसे बड़ी कॉलोनी कंकड़बाग में अब भी एल टू टाइप फ्लैट का 42 रुपये और एल वन फ्लैट का किराया 37 रुपये महीना ही वसूला जा रहा है। राजेंद्र नगर के जे टाइप फ्लैट का किराया 67 रुपये प्रति माह और अन्य टाइप के फ्लैटों का किराया 108 रुपये प्रति माह वसूला जा रहा है, जबकि इन इलाकों में आज की तारीख में फ्लैट का किराया पांच से सात हजार रुपये प्रतिमाह है।
राजेंद्र नगर में बनी दुकानों पर एक करोड़ 41 करोड़ 41 लाख 37 हजार 408 रुपये किराया वर्षाे से बकाया है, जबकि राजधानी की हृदयस्थली में बने मौर्यालोक कॉम्प्लेक्स में निर्मित दुकानों से मेंटेनेंस फीस और मालगुजारी के 89.94 लाख रुपये की वसूली नहीं हुई है।
महालेखाकार (एजी)ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। एजी ने बकाया राशि की वसूली व फ्लैटों के किराया का पुनरीक्षण नहीं करने के लिए निगम के अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए इस पर तुरंत कार्रवाई करने को कहा है।
एजी ने रिपोर्ट में कहा है कि पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकार (अब विघटित) ने 1969-70 में कंकड़बाग में 176 फ्लैट बनवाये थे। इनमें से 145 फ्लैट लीज पर आवंटित किये गये और शेष 21 किराये पर लगाये गये थे। किराया पंजी की नमूना जांच में पाया गया कि प्रति फ्लैट का क्षेत्रफल 960 वर्गफुट है।
21 फ्लैटों में से एल टू टाइप के 17 फ्लैटों का किराया 40 रुपये प्रति माह और एल वन टाइप के चार फ्लैटों का किराया 37 रुपये निर्धारित किया गया था। 40 वर्ष गुजरने के बाद भी उसका पुनरीक्षण नहीं किये जाने से पटना नगर निगम को करोड़ों रुपये का नुकसान हो चुका है। किराये का पुनरीक्षण नहीं होने का कारण ऑडिट के दौरान अधिकारियों ने नहीं बताया।
राजेंद्र नगर में 1960-61 में 772 फ्लैट बनाये गये थे। इनमें से 726 फ्लैट 99 और 66 वर्षाे के लीज पर आवंटित किये गये थे और शेष 46 फ्लैट किराये पर दिये गये थे। इनमें से केएलआइ एंड जे टाइप के 38 फ्लैट और एलएफ/एसआरटी टाइप के फ्लैट थे। केएलआइ एंड जे टाइप के फ्लैट का किराया 67 रुपये और अन्य का 108 रुपये मासिक निर्धारित किया गया था। 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी किराया का पुनरीक्षण नहीं किया गया। राजेंद्र नगर में कुल 92 दुकानों का निर्माण कराया गया था।
इसमें से 91 को किराये पर दिया गया था। 1959-60 में सरकार ने इन दुकानों के भुखंड को पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकार को 99 वर्षाे के लिए लीज पर दिया था। किराया पंजी के अनुसार इकरारनामा में किराया वृद्धि के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है। 1959-60 में 35 पैसे प्रति वर्गफुट के हिसाब से किराया निर्धारित हुआ था। मार्च, 2001 में दो रुपये प्रति वर्गफुट किराया निर्धारित किया गया। इसके बाद से किराया का पुनरीक्षण नहीं हुआ। निगम द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़े के अनुसार इन दुकानों पर एक करोड़ 41 लाख 37 हजार 408 रुपये बकाया हैं, जिनकी वसूली के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
मौर्यलोक स्थित दुकानों से मेंटेनेंस फीस व मालगुजारी के 8993 लाख रुपये की वसूली नहीं हुई है। इसके लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत है। इस परिसर में 636 दुकानें हैं। इनमें से 266 दुकानें कार्यालय को और 361 दुकानें 66 वर्षाे के लीज पर दी गयी थीं। आवंटन 1988 में किया गया था। 626 दुकानों से रखरखाव शुल्क क्रमशरू कार्यालय परिसर व दुकान के लिए 65 पैसे प्रति वर्गफुट व 52 पैसे प्रति वर्गफुट 1997 में निर्धारित किया गया था। उसके बाद पुनरीक्षण क्यों नहीं किया, इसका जवाब अधिकारियों ने नहीं दिया।

कोई टिप्पणी नहीं: