सोमवार, 20 अगस्त 2012

कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स और अजमल के हवाले असम


कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स और अजमल के हवाले असम

(संजय तिवारी)

ये अजमल कसाब तो नहीं है लेकिन इनका काम अजमल कसाब से भी खतरनाक है। इनका नाम है बदरुद्दीन अजमल कासिम। आसाम के एक स्थानीय पार्टी आल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष हैं और धुबरी से लोकसभा का प्रतनिधित्व करते हैं। आसाम का वही धुबरी जहां से आसाम के दंगों की शुरूआत हुई। धुबरी में 75 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है इसलिए बदरूद्दीन अजमल इस इलाके के बेताज बादशाह हैं।
आसाम में जो ताजा दंगे शुरू हुए उनके बारे में रपटें बताई गईं कि 19 जुलाई को कोकराझार में दो मुस्लिम छात्र नेताओं रातुल अहमद और सिद्दीक शेख पर हमला कर दिया जिसके बाद दंगे की शुरूआत हुई। ये दोनों ही छात्र नेता एक अल्पसंख्यक मुस्लिम संगठन से जुड़े हुए थे जिसका नाम है आल आसाम माइनारिटी स्टूडेन्ट यूनियन। इस संस्था के बारे में इतना ही जानना काफी है कि वह आसाम में मुसलमानों के हित के लिए काम करती है। इसी छात्र संगठन पर तथाकथित बोडो नेताओं के हमले के बाद रातों रात प्रतिक्रियावाद और बदला लेने की जो शुरूआत हुई उसका परिणाम यह हुआ कि 20 जुलाई को आसाम का कोकराझार, धुबरी इलाका पूरी तरह से जल उठा। हजारों लोगों को उनके घरों से या तो बाहर निकाल दिया गया या फिर वे अपने घरों को छोड़कर अज्ञात स्थान की ओर आगे बढ़ गये। यह खबर तो आई लेकिन यह खबर दब गई कि बोडो चरमपंथियों ने इन छात्र नेताओं पर हमला क्यों किया? यह जानकारी बहुत कम सामने आ पाई कि असम में जून महीने से ही बोडो लोगों पर छुटपुट हमले हो रहे थे। आज शरणार्थी शिविरों में जो लोग रहे हैं उसमें कई लोगों ने स्वीकार किया है कि उनके ऊपर मुस्लिम दंगाइयों ने जून में हमला किया था और उनके घरों को आग लगा दी थी।
फिर भी अगर मान भी लें कि दंगों की शुरूआत तथाकथित तौर दो मुस्लिम छात्र नेताओं पर हमले से शुरू हुई तो दंगों का विस्तार करने के लिए राजनीतिक रोटियां भी जमकर सेंकी गई। आसाम से लौटकर आई एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी ने 10 अगस्त को जो रिपोर्ट सार्वजनिक किया उसके अनुसार आसाम में दंगों की आग भड़काने में कांग्रेस के तीन मुस्लिम मंत्री जिम्मेदार हैं। इसके साथ ही इस फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने दो सांसदों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। इनके नाम हैं रानी नारा और बदरूद्दीन अजमल। कांग्रेस के मंत्रियों और शीर्ष नेताओं की राजनीति बाद में पहले जरा बदरुद्दीन महाशय के बारे में।
बदरुद्दीन ही वह शख्स हैं जिनके प्रभाव के कारण पूरे देश के मुसलमानों में गुस्से की लहर दौड़ गई है। मुंबई में दंगा भड़कते भड़कते रह गया। लखनऊ और इलाहाबाद में स्थितियां तनावपूर्ण बन चुकी हैं। हैदराबाद में 18 अगस्त को मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने एक बड़ी रैली आयोजित करके आसाम के मुसलमानों के लिए पूरे मुस्लिम समाज से सहयोग करने की अपील की। अगर अंदर ही अंदर देशभर में मुस्लिम संगठन आसाम दंगों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और रहकर उनका गुस्सा फूट रहा है तो स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि आखिर आसाम दंगों के बारे में वे जानकारियां मुसलमानों तक कैसे पहुंच रही हैं जो मीडिया से भी नदारद हैं? यह अजमल की कद काठी का कमाल है जो कि आसाम में अतरवाले के नाम से भी जाने जाते हैं। यह अतरवाला अजमल आज की तारीख में न सिर्फ आसाम का रसूखदार और पैसेवाला मुसलमान है बल्कि उसका शिक्षा कारोबार आसाम से लेकर मुंबई तक फैला हुआ है। शिक्षा के कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने बाकायदा एक एनजीओ मरकज उल मआरीफ बना रखा है। वे देवबंद की केन्द्रीय सलाहकार परिषद में भी हैं तो जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द की सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के भी मेम्बर हैं। अजमल अपने इन्हीं संबंधों का फायदा उठा रहे हैं उनके दिये संदेशों को देश के दो बड़े मुस्लिम संस्थान अपने अपने संपर्कों के जरिए शेष देश के मुसलमानों में पहुंचा रही हैं और मुसलमान आसाम के सवाल पर उद्वेलित हो रहा है।
लेकिन इस आर्थिक और धार्मिक ताकत के अलावा भी अजमल आसाम में अपने लिए मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं। फिलहाल तो उनकी अपनी राजनीतिक पार्टी है और वे उनकी पार्टी यूपीए का एक घटक दल भी है जो केन्द्र में कांग्रेस को सपोर्ट कर रहा है जबकि राज्य में वह मुख्य विपक्षी दल है। कांग्रेस के अंदर तरुण गोगोई का धड़ा अजमल के खिलाफ रहता है। गोगोई और अजमल का यह विरोध 2001 से चल रहा है जब गोगोई ने अजमल की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। अजमल वैसे तो सबके सामने तरुण गोगोई को अपना दोस्त बताते हैं लेकिन अंदरखाने वे सोनिया गांधी को जब तब अप्रोच करके गोगोई को हटाने की सिफारिशें करते रहते हैं। क्योंकि वे जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द के सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के मेम्बर है जिसका सोनिया गांधी पर अच्छा प्रभाव है इसलिए सोनिया दरबार में अजमल गोगोई का राजनीतिक गला घोटने की कई बार कोशिश कर चुका है। लेकिन अब तक वह असफल ही रहा है।
इस बार भी आसाम दंगों के बहाने अजमल अपनी राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस में इन दिनों अजमल हिमन्त शर्मा के करीबी हैं। हिमन्त शर्मा कुछ महीनों पहले तक तरुण गोगोई के सबसे खास मंत्री हुआ करते थे लेकिन हिमन्त को मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब आने लगे। हो सकता है अजमल ने हिमन्त को यह ख्वाब दिखाया हो, या कारण कुछ और हो लेकिन हिमन्त शर्मा अपने राजनीतिक आका दिग्विजय सिंह के जरिए तरुण गोगोई को हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाने लगे। आसाम से लेकर दिल्ली तक दबाव बढ़ता जा रहा था। दवाब कितना जबर्दस्त था कि दंगों के बाद कोकराझार के दौरे पर गये दिग्विजय सिंह ने कह दिया दंगों में राहत काम के लिए 2001 की जनगणना को नहीं बल्कि 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाएगा। इसके बाद हालात और बिगड़ गये। निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह ने यह बयान मुस्लिम नेताओं को खुश करने के लिए दिया था जिसका की असमी जनता पहले से विरोध कर रही थी। लेकिन क्योंकि असम से लेकर देश के दूसरे प्रदेशों में अजमल कांग्रेस से वोटों का सौदा कर रहा था इसलिए यह सच्चाई जानते हुए कि असम के लोगों को यह बात नहीं भायेगी, दिग्विजय सिंह ने कम्युनल पॉलिटिक्स का दामन नहीं छोड़ा। इसके अलावा ऐसे और कई कारण है जो असम में कांग्रेस और अजमल की कम्युनल जोड़ी बनाते हैं। अजमल कासिम लगातार दबाव बनाता रहा है कि बोडोलैण्ड टेरिटोरियल काउंसिल भंग कर दिया जाए जो कि बोडो लोगों को विशेष अधिकार देती है। लेकिन गोगोई के विरोध के कारण इस बारे में बात आगे नहीं जा पाती है।
शायद यही कारण है कि अजमल ने एक तरफ जहां तरुण गोगोई को कमजोर करने के लिए उन्हीं के विश्वासपात्र हिमन्त शर्मा को आगे बढ़ाया वहीं दूसरी ओर अपने संबंधों और संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति का सौदा भी करता रहा। यह तो भला हो सोनिया गांधी का जिन्होंने दबाव के बाद भी अपने असम दौरे के दौरान तरुण गोगोई को हटाने से मना कर दिया। इसके बाद से ही हिमन्त शर्मा अपने दफ्तर नहीं आ रहे हैं जिसके बाद इस बात की अफवाह फैली है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे की कोई पुष्टि नहीं हुई है। बल्कि कांग्रेस के अंदर से ये खबरें जरूर बाहर आई हैं कि गोगई से गृह मंत्रालय वापस लेकर किसी और को यह जिम्मा दिया जा सकता है क्योंकि अभी गोगोई के पास गृह मंत्रालय के साथ साथ वित्त मंत्रालय भी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आसाम में वर्तमान दंगों के इतिहास में कांग्रेस की मुस्लिमपरस्त राजनीति ही नजर आती रही है। लेकिन दंगों के बीच भी कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कम नहीं हुई। यह नहीं हो सकता कि दिग्विजय सिंह को न पता हो कि अजमल कासिम आसाम में क्या चाहता है? फिर भी वे हिमन्त शर्मा के जरिए अजमल कासिम को पनाह दे रहे हैं तो कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स की ही पोल खुलती है। असम में बोडो और मुस्लिमों के बीच जमीन का संघर्ष पांच दशक से भी अधिक पुराना हो गया है। यह बोडो लोगों का दुर्भाग्य ही है कि भूटान और नेपाल के बीच वे लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं, शायद यही कारण है कि वे अपनी खोती जमीन को बचाने के लिए एक बार हिंसक हो चले हैं। लेकिन कांग्रेस क्या कर रही है? अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए वह एक ऐसे आदमी को बढ़ावा दे रही है जो प्रदेश की सत्ता को अपने कब्जे में लेना चाहती है। अजमल खुद कहता रहा है कि गोगोई उसकी पार्टी को नेस्तनाबूत करना चाहते हैं। जाहिर है, इसके बाद वह भी गोगोई को चौन से कहां बैठने देगा? तो क्या अब वक्त नहीं है कि कांग्रेस अगर सचमुच राज्य में शांति चाहती है तो अपने मुख्यमंत्री का साथ दे और उस अजमल पर लगाम लगाये जो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहा है लेकिन इसका खामियाजा पूरे आसाम को भुगतना पड़ रहा है।

(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

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