शनिवार, 24 दिसंबर 2011

भाषा, संस्कृति के आधार पर भी बन सकता है प्रथक महाकौशल


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 16

भाषा, संस्कृति के आधार पर भी बन सकता है प्रथक महाकौशल

महाकौशल की उपेक्षा का दंश झेल रहे यहां के निवासी



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश की आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को आधार बनाया गया था। अब पुनः सत्ताधारी दल का ध्यान भी बनने वाले नए व छोटे राज्यों के निर्माण में भाषा को प्राथमिकता देने का है। तब मध्यप्रदेश जैसे देश के हृदय स्थल में रहने वाले विभिन्न भाषा-भाषी, धर्मावलंबी, क्षेत्रवासियों को क्या अपना समर्थन दिखाने के लिए जातिवादी, भाषावादी या क्षेत्रीयतावादी प्रवृत्ति को प्रबल बनाना पडेगा? यह प्रश्न उत्तेजनावर्धक नहीं, आत्मचिंतनकारी है। शायद महाकौशल के निवासी आज इसी मनोदशा से गुजर रहे हैं।
पहले राज्य पुनर्गठन आयोग से ही महाकौशल की रट लगाने वाले आज भी महाकौशल की उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं, पर महाकौशल की स्थापना का स्वप्न देखने वालों ने राज्य बनाने की ताकत तथा लक्ष्य को सही दृष्टि से नहीं पहचाना। राज्य बनाने की ताकत भाषा में है, पर आप अनेक भाषा-भाषी हैं। राज्य बनाने की ताकत जातिगत घनत्व व उसके भूगोल में है, पर आप न जातिवादी हैं, न जाति विशेष द्वारा राज्य करने वाले क्षेत्र के भूगोल वाले। यहां तो गोंडवाना राज्य था, जो आज जनजाति है। राज्य लेने के लिए इन दोनों की भावनात्मक शक्ति से नेता पैदा होते हैं, जो आफ पास नहीं है।
इस क्षेत्र में शिक्षाविद, साहित्यकार, डॉक्टर, वैद्य, पत्रकार, धर्माचार्य सभी हैं, जो समाज को दिशा देने वाले कारक हैं। जल, जंगल, जमीन, खनिज, मेहनतकश लोग हैं, पर प्रशासन में आधिपत्य रखने वाले व नेताओं का दिमाग कहे जाने वाले प्रशासनिक अधिकारी, आईपीएस, आईएएस नहीं हैं।
मूल जातिवादी, भाषावादी नहीं होता, तब हमें भूलों को सुधारकर आत्मावलोकन की शक्ति से वर्तमान की सच्चाई का ईमानदारी से आकलन करना चाहिए। मध्यप्रदेश में राज्य के भीतर राज्य बन सकता है। तब वह विभिन्न भाषा-भाषी, जाति-समूह, संस्कृति का एक ऐसा राज्य होगा, जिसमें बुंदेलखंडी, महाकौशलवादी, गोंडवानावादी, बघेलखंडी संस्कृतियों का समावेश होगा।
मगर, जैसे पुनः राज्य पुनर्गठन आयोग बना और वह भाषा के आधार पर बना, तो फिर सर्वाधिक नुकसान किसका होगा? यह चिंतन का प्रमुख विषय है और महाकौशल एवं गोंडवाना संस्कृति के लिए चिंता का विषय भी। उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री का बुंदेलखंड का प्रस्ताव मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड को हमसे दूर कर देगा। इनकी प्राथमिकता बुंदेलखंड के साथ जाने की होगी, न कि हमारे साथ रहने की। पूर्वांचल के निर्माण की घोषणा बघेलखंड-वासियों की विंध्याचल प्रदेश की मांग से मेल खाती दिखती है, तब अंतरराज्यीय राज्य पुनर्गठन में हम कहां होंगे? तब हम कटे-फटे, निःसहाय, अलग-थलग दिखाई पडेंगे। जो लोग राज्य की लडाई की वकालत करते हैं, वे किस आधार पर राज्य की कल्पना करते हैं, उन्हें स्पष्ट करना होगा। बगैर तत्वों-तथ्यों के राज्य की लडाई केवल मृग-मारीचिका ही होगी।

(क्रमशः जारी)

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