बुधवार, 25 जुलाई 2012

मामा की खिल्ली उड़ाता कुपोषण!

मामा की खिल्ली उड़ाता कुपोषण!

सूबे के बच्चों को मामा बना रहे हैं शिवराज

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। भले ही वोट की राजनीति या सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की गरज से देश के हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान अपने आपको सूबे के बच्चों का मामा बताते हों, पर उनके ही सूबे में कुपोषण की समस्या उनकी ही खिल्ली उड़ा रही है। सूबे में बच्चों के कुपोषण के आंकड़ों से अब उनकी कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क साफ नजर आने लगा है।
एक आंकलन के अनुसार समूचे सूबे में बच्चों के कुपोषित होने की खबरें आम हो चुकी हैं। बच्चों को पोषक तत्वों से लवरेज रखने के लिए पाबंद मध्य प्रदेश का महिला और बाल विकास विभाग भी कुछ नव धनाड्यों की देहरी पर मुजरा ही करता नजर आ रहा है। कुपोषण की समस्या के चलते बच्चे कमजोर होते जा रहे हैं, पर इससे महिला और बाल विकास विभाग को कोई लेना देना नजर नहीं आ रहा है।
ज्ञातव्य है कि बच्चों के अधिकारों के लिए सजग संस्था चाईल्ड राईट्स एण्ड यू ने भी शिवराज के मामा होने पर ही सवालिया निशान लगाया था। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को मिली जानकारी के अनुसार राज्य में भोपाल और रीवा में कुपोषण का आंकड़ा भयावह है। आलम यह है कि रीवा के आठ आदिवासी गांवों में 83 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार पाए गए थे।
इसी तरह की स्थिति कमोबेश हर जिले में ही है। शिवपुरी, सतना, खण्डवा, बुरहानपुर, सिवनी, बालाघाट, मण्डला, डिंडोरी, शहडोल, झाबुआ आदि जिलों में बीस फीसदी से अधिक बच्चों के कुपोषित होने का अनुमान है। यह स्थित उस समय है जब महिला एवं बाल विकास विभाग की भारी भरकम सरकारी फौज इससे निपटने में लगी हुई है।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय भी इसके लिए काफी चिंतित नजर आ रहा है। राजधानी दिल्ली से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से मणिका सोनल ने बताया कि एचआरडी मिनिस्ट्री के सूत्रों के हवाले से कहा कि केंद्र को इस बात की चिंता सता रही है कि 2015 में अगर भारत गणराज्य सहस्त्राब्दि लक्ष्य पाने से वंचित रहा तो इसमें मध्य प्रदेश की महती भूमिका होगी।
सूत्रों ने कहा कि एमपी में साठ फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। विडम्बना तो यह है कि इस तरह की स्थिति में सुधार होने के बजाए यह और विकराल रूप धारण करती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार राज्य के 70 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण तो 15 लाख अतिकुपोषण की श्रेणी में आ रहे हैं। हद तो उस वक्त हो जाती है जब राज्य के लगभग डेढ़ लाख बच्चे अपना पहला जन्म दिन तक नहीं मना पाते है।

कोई टिप्पणी नहीं: