गुरुवार, 19 जुलाई 2012

पिघल रहे तिब्बत में ग्लेशियर


पिघल रहे तिब्बत में ग्लेशियर

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। तिब्बत के पठार और इसके आसपास के इलाकों के ज्यादातर ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पिछले 30 साल में इस रफ्तार में काफी तेजी आई है। पेइचिंग की चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज के ग्लेशियर विशेषज्ञ याओ तांदोंग और उनके साथियों ने एक स्टडी के आधार पर यह दावा किया है। स्टडी के लिए इन्होंने 30 साल की सैटेलाइट इमेजिंग और इलाके के जमीनी सर्वेक्षण का सहारा लिया।
साइंस पत्रिका नेचर के मुताबिक, तांदोंग ने 7100 ग्लेशियरों की स्टडी की। इस दौरान उन्होंने ग्लेशियरों में बर्फ जमने और उसके पिघलने की रफ्तार का आकलन किया। इस आधार पर उन्होंने दावा किया कि इलाके में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पिछले 30 साल के दौरान काफी तेज हुई है। तिब्बत के पठार और इसके आसपास की हिमालय, काराकोरम और पामीर पर्वत श्रेणियां करीब 10 हजार ग्लेशियरों का घर हैं और इनसे एशिया की करीब 1.4 अरब आबादी की पानी की जरूरतें पूरी होती हैं। इस इलाके को थर्ड पोल के नाम से भी जाना जाता है।
तांदोंग का कहना है कि काराकोरम और पामीर क्षेत्र के ग्लेशियरों के मुकाबले हिमालय के ग्लेशियर ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। तांदोंग की टीम ने स्टडी के दौरान इलाके के जलवायु परिवर्तन का भी अध्ययन किया। इस आधार पर उन्होंने कहा कि ग्लेशियरों के पिघलने की एक बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। उनका यह भी कहना है कि 1970 के दशक के बाद तिब्बत के पठार क्षेत्र में ग्लेशियर से बनने वाली झीलों के आकार में करीब 26 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है।
ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन का असर पर एक अर्से से विवाद जारी है। साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई थी कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अगले 25 साल में हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर पिघल जाएंगे। इस रिपोर्ट पर काफी विवाद हुआ था। इसके उलट पिछले साल अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों को कोई खतरा नहीं है।

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